कौन थे शहीद भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह, जिनकी याद में मनाया गया ‘पगड़ी संभाल दिवस’

by M. Nuruddin 2 years ago Views 2899

मौजूदा सरकार की ही तरह अंग्रेज़ सरकार ने भी तीन क़ानून बनाए थे जिसके विरोध मेें किसानों ने आंदोलन शुरु कर दिया था...

Who was Ajit Singh, in whose memory 'Pagdi Sambhal
कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ शहीद भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह की याद में आज आंदोलित किसानों ने ‘पगड़ी संभाल दिवस’ मनाया। अपने आत्मसम्मान के प्रतीक के रूप में किसानों ने पगड़ी पहनकर प्रदर्शन किया। मौजूदा सरकार की ही तरह अंग्रेज़ सरकार ने भी तीन क़ानून बनाए थे जिसके विरोध मेें किसानों ने आंदोलन शुरु कर दिया था। इस आंदोलन की अगुवाई सरदार अजीत सिंह ही कर रहे थे।

अजीत सिंह का जन्म 23 फरवरी 1881 को ज़िला जालंधर के खटकड़ कलां गाँव में हुआ था। भगत सिंह के पिता किशन सिंह उनके बड़े भाई थे। उनके एक छोटे भाई स्वर्ण सिंह जो 23 साल की ही उम्र में स्वाधीनता संग्राम के दौरान जेल में उनकी मौत हो गई थी। इन तीनों के पिता अर्जन सिंह उन दिनों कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे और बाद में अजित सिंह समेत तीनों भाई भी इसी पार्टी से जुड़ गए।


तीनों भाइयों ने जालंधर के साईं दास एंग्लो संस्कृत स्कूल में साथ में पढ़ाई की। अपनी दसवीं कक्षा पास करने के बाद अजीत सिंह 1903 में बरेली के एक कॉलेज में क़ानून की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। इसी दौरान उनकी शादी एक सूफी विचारों वाले धनपत राय की बेटी हरनाम कौर से हुई।

बात साल 1907 की है जब अंग्रेज़ों ने किसानों के शोषण के लिए तीन क़ानून बनाए। इसी के विरोध में गुस्साए पंजाब के किसान सड़क पर उतर आए। इस दौरान अजीत सिंह ने किसानों को संगठित किया और राज्यभर में सभाएं शुरु की। देखते ही देखती विरोध-प्रदर्शन ने एक आंदोलन का रूप ले लिया।

इन तीनों क़ानूनों का ज़िक्र शहीद भगत सिंह ने अपनी लेख में भी किया है। दरअसल, अंग्रेज़ों ने नया कालोनी एक्ट पारित किया। इसका मक़सद किसानों की ज़मीनों को हड़पकर बड़े साहूकारों के हाथ में देना था। इस क़ानून के मुताबिक़ कोई भी किसान अपनी ज़मीन से पेड़ तक नहीं काट सकता था। अगर किसान ऐसा करता पाया जाता तो उन्हें नोटिस देकर उनकी ज़मीन का पट्टा कैंसिल कर दिया जाता था। 

इस क़ानून में दूसरी सबसे ख़तरनाक बात यह थी कि ज़मीन किसान के बड़े बेटे के नाम पर ही चढ़ सकती थी। अगर किसी की औलाद नहीं होती और किसान मर जाता तो ज़मीन अंग्रेज़ी शासन या रियासत के हाथों में चली जाती थी। इस क़ानून के तहत अंग्रेज़ों ने बारी दोआब नहर से सिंचित होने वाली ज़मीनों का लगान भी दोगुना कर दिया था। अब किसानों को डर होने लगा कि इस तरह से उनकी ज़मीनें अंग्रेज़ों के हाथों में चली जाएगी।

क़ानून के ख़िलाफ आंदोलन तब और तेज़ हुआ जब मार्च 1907 की लायलपुर की सभा में लाला बाँके दयाल ने एक मार्मिक कविता- पगड़ी संभाल जट्टा - पढ़ी, जिसमें किसानों के शोषण की व्यथा वर्णित है, जो इतनी लोकप्रिय हुई कि आंदोलन का नाम ही कविता के नाम पर पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन पड़ गया। आज 113 साल बाद 2020-21 के किसान आंदोलन पर इसका असर साफ़ देखा जा सकता है, जब किसानों में फिर अपनी ज़मीन छिनने का डर पैदा हो गया है।

इसी दौरान 21 अप्रैल 1907 में रावलपिंडी की एक सभा में सरदार अजीत सिंह ने ऐसा भाषण दिया जो अंग्रेज़ी सरकार को चुभ गई। अंग्रेज़ सरकार ने उनके भाषण को बाग़ी और देशद्रोही भाषण माना और आज की ही तरह उनपर धारा 124-ए लगा दिया गया। अंग्रेज़ों ने आंदोलन को दबाने की पुर्जोर कोशिशें की लेकिन नाकाम रहे। आंदोलन के दौरान पंजाब भर में 33 सभाएं हुईं जिनमें 19 में ख़ुद अजीत सिंह मौजूद रहे।

आंदोलन इतना तेज़ हो गया कि अंग्रेज़ सरकार को डर सताने लगा। तब भारत में अंग्रेज़ सेना के कमांडर थे लार्ड किचनर। उन्हें आशंका हुई कि इस आंदोलन से बग़ावत शुरु हो सकती है और इसी दौरान पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने भी अपनी रिपोर्ट में ऐसी ही आशंका जताई। इसके बाद अंग्रेज़ सरकार ने मई 1907 में ही क़ानून को रद्द कर दिया।

बाद में अंग्रेज़ों ने आंदोलन के नेताओं लाला लाजपत राय और अजीत सिंह को 1818 की रेगुलेशन-3 के तहत छह महीने के लिये बर्मा जो अब म्यांमार है और उन दिनों भारत का हिस्सा था, की मांडले जेल में डाल दिया जहां से उन्हें 11 नवंबर 1907 को रिहा किया गया। 

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