ग्रामीणों की पहुंच से दूर होता दोपहिया वाहन !
दोपहिया वाहनों की बिक्री भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बेहतर स्वास्थ्य का संकेत देता है। इस सदी की शुरुआत से ही दोपहिया वाहनों की खरीद से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन का पता लगाने में आसानी होती है। दोपहिया वाहनों की बिक्री बढ़ने से यह समझा जाता है कि ग्रामीणों की इन्कम बढ़ रही है और यह ग्रमीणों के लाइफस्टाइल में बदलाव का भी संकेत देता है।
2001 से 2011 के बीच दोपहिया वाहनों का रजिस्ट्रेशन 40 मिलियन से बढ़कर 100 मिलियन हो गया था। उसके बाद के सालों में हर साल औसतन 10 मिलियन वाहनों की बिक्री होती थी जिसमें आख़िरी बार 2018 में 16.5 मिलियन दोपहिया वाहनों की बिक्री हुई थी।
इसके बाद से दोपहिया वाहनों की बिक्री में धीरे-धीरे गिरावट आई और साल 2021 में वाहनों की जितनी यूनिट बिकी वो 2012 के स्तर से भी नीचे पहुंच गए। यह गिरावट महामारी की वजह से देखी गई जब लॉकडाउन में उद्योग-धंधे चौपट हो गए। कंस्ट्रक्शन से लेकर हर क्षेत्र में मंदी देखी गई और शहर में रह रहे देहाड़ी मज़दूर गांव को चल बसे। इन सबके बीच ग्रामीणों के इन्कम में भी गिरावट आ गई।
2021 के आख़िरी तिमाही में दोपहिया वाहनों की बिक्री गिरकर 3.59 मिलियन पर आ गई जो इस सदी का सबसे ख़राब तिमाही रहा। हालांकि यह वो तिमाही रहा जब देश में त्योहारों का मौसम होता है और वाहनों की बिक्री में उछाल देखी जाती है।