डिजिटल डंके की गूँज के बीच पेपाल ने लिया भारत से कारोबार समेटने का फ़ैसला

केंद्र सरकार डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने में जुटी है पर अमेरिका के एक बड़े पेमेंट ऐप ने भारत के घरेलू उपभोक्ताओं के लिए अपनी सुविधा बंद करने का फ़ैसला किया है। मेरिकी ऑनलाइन कंपनी पेपाल होल्डिंग्स इंक भारत में अपनी डोमेस्टिक पेमेंट सर्विस 1 अप्रैल से बंद करने जा रही है। कैलिफोर्निया के सैन होजे स्थित कंपनी पेपाल अब क्रॉस बॉर्डर पेमेंट बिजनेस पर ध्यान केंद्रित करेगी। इसका मतलब यह हुआ कि ग्लोबल कस्टमर अभी भी सेवा का उपयोग करके भारतीय व्यापारियों को पेमेंट करने में सक्षम होंगे।
कंपनी ने एक बयान में कहा है कि ''1 अप्रैल 2021 से हम अपना सारा ध्यान भारतीय व्यवसायों के लिए अधिक अंतरराष्ट्रीय बिक्री को सक्षम करने पर केंद्रित करेंगे और डोमेस्टिक सेवा से ध्यान हटायेंगे। इसका मतलब है कि हम 1 अप्रैल से भारत में डोमेस्टिक पेमेंट सर्विसेज नहीं देंगे।’’
पेपाल ने पिछले वर्ष भारत में 3.6 लाख से अधिक व्यापारियों के लिए 1.4 बिलियन डॉलर की अंतरराष्ट्रीय बिक्री करने में मदद की। दुनिया में पेपाल के 190 देशों में करीब 100 मिलियन मेंबर अकाउंट हैं। इससे ये पता चलता है कि पेपाल पर भारत के ही नहीं पूरी दुनिया के लोग भरोसा करते हैं। पेपाल ने भारत में साल 2017 से काम करना शुरू किया था। वैसे पेपाल ने अपने इस क़दम के पीछे कोई वजह नहीं बतायी है, पर ऐसा कहा जा रहा है कि पिछले कुछ वक़्त से भारत में नियमों के चलते पेपाल को काम करने में दिक़्क़त हो रही थी। पेपाल की भारतीय रिजर्व बैंक के साथ भी तनातनी चल रही थी। पेपाल ने भारत में क़दम बाद में रखा पर कंपनी बाहर से भारत के लिए पहले से काम कर रही थी। साल 2011 में कंपनी को अपने सारी सेवाऐं बंद करनी पड़ी थी जब भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 का पालन करने के लिए कहा था। उसके बाद पेपाल कई वर्षों तक सीमा पार लेनदेन के कारोबार में रहा। 2016 में कंपनी ने अनुपम पाहुजा को भारत के लिए देश का प्रमुख नियुक्त किया और पेपाल ने 2017 से यहाँ काम करना शुरू कर दिया। भारत में क़दम रखने के बावजूद पेपाल अपने पैर नहीं पसार पा रहा था। कंपनी को भारतीय कामकाज के तरीक़े में ख़ुद को ढालने में समस्या आ रही थी। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह थी UPI मॉडल। पेपाल ने UPI मॉडल को नहीं अपनाया और इसी वजह से वह भारत में बाक़ी कंपनियों से पीछे रह गया। कुछ वक़्त पहले जब कंपनी ने UPI मॉडल अपनाने के बारे में सोचा तो भारत में राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) ने एक नया निर्णय लिया कि 1 जनवरी, 2021 से थर्ड पार्टी ऐप द्वारा संचालित UPI भुगतान सेवा के लिए लेनदेन की सीमा कुल लेनदेन का अधिकतम 30 प्रतिशत होगी। इस फ़ैसले के बाद पेपाल ने भारत छोड़ने का मन बना लिया। यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि जब एक तरफ़ सरकार डिजिटल इंडिया बनाना चाह रही है तो फिर ऐसी नीतियाँ क्यों बन रही हैं जिससे डिजिटल कंपनीयों को परेशानी उठानी पड़ रही है।
पेपाल ने पिछले वर्ष भारत में 3.6 लाख से अधिक व्यापारियों के लिए 1.4 बिलियन डॉलर की अंतरराष्ट्रीय बिक्री करने में मदद की। दुनिया में पेपाल के 190 देशों में करीब 100 मिलियन मेंबर अकाउंट हैं। इससे ये पता चलता है कि पेपाल पर भारत के ही नहीं पूरी दुनिया के लोग भरोसा करते हैं। पेपाल ने भारत में साल 2017 से काम करना शुरू किया था। वैसे पेपाल ने अपने इस क़दम के पीछे कोई वजह नहीं बतायी है, पर ऐसा कहा जा रहा है कि पिछले कुछ वक़्त से भारत में नियमों के चलते पेपाल को काम करने में दिक़्क़त हो रही थी। पेपाल की भारतीय रिजर्व बैंक के साथ भी तनातनी चल रही थी। पेपाल ने भारत में क़दम बाद में रखा पर कंपनी बाहर से भारत के लिए पहले से काम कर रही थी। साल 2011 में कंपनी को अपने सारी सेवाऐं बंद करनी पड़ी थी जब भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 का पालन करने के लिए कहा था। उसके बाद पेपाल कई वर्षों तक सीमा पार लेनदेन के कारोबार में रहा। 2016 में कंपनी ने अनुपम पाहुजा को भारत के लिए देश का प्रमुख नियुक्त किया और पेपाल ने 2017 से यहाँ काम करना शुरू कर दिया। भारत में क़दम रखने के बावजूद पेपाल अपने पैर नहीं पसार पा रहा था। कंपनी को भारतीय कामकाज के तरीक़े में ख़ुद को ढालने में समस्या आ रही थी। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह थी UPI मॉडल। पेपाल ने UPI मॉडल को नहीं अपनाया और इसी वजह से वह भारत में बाक़ी कंपनियों से पीछे रह गया। कुछ वक़्त पहले जब कंपनी ने UPI मॉडल अपनाने के बारे में सोचा तो भारत में राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) ने एक नया निर्णय लिया कि 1 जनवरी, 2021 से थर्ड पार्टी ऐप द्वारा संचालित UPI भुगतान सेवा के लिए लेनदेन की सीमा कुल लेनदेन का अधिकतम 30 प्रतिशत होगी। इस फ़ैसले के बाद पेपाल ने भारत छोड़ने का मन बना लिया। यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि जब एक तरफ़ सरकार डिजिटल इंडिया बनाना चाह रही है तो फिर ऐसी नीतियाँ क्यों बन रही हैं जिससे डिजिटल कंपनीयों को परेशानी उठानी पड़ रही है।
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