UP चुनाव एक महीने देरी से कराने पर विचार; रमज़ान में मुस्लिम मतदाता कैसे करेंगे मतदान ?
अब देखने वाली बात होगी, अगर राज्य के विधानसभा चुनाव की तारीखें बढ़ाई जाती है तो रमज़ान के महीने में कितने फीसदी मुस्लिम वोटर मुख्य तौर पर मुस्लिम महिला वोटर, वोट डालने के लिए निकलती हैं...

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीख़ों को लेकर एडमिनिस्ट्रेशन में बहस छिड़ी हुई है। माना जा रहा है कि राज्य में विधानसभा चुनाव एक महीने देरी से कराने की योजना बनाई जा रही है। जानकार मानते हैं कि अगर चुनाव की तारीख़ें बढ़ाई जाती है तो रमज़ान की वजह से इसका सीधा असर मतदान पर पड़ सकता है।
मुसलमानों का पवित्र महीना रमज़ान के 2 अप्रैल से शुरु होने की संभावना है। रमज़ान के महीने में मुसलमान रोज़ा रखते हैं और उनका इस महीने में घर से निकलना बेहद कम होता है। कहा जाता है कि रोज़े के दौरान अगर मतदान होता है तो इसका सीधा असर मतदान पर पड़ना तय है।
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 20 फीसदी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, रोहिलखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां 40 फीसदी तक मुस्लिम मतदाता हैं जो चुनाव परिणाम निर्धारित कर सकते हैं। मुरादाबाद एक प्रशासनिक मुख्यालय है जिनमें बिजनौर, रामपुर, अमरोहा और संभल ज़िले शामिल हैं। यहां 27 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता जीत तय कर सकते हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में इनमें 15 सीटों पर बीजेपी और 12 सीटों पर समाजवादी पार्टी की जीत हुई थी जिसने कांग्रेस और बीएसपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। माना जाता है कि मुसलमानों के अलावा इन ज़िलों में ओबीसी और दलित समुदाय की मिक्स्ड आबादी है। मुस्लिम और दलित अगर साथ मिलकर एक ही पार्टी के लिए वोट करें तो उस पार्टी की जीत तय मानी जाती है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ 2017 के चुनाव में इन ज़िलों में दलित वोटों के ध्रुविकरण की वजह से बीजेपी ज़्यादा सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यहां 6 सीटों का नुक़सान हुआ था। 2017 के चुनाव में बीजेपी को मुख्य तौर पर रामपुर, मुरादाबाद, अमरोहा, मेरठ, सहारनपुर और अलीगढ़ की कई विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी-ख़ासी है। अगर 59 मुस्लिम बहुल सीटों पर वोटिंग पैटर्न देखें तो पता चलता है कि 2017 के चुनाव में 39 फीसदी वोट बीजेपी को मिले थे, जो 2014 में 43 फीसदी के मुक़ाबले कम था। हालंकि एसपी को 29 फीसदी, बीएसपी को 18 फीसदी और कांग्रेस को सात फीसदी मुस्लिम मतदाताओं ने वोट किया था। माना जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद मुस्लिम मतदाताओं का मूड बदल गया है और वो इस बार कांग्रेस या समाजवादी पार्टी के पक्ष में मतदान कर सकते हैं। इस बार के चुनाव प्रचार में बीजेपी हिंदू मुद्दों को ज़्यादा उठा रही है। अब देखने वाली बात होगी, अगर राज्य के विधानसभा चुनाव की तारीखें बढ़ाई जाती है तो रमज़ान के महीने में कितने फीसदी मुस्लिम वोटर मुख्य तौर पर मुस्लिम महिला वोटर, वोट डालने के लिए निकलती हैं। चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार की विधानसभा में पहली मीटिंग 15 मई 2017 को हुई थी। आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़ मौजूदा सरकार का कार्यकाल 14 मई 2022 को ख़त्म होना है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि चुनाव आयोग उत्तर प्रदेश में अप्रैल महीने में चरणबद्घ चुनाव करा सकता है।
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 20 फीसदी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, रोहिलखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां 40 फीसदी तक मुस्लिम मतदाता हैं जो चुनाव परिणाम निर्धारित कर सकते हैं। मुरादाबाद एक प्रशासनिक मुख्यालय है जिनमें बिजनौर, रामपुर, अमरोहा और संभल ज़िले शामिल हैं। यहां 27 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता जीत तय कर सकते हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में इनमें 15 सीटों पर बीजेपी और 12 सीटों पर समाजवादी पार्टी की जीत हुई थी जिसने कांग्रेस और बीएसपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। माना जाता है कि मुसलमानों के अलावा इन ज़िलों में ओबीसी और दलित समुदाय की मिक्स्ड आबादी है। मुस्लिम और दलित अगर साथ मिलकर एक ही पार्टी के लिए वोट करें तो उस पार्टी की जीत तय मानी जाती है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ 2017 के चुनाव में इन ज़िलों में दलित वोटों के ध्रुविकरण की वजह से बीजेपी ज़्यादा सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यहां 6 सीटों का नुक़सान हुआ था। 2017 के चुनाव में बीजेपी को मुख्य तौर पर रामपुर, मुरादाबाद, अमरोहा, मेरठ, सहारनपुर और अलीगढ़ की कई विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी-ख़ासी है। अगर 59 मुस्लिम बहुल सीटों पर वोटिंग पैटर्न देखें तो पता चलता है कि 2017 के चुनाव में 39 फीसदी वोट बीजेपी को मिले थे, जो 2014 में 43 फीसदी के मुक़ाबले कम था। हालंकि एसपी को 29 फीसदी, बीएसपी को 18 फीसदी और कांग्रेस को सात फीसदी मुस्लिम मतदाताओं ने वोट किया था। माना जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद मुस्लिम मतदाताओं का मूड बदल गया है और वो इस बार कांग्रेस या समाजवादी पार्टी के पक्ष में मतदान कर सकते हैं। इस बार के चुनाव प्रचार में बीजेपी हिंदू मुद्दों को ज़्यादा उठा रही है। अब देखने वाली बात होगी, अगर राज्य के विधानसभा चुनाव की तारीखें बढ़ाई जाती है तो रमज़ान के महीने में कितने फीसदी मुस्लिम वोटर मुख्य तौर पर मुस्लिम महिला वोटर, वोट डालने के लिए निकलती हैं। चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार की विधानसभा में पहली मीटिंग 15 मई 2017 को हुई थी। आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़ मौजूदा सरकार का कार्यकाल 14 मई 2022 को ख़त्म होना है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि चुनाव आयोग उत्तर प्रदेश में अप्रैल महीने में चरणबद्घ चुनाव करा सकता है।
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