राजनीति ले डूबी, ज़ी-सोनी मर्जर की कहानी
ज़ी एंटरटेनमेंट और सोनी पिक्चर्स के विलय का ऐलान हो गया है। ज़ी देश की सबसे बड़ी क़र्ज़ में डूबी कंपनियों में से एक थी। कंपनी पर 71,000 करोड़ रूपये का क़र्ज़ था यानि कंपनी 10 अरब डॉलर के क़र्ज़ में थी। इस डील के बाद बुधवार को इसके शेयर में 31 फीसदी का उछाल देखा गया और यह पिंक पेपर्स और बिज़नेस न्यूज़ चैनलों की टॉप स्टोरी रही।
हरियाणा के कमोडिटी ट्रेडर सुभाष चंद्रा द्वारा 1992 में लॉन्च किया गया भारत का पहला निजी टीवी चैनल इस बात की शोकेस कहानी थी कि कैसे भारत में बाज़ार उदारीकरण ने उद्यमिता और बाज़ार की सफलता की संस्कृति को जन्म दिया। ज़ी की 49 चैनलों के माध्यम से दुनिया के 173 देशों तक पहुंच है। कंपनी के इन देशों में 1.3 अरब दर्शक हैं।
लेकिन टीवी जगत के दिग्गज सुभाष चंद्रा को जो एक चतुर व्यवसायी हैं, राजनीति में दिलचस्पी के बाद उनके लिए मुसीबतें बढ़ गई। 2014 में उनकी वैचारिक रूप से गठबंधन पार्टी भाजपा के सत्ता में आने के बाद वह अपने गृह राज्य के चुनावों में दबदबा बना रहे थे और ज़ाहिर तौर पर उनके पास अपने साम्राज्य के लिए बहुत कम समय था।
हां लेकिन इसका फायदा यह हुए कि उन्हें भारतीय संसद के उच्च सदन राज्यसभा में एक पीछे की जगह मिल गई। इसकी कीमत काफी ज़्यादा रही, हालांकि उनके बेटे पुनीत गोयनका कंपनी के मामलों की देखभाल कर रहे थे।