प्रशांत भूषण अवमानना केस में आज सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ ?

सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के ख़िलाफ अवमानना मामले में सज़ा पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। मामले में फैसला सुरक्षित रखते हुए पीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, ‘हमें बताएं कि ‘माफी’ शब्द का इस्तेमाल करने में क्या ग़लत है ? माफी मांगने में क्या ग़लत है ? क्या वो दोषियों का रिफ्लेक्शन होगा ?’
जस्टिस अरूण मिश्रा ने कहा, ‘माफी एक जादुई शब्द है, जो कई चीज़ों को ठीक कर देता है। मैं आमतौर पर प्रशांत से कह रहा हूं कि अगर आप माफी मांगेंगे तो आप महात्मा गांधी की श्रेणी में शामिल होंगे। गांधी जी ऐसा करते थे। अगर आपने किसी को चोट पहुंचाई है तो आपको बाम लगाना चाहिए ना कि उसका अनादर करना चाहिए।’
इसपर प्रशांत भूषण की तरफ से कोर्ट में पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा, ‘मैं न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा को याद दिलाता हूं कि जब वह कलकत्ता हाई कोर्ट के वकील थे, तब आपकी लॉर्डशिप ने सीएम ममता बनर्जी की टिप्पणी पर कोई कार्रवाई नहीं की थी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ‘भ्रष्ट न्यायधीश’ वाले बयान पर आपकी लॉर्डशिप ने कोई अवमानना का केस नहीं चलाया।’ वरिष्ठ वकील डॉक्टर राजीव धवन ने आगे कहा कि अगर कड़ी आलोचना नहीं होगी तो ‘सुप्रीम कोर्ट ढह जाएगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि कोर्ट द्वारा सुनाए गए सज़ा के फैसले में ‘अर्धसत्य और विरोधाभास’ थे। मामले में 20 अगस्त के फैसले पर सवाल उठाते हुए राजीव धवन ने कहा कि प्रशांत भूषण पर माफी मांगने के लिए दबाव डाले जा रहे हैं। कोर्ट के बार-बार माफी की अपील वाली बात को वकील राजीव धवन ने ‘ज़बरदस्ती का अभ्यास’ बताया है।’ वहीं अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि जबतक जांच पूरी नहीं हो जाती प्रशांत भूषण को सज़ा नहीं दी सकती। उन्होंने कहा कि मामले को उस कवायद में शामिल किए बग़ैर रफा-दफा कर देना चाहिए। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए कहा, ‘प्रशांत भूषण को सज़ा देना ज़रूरी नहीं है, उन्हें चेतावनी दी जा सकती है। इस मामले में लोकतंत्र का पालन किया जाना चाहिए क्योंकि भूषण ने अपनी बोलने की आज़ादी का इस्तेमाल किया है। अगर कोर्ट प्रशांत भूषण को छोड़ देती है तो यह सहारणीय होगा।’ इन सभी मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘एक अदालत के अधिकारी और एक राजनेता में अंतर होता है। प्रशांत भूषण अगर कुछ कहते हैं तो लोग उसे मानते हैं। लोग सोचेंगे की प्रशांत भूषण जो भी कह रहे हैं वो सही है। अगर ऐसे किसी और ने किया होता तो नज़रअंदाज़ करना आसान था लेकिन अगर प्रशांत भूषण कुछ कहते हैं तो उसका कुछ प्रभाव पड़ता है, आपको कहीं न कहीं अंतर करना होगा।’ ‘निष्पक्ष आलोचना कोई समस्या नहीं है, यह संस्था के लिए फायदेमंद है। आप सिस्टम का हिस्सा हैं, आप सिस्टम को बर्बाद नहीं कर सकते। अगर हम एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करेंगे तो इस संस्था पर किसका विश्वास होगा ? आपको सहनशील होना होगा, देखें कि अदालत क्या कर रही है और क्यों, सिर्फ हमला न करें। न्यायधीश खुद के बचाव में मीडिया में नहीं जा सकते।’ बता दें प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना के दो मामले चल रहे हैं। इससे पहले कोर्ट ने 2009 के अवमानना मामले की सुनवाई उच्च बेंच के लिए सूचिबद्ध करने के लिए निर्देश दिए, जिसकी सुनवाई 10 सितंबर को होगी।
इसपर प्रशांत भूषण की तरफ से कोर्ट में पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा, ‘मैं न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा को याद दिलाता हूं कि जब वह कलकत्ता हाई कोर्ट के वकील थे, तब आपकी लॉर्डशिप ने सीएम ममता बनर्जी की टिप्पणी पर कोई कार्रवाई नहीं की थी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ‘भ्रष्ट न्यायधीश’ वाले बयान पर आपकी लॉर्डशिप ने कोई अवमानना का केस नहीं चलाया।’ वरिष्ठ वकील डॉक्टर राजीव धवन ने आगे कहा कि अगर कड़ी आलोचना नहीं होगी तो ‘सुप्रीम कोर्ट ढह जाएगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि कोर्ट द्वारा सुनाए गए सज़ा के फैसले में ‘अर्धसत्य और विरोधाभास’ थे। मामले में 20 अगस्त के फैसले पर सवाल उठाते हुए राजीव धवन ने कहा कि प्रशांत भूषण पर माफी मांगने के लिए दबाव डाले जा रहे हैं। कोर्ट के बार-बार माफी की अपील वाली बात को वकील राजीव धवन ने ‘ज़बरदस्ती का अभ्यास’ बताया है।’ वहीं अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि जबतक जांच पूरी नहीं हो जाती प्रशांत भूषण को सज़ा नहीं दी सकती। उन्होंने कहा कि मामले को उस कवायद में शामिल किए बग़ैर रफा-दफा कर देना चाहिए। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए कहा, ‘प्रशांत भूषण को सज़ा देना ज़रूरी नहीं है, उन्हें चेतावनी दी जा सकती है। इस मामले में लोकतंत्र का पालन किया जाना चाहिए क्योंकि भूषण ने अपनी बोलने की आज़ादी का इस्तेमाल किया है। अगर कोर्ट प्रशांत भूषण को छोड़ देती है तो यह सहारणीय होगा।’ इन सभी मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘एक अदालत के अधिकारी और एक राजनेता में अंतर होता है। प्रशांत भूषण अगर कुछ कहते हैं तो लोग उसे मानते हैं। लोग सोचेंगे की प्रशांत भूषण जो भी कह रहे हैं वो सही है। अगर ऐसे किसी और ने किया होता तो नज़रअंदाज़ करना आसान था लेकिन अगर प्रशांत भूषण कुछ कहते हैं तो उसका कुछ प्रभाव पड़ता है, आपको कहीं न कहीं अंतर करना होगा।’ ‘निष्पक्ष आलोचना कोई समस्या नहीं है, यह संस्था के लिए फायदेमंद है। आप सिस्टम का हिस्सा हैं, आप सिस्टम को बर्बाद नहीं कर सकते। अगर हम एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करेंगे तो इस संस्था पर किसका विश्वास होगा ? आपको सहनशील होना होगा, देखें कि अदालत क्या कर रही है और क्यों, सिर्फ हमला न करें। न्यायधीश खुद के बचाव में मीडिया में नहीं जा सकते।’ बता दें प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना के दो मामले चल रहे हैं। इससे पहले कोर्ट ने 2009 के अवमानना मामले की सुनवाई उच्च बेंच के लिए सूचिबद्ध करने के लिए निर्देश दिए, जिसकी सुनवाई 10 सितंबर को होगी।
ताज़ा वीडियो