कांग्रेस का कांटों का ताज: नेतृत्व की लड़ाई
एक लंबी मांग के बाद शुरु हुई कांग्रेस की आपसी कलह पर कुछ महीनों के लिए विराम लग गया है। अगले छह महीने के लिए पार्टी अध्यक्ष के पद पर सोनिया गांधी के कार्यकाल को ही बढ़ा दिया गया है। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष को पार्टी के जिन 23 बड़े नेताओं ने चिट्ठी लिखी थी उसपर काफी विवाद हुआ। पार्टी के भीतर गांधी परिवार से इतर अध्यक्ष को लेकर चिट्ठी लिखने वाले नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी की खुलकर आलोचना करते नज़र आने लगे हैं।
माना जा रहा है कि एक बार फिर कांग्रेस पार्टी दो भागों में विभाजित हो सकती है। ठीक वैसे ही जैसे 1969 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुआ। तब पार्टी दो भागों में विभाजित होकर एक इंदिरा गांधी की कांग्रेस बनी जो आगे चलकर देश में बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब रही।
अगर पिछले दस आम चुनावों की बात करें तो कांग्रेस पार्टी के सीट शेयर के ग्राफ में बहुत उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। साल 1984 में राजीव गांधी के नेतृत्व में पार्टी को एक ऐतिहासिक जीत हासिल हुई थी। इस बड़ी जीत की वजह 1984 के सिख दंगे के बाद इंदिरा गांधी की हत्या को बताया जाता है।
जबकि अगले ही आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी देशभर में 197 सीटों पर ही सिमट कर रह गई। वहीं 2009 के आम चुनाव में 206 सीट जीतने वाली कांग्रेस पार्टी 2014 में 50 सीटें जीतने में भी नाकाम रही जबकि राहुल गांधी के नेतृत्व में 2019 के आम चुनाव में पार्टी 52 सीटों पर ही सिमट गई।
देखिए आख़िर कांग्रेस पार्टी की हालत इतनी बदतर कैसे हुई, इसकी क्या वजह है?