अलगाववादी संगठन हुर्रियत कांफ्रेंस को क्यों प्रतिबंध करने की तैयारी में है केन्द्र ?

केन्द्र सरकार जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी संगठन हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों धड़ों पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है। संगठन के दोनों धड़ों पर यूएपीए के तहत कार्रवाई की जा सकती है। अगर यह प्रतिबंध लगाया जाता है तो इससे सुरक्षा एजेंसियों को हुर्रियत से जुड़े किसी भी नेता को गिरफ्तार करने और धन के प्रवाह को रोकने की इजाज़त होगी।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, हुर्रियत के कट्टरपंथी और उदारवादी दोनों धड़ों को "गैरकानूनी संघ" घोषित करने की चर्चा शुरू हो गई है। हालांकि, इस संबंध में आधिकारिक रूप से काम शुरू होना बाकी है। मौजूदा समय में कट्टरपंथी धड़े का नेतृत्व अशरफ सेहराई कर रहे हैं और उदारवादी धड़े का नेतृत्व मीरवाइज उमर फारूक़ कर रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक़ हुर्रियत के दोनों धड़ों पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, या यूएपीए की धारा 3 (1) के तहत प्रतिबंधि लगाए जाने की संभावना है। यूएपीए की इस धारा के तहत “अगर केन्द्र सरकार की राय है कि कोई सगंठन, है, या संगठन गै़र क़ानूनी गतिविधियों में सम्मिलित है तो केन्द्र को यह अधिकार है कि वो एक अधिसूचना जारी कर संगठन को ग़ैर-क़ानूनी घोषित कर सकता है।’ रिपोर्ट के मुताबिक़ यह प्रस्ताव केन्द्र की आतंकवाद के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस की नीति के तहत रखा गया है। हुर्रियत कान्फ्रेंस 1993 में 26 समूहों के गठबंधन से अस्तित्व में आया, जिसमें कुछ पाकिस्तान समर्थक और प्रतिबंधित संगठन जैसे जमात-ए-इस्लामी, जेकेएलएफ और दुख्तारन-ए-मिल्लत शामिल थे। इसमें पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और मीरवाइज उमर फारूक की अध्यक्षता वाली अवामी एक्शन कमेटी भी शामिल थी। अलगाववादी समूह 2005 में मीरवाइज के नेतृत्व वाले उदारवादी समूह और सैयद अली शाह गिलानी के नेतृत्व वाले हार्ड-लाइन समूंह के साथ दो गुटों में टूट गया। केन्द्र पहले ही जमात-ए-इस्लामी और जेकेएलएफ को यूएपीए के तहत प्रतिबंधित कर चुका है। यह प्रतिबंध साल 2019 में लगाया गया था। मीडिया रिपोर्ट में आधिकारिक हवाले से बताया गया है कि आतंकवादी समूहों के वित्त पोषण की जांच में अलगाववादी और अलगाववादी नेताओं की कथित संलिप्तता के संकेत मिलते हैं, जिसमें हुर्रियत कांफ्रेंस के सदस्य और कैडर शामिल हैं। इन संगठनों पर आरोप लगाया गया है कि यह संगठन प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों हिज्बुल-मुजाहिदीन (एचएम) के सक्रिय आतंकवादियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इनमें दुख्तारन-ए-मिल्लत (डीईएम) और लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी भी शामिल हैं। आरोप लगाए जा रहे हैं कि इन कैडरों ने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी और आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए हवाला समेत अलग-अलग माध्यमों के ज़रिये देश और विदेश में धन इकट्ठा किया है। दावा किया गया है कि जुटाए गए धन का इस्तेमाल कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों पर पथराव, व्यवस्थित रूप से स्कूलों को जलाने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए एक आपराधिक साजिश के तहत किया गया था। ग़ौरतलब है कि इस मामले की एनआईए लंबे समय से जांच कर रही है और एजेंसी ने कई लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई भी किए हैं और इन दोनों गुटों के दूसरे पायदान के कई कार्यकर्ता 2017 से जेल में बंद हैं। जेल में बंद लोगों में गिलानी के दामाद अल्ताफ अहमद शाह भी शामिल हैं; व्यवसायी जहूर अहमद वटाली; गिलानी के करीबी अयाज अकबर, जो कट्टरपंथी अलगाववादी संगठन तहरीक-ए-हुर्रियत के प्रवक्ता भी हैं; पीर सैफुल्लाह; उदारवादी हुर्रियत कांफ्रेंस के प्रवक्ता शाहिद-उल-इस्लाम; मेहराजुद्दीन कलवाल; नईम खान; और फारूक अहमद डार उर्फ 'बिट्टा कराटे' भी जेल में बंद हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक़ हुर्रियत के दोनों धड़ों पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, या यूएपीए की धारा 3 (1) के तहत प्रतिबंधि लगाए जाने की संभावना है। यूएपीए की इस धारा के तहत “अगर केन्द्र सरकार की राय है कि कोई सगंठन, है, या संगठन गै़र क़ानूनी गतिविधियों में सम्मिलित है तो केन्द्र को यह अधिकार है कि वो एक अधिसूचना जारी कर संगठन को ग़ैर-क़ानूनी घोषित कर सकता है।’ रिपोर्ट के मुताबिक़ यह प्रस्ताव केन्द्र की आतंकवाद के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस की नीति के तहत रखा गया है। हुर्रियत कान्फ्रेंस 1993 में 26 समूहों के गठबंधन से अस्तित्व में आया, जिसमें कुछ पाकिस्तान समर्थक और प्रतिबंधित संगठन जैसे जमात-ए-इस्लामी, जेकेएलएफ और दुख्तारन-ए-मिल्लत शामिल थे। इसमें पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और मीरवाइज उमर फारूक की अध्यक्षता वाली अवामी एक्शन कमेटी भी शामिल थी। अलगाववादी समूह 2005 में मीरवाइज के नेतृत्व वाले उदारवादी समूह और सैयद अली शाह गिलानी के नेतृत्व वाले हार्ड-लाइन समूंह के साथ दो गुटों में टूट गया। केन्द्र पहले ही जमात-ए-इस्लामी और जेकेएलएफ को यूएपीए के तहत प्रतिबंधित कर चुका है। यह प्रतिबंध साल 2019 में लगाया गया था। मीडिया रिपोर्ट में आधिकारिक हवाले से बताया गया है कि आतंकवादी समूहों के वित्त पोषण की जांच में अलगाववादी और अलगाववादी नेताओं की कथित संलिप्तता के संकेत मिलते हैं, जिसमें हुर्रियत कांफ्रेंस के सदस्य और कैडर शामिल हैं। इन संगठनों पर आरोप लगाया गया है कि यह संगठन प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों हिज्बुल-मुजाहिदीन (एचएम) के सक्रिय आतंकवादियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इनमें दुख्तारन-ए-मिल्लत (डीईएम) और लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी भी शामिल हैं। आरोप लगाए जा रहे हैं कि इन कैडरों ने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी और आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए हवाला समेत अलग-अलग माध्यमों के ज़रिये देश और विदेश में धन इकट्ठा किया है। दावा किया गया है कि जुटाए गए धन का इस्तेमाल कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों पर पथराव, व्यवस्थित रूप से स्कूलों को जलाने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए एक आपराधिक साजिश के तहत किया गया था। ग़ौरतलब है कि इस मामले की एनआईए लंबे समय से जांच कर रही है और एजेंसी ने कई लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई भी किए हैं और इन दोनों गुटों के दूसरे पायदान के कई कार्यकर्ता 2017 से जेल में बंद हैं। जेल में बंद लोगों में गिलानी के दामाद अल्ताफ अहमद शाह भी शामिल हैं; व्यवसायी जहूर अहमद वटाली; गिलानी के करीबी अयाज अकबर, जो कट्टरपंथी अलगाववादी संगठन तहरीक-ए-हुर्रियत के प्रवक्ता भी हैं; पीर सैफुल्लाह; उदारवादी हुर्रियत कांफ्रेंस के प्रवक्ता शाहिद-उल-इस्लाम; मेहराजुद्दीन कलवाल; नईम खान; और फारूक अहमद डार उर्फ 'बिट्टा कराटे' भी जेल में बंद हैं।
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