क्या होता है 'टूलकिट' जिसके इस्तेमाल से पर्यावरण एक्टिविस्ट 'राजद्रोही' हो गये!

by GoNews Desk 2 years ago Views 1919

दिल्ली पुलिस का दावा है कि इस टूलकिट के पीछे 'पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन' की साज़िश है जो कि एक खालिस्तान समर्थक संगठन है।

What is a 'toolkit' using which environmental acti
आजकल 'टूलकिट' को लेकर देश में बवाल मचा हुआ है। ‘टूलकिट’ की वजह से दिल्ली पुलिस ने एक क्लाइमेट एक्टिविस्ट दिशा रवि को गिरफ्तार कर पांच दिनों की रिमांड पर लिया है। इसके अलावा दिल्ली पुलिस ने मुंबई की एक वकील निकिता जैकब और इसी टूलकिट मामले से जुड़े एक इंजीनियर के ख़िलाफ अरेस्ट वॉरंट भी जारी किया है। दिल्ली पुलिस का दावा है कि इस टूलकिट के पीछे 'पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन' की साज़िश है जो कि एक खालिस्तान समर्थक संगठन है।

दिशा रवि पर आरोप है कि उन्होंने सोशल मीडिया पर इस टूलकिट को साझा किया। हालांकि कोर्ट के सामने दिशा ने कहा कि उन्होंने इस दस्तावेज़ को तैयार नहीं किया बल्कि उन्होंने इस टूलकिट की दो लाइनें एडिट की थी। कथित रूप से इसी टूलकिट को स्वीडिश जलवायु एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने भी ट्विटर पर साझा किया था। दिल्ली पुलिस का दावा है कि दिशा ही उस टूलकिट की एडिटर हैं और उस दस्तावेज़ को तैयार करने और सोशल मीडिया पर साझा करने वाली ‘प्रमुख आरोपी’ हैं।


क्या है टूलकिट ?

सवाल ये है कि ये ‘टूलकिट’ है क्या। आमतौर पर मशीनों को ठीक करने से जुड़े औज़ारों को टूलकिट समझा जाता है, लेकिन यहाँ बात वर्चुअल दस्तावेज़ की हो रही है। यह किसी मुद्दे को समझाने के लिए बनाया गया एक गूगल डॉक्यूमेंट होता है। टूलकिट में आमतौर पर आंदोलन को बढ़ाने के लिए 'एक्शन प्लान’ होते हैं। मोटे तौर पर इसका इस्तेमाल सोशल मीडिया के संदर्भ में किया जाता है, जिसमें विरोध-प्रदर्शन या आंदोलन से जुड़ी जानकारी होती है। इसमें यह बताया जाता है कि आप क्या पोस्ट करें, कौन से हैशटैग का इस्तेमाल करें।

हाल के दिनों में हुए विरोध-प्रदर्शन और आंदोलनों में इस टूलकिट की अहम भूमिका रही है। सीएए विरोधी आंदोलनों में भी टूलकिट बनाकर सोशल मीडिया और व्हॉट्सेप पर साझा किया गया था। इसमें आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया अभियान की जानकारी दी गई थी।

टूलकिट नामक दस्तावेज़ का इस्तेमाल सिर्फ आंदोलनकारी ही नहीं बल्कि राजनीतिक पार्टियां, कंपनियां, शिक्षण संस्थान और सामाजिक संगठन भी किसी ख़ास मुद्दे की जानकारी लोगों तक पहुंचाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। कई बार सरकार भी इसका इस्तेमाल करती है।

कैसे शुरु हुआ इस्तेमाल ?

माना जाता है कि इस टूलकिट का इस्तेमाल पहली बार हॉंग-कॉंग में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के दौरान हुआ था। इस दौरान प्रदर्शनकारियों को पुलिस के डंडे, आंसू गैस से बचने के लिए हेलमेट और ख़ास किस्म का चश्मा लगाने की सलाह दी गई थी। इनके अलावा अमेरिका में ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन के दौरान भी टूलकिट का सर्कुलेशन हुआ था। इससे आंदोलन को दुनियाभर का समर्थन मिला। ख़ास बात ये है कि आंदोलन से जुड़े लोगों ने ही टूलकिट को बनाया था।

टूलकिट में- ‘आंदोलन के दौरान किन जगहों पर जाएँ, कहां कब इकट्ठा होना है, किस तरह से आंदोलन को आगे बढ़ाएँ, पुलिस की कार्रवाई से कैसे बचें, सोशल मीडिया पर किस तरह सक्रियता रखें और पोस्ट के लिए किन हैशटैग का इस्तेमाल करना है, जैसी जानकारियां दी गई थीं।’ इसमें इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि आंदोलन को लेकर कोई अफ़वाह या ग़लत जानकारी न फैलायी जा सके।

किसान आंदोलन से टूलकिट का संबंध

दरअसल, सारा विवाद शुरु हुआ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग के एक ट्वीट से। 3 फरवरी को एक ट्वीट के साथ उन्होंने एक टूलकिट साझा किया था। लेकिन अगले ही दिन उन्होंने अपने इस ट्वीट को यह कहते हुए डिलीट किया कि यह पुराना पड़ गया है। ग्रेटा ने किसानों के समर्थन में फिर ट्वीट किया और एक नया टूलकिट साझा किया जिसमें उन्होंने लिखा, ‘ये नई टूलकिट है जिसे उन लोगों ने बनाया है जो इस समय भारत में ज़मीन पर काम कर रहे हैं। इसके ज़रिये आप चाहें तो उनकी मदद कर सकते हैं।’

अब ग्रेटा के इसी ट्वीट और टूलकिट को दिल्ली पुलिस 26 जनवरी को हुए लाल क़िले में हिंसक प्रदर्शन से जोड़कर देख रही है। दिल्ली पुलिस का ‘मानना’ है कि टूलकिट की ही वजह से इस घटना को अंजाम दिया गया। दिल्ली पुलिस के मुताबिक़, दिशा ने ही ग्रेटा थनबर्ग को टेलिग्राम के ज़रिये यह टूलकिट मुहैया कराई थी। पुलिस का यह भी कहना है कि दिशा के ही कहने पर ग्रेटा ने अपने पहले ट्वीट को डिलीट किया और अगले दिन टूलकिट के एडिटेड वर्जन के साथ फिर ट्वीट किया।

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