राजधानी दिल्ली में ऑक्सीज़न संकट के बीच निशाने पर क्यों आ गया किसान आंदोलन ?

राजधानी दिल्ली में कोरोना संक्रमण की वजह से हालात गंभीर बने हुए हैं। इस बीच दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसान एक बार फिर निशाने पर आ गए हैं। किसानों पर ज़रूरी वस्तुओं और सेवाओं को बाधित करने जैसे गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। प्रदर्शनकारियों पर कई भाजपा नेताओं ने ऑक्सीजन सप्लाई में बाधा डालने के आरोप लगाए हैं।
बीजेपी सांसद परमेश वर्मा ने मंगलवार को आरोप लगाया कि, ‘प्रदर्शनाकिरियों के रोड ब्लॉक करने की वजह से दिल्ली को सप्लाई की जा रही ऑक्सीज़न के ट्रांसपोर्टेशन में बाधा आई।’
हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत अन्य राज्यों के किसान बड़ी संख्या में चार महीनों से भी ज़्यादा वक़्त से दिल्ली के ग़ाज़ीपुर, टीकरी और सिंघु बॉर्डर पर मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों पर दिल्ली की सड़कों को ब्लॉक करने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। लेकिन किसानों का कहना है कि ‘सड़कें किसानों ने नहीं बल्कि दिल्ली पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर ब्लॉक की हुई हैं।’
किसानों का यह भी कहना है कि ‘उन्होंने शुरूआत से ही इमरजेंसी के लिए रास्ते खाली छोड़ रखे हैं।’ जबकि भाजपा नेता ने मंगलवार को दावा किया कि, ‘दिल्ली के कई अस्पतालों से बातचीत की है जिससे पता चला कि अस्पतालों में सिर्फ कुछ ही घंटे के ऑक्सीज़न बचे हैं। और किसानों के ग़ाज़ीपुर बॉर्डर बंद करने की वजह से ऑक्सीज़न की सप्लाई में मुश्किल हो रही है।’ हालांकि किसानों ने इन दावों को ‘सरकारी प्रोपेगेंडा’ क़रार दिया है।
किसान संगठनों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि, ‘किसानों की ओर से एक भी एंबुलेंस या एसेंशियल आईटम सप्लाई करने वाले वाहन का रास्ता रोका नहीं गया है। मोर्चा ने कहा, ‘एक भी एंबुलेंस या फिर ज़रूरी सेवाओं और वस्तुओं का रास्ता रोका नहीं गया। ये सरकार है जिसने मल्टीलेयर बैरिकेड लगाए हैं। किसान मानवाधिकारों के लिए लड़ रहे हैं और वे हर मानवाधिकार का समर्थन करते हैं।’
किसानों पर लग रहे इस तरह के संगीन आरोपों पर भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने भी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, ‘ऐसे आरोपों के ज़रिए सरकार दिल्ली की सीमाओं से किसानों को हटाना चाहती है।’ उन्होंने कहा कि कोविड संक्रमण के बढ़ते मामलों को एक ‘बहाने’ के तौर पर सरकार इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, ‘अगर सरकार किसानों के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती करती है तो हालात तनावपूर्ण हो सकते हैं।’
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब किसान आंदोलन सरकार के निशाने पर आया हो। इससे पहले भी कई ऐसे घटनाक्रम हुए हैं जिसमें सरकार पर यह आरोप लगे कि ‘सरकार किसानों की बात सुने बग़ैर उनके प्रदर्शन को ख़त्म कराना चाहती है।’ किसानों का कहना है कि चुनावी राज्यों में सोशल डिस्टेंसिंग को दरकिनार कर रैलियां की जा रही है, जबकि किसानों के प्रदर्शनस्थलों पर कोविड गाइडलाइन का पूरा पालन किया जा रहा है।
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