दिल्ली वाले आज़ादी के बाद सबसे महँगा पेट्रोल ख़रीदने को मजबूर, मगर क्यों ?
आज़ादी के बाद देश की राजधानी दिल्ली में पेट्रोल की इतनी ऊँची क़ीमत पहली बार हुई है। तेल कंपनियों द्वारा लगातार दूसरे दिन कीमतों में बढ़ोतरी करने के बाद राष्ट्रीय राजधानी में पेट्रोल की कीमत गुरुवार को 84.20 रुपये प्रति लीटर पहुँच गयी, जो 73 सालों में सबसे ज़्यादा है।
वैसे तो पेट्रोल और डीज़ल ऐसी चीजें हैं, जिसके दाम कभी स्थिर नहीं रहते लेकिन अंतरराष्टीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में भारी कमी के बावजूद आम आदमी के लिए क़ीमत में ये बेतरह इज़ाफ़ा लोगों की समझ से बाहर है। आखिर क्या कारण है इसका? और कैसे आप तक पहुंचते-पहुंचते पेट्रोल-डीज़ल की कीमत 3 गुना बढ़ जाती है? आइए समझते हैं...
सबसे पहले तो आप यह जान लें कि भारत अपनी ज़रूरत का 85% से ज्यादा पेट्रोलियम आयात करता है यानी, दूसरे देश से खरीदता है। विदेशों से आने वाला कच्चा तेल प्रति बैरल के हिसाब से ख़रीदा जाता है। एक बैरल में करीब 159 लीटर होते हैं। ये कच्चा तेल रिफ़ाइनरी में जाता है, जहां से पेट्रोल, डीजल और दूसरे पेट्रोलियम प्रोडक्ट अलग किये जाते हैं। इसके बाद ये तेल कंपनियों के पास जाता है। जैसे- इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम। यहां से ये अपना मुनाफ़ा बनाती हैं और पेट्रोल पंप तक पहुँचाती हैं। पेट्रोल पंप पर आने के बाद पेट्रोल पंप का मालिक अपना कमीशन जोड़ता है। केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से लगने वाला टैक्स जोड़कर कुल क़ीमत तय की जाती है। इस तरह 25 रुपये प्रति लीटर की दर से सरकार को मिलने वाला पेट्रोल आम आदमी तक पहुँचते-पहुँचते 80 रुपये से ज़्यादा का हो जाता है।