U'Khand Results: भगवा पार्टी को राज्य में अविश्वसनीय जीत कैसे मिली ?

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर जीत की तरफ बढ़ रही है। पार्टी 48 सीटों पर आगे चल रही है और सत्तारूढ़ दल को 9 सीटों का नुक़सान होता दिख रहा है। सीएम धामी अपनी खटिमा सीट से भुवन चंद्र कापड़ी से सात हज़ार वोटों से पीछे चल रहे हैं।
दूसरी तरफ चुनाव में कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे राज्य के पूर्व सीएम हरीश रावत भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट से 16 हज़ार से ज़्यादा वोटों से पीछे चल रहे थे जिनके अब हार का ऐलान हो चुका है।
2017 के विधानसभा चुनाव में, बीजेपी ने 57 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस को 11 और निर्दलीय को दो सीटें मिली थीं। प्रतिशत के हिसाब से बीजेपी को 46.5 फीसदी, कांग्रेस को 33.5 फीसदी, निर्दलीय को दस फीसदी, बीएसपी को सात फीसदी और अन्य के पक्ष में तीन फीसदी वोट थे। हालांकि बाद में भगवा पार्टी ने चार बार अपने मुख्यमंत्री बदले। इससे समझा जा सकता है कि पार्टी को इस जीत का विश्वास कम ही था। अब सवाल है कि आख़िरी बीजेपी की जीत के पीछे वजह क्या है? कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में एलपीजी सिलिंडर की कीमतों को 500 रूपये से कम रखने का वादा किया था। इनके अलावा कांग्रेस ने रोजगार, पांच लाख परिवारों को आर्थिक भत्ता, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 40 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया था। लेकिन ऐसा लगता है कि मतदाताओं ने राष्ट्रीय सुरक्षा, सेना कल्याण और धार्मिक पर्यटन के मुद्दे पर मतदान किया है। माना जा रहा है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की राष्ट्रीय स्तर पर छवि से भी पार्टी को नुक़सान का सामना करना पड़ा है। मसलन देशभर में कांग्रेस पार्टी की साख़ ख़त्म होती जा रही है। पार्टी को पंजाब में भी बुरी हार का सामना करना पड़ा। साथ ही गोवा, मणिपुर और उत्तर प्रदेश में भी पार्टी निचले स्तर पर पहुंच गई है। कांग्रेस पार्टी के पास कोई ऐसा नेता भी नहीं है जो मंच पर जाकर मतदाताओं को अपने विश्वास में ले सके। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की छवि भी ख़राब है। उनके नेतृत्व में पार्टी ने अबतक के विधानसभा चुनावों में कोई भी बड़ी जीत हासिल नहीं की। इनके अलावा लंबे समय से पार्टी के भीतर कलह चल रही है, जो ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसा लगता है कि इन सभी मसलों से मतादाता प्रभावित हुए और कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने से ख़ुदको परहेज़ किया। कमोबेश यही हाल अन्य राज्यों में भी देखने को मिला है। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह, राजनाथ सिंह और यहां तक कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल थे जो उत्तराखंड से ही आते हैं। भगवा पार्टी के इन कार्यकर्ताओं ने राज्य में कई रैलियां की जिसकी तुलना में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने कम रैलियों को संबोधित किया। भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कांग्रेस और उसके उम्मीदवारों पर तुष्टिकरण के आरोप भी लगाए गए और इन आरोपों को भगवा नेताओं ने खूब भुनाया। अपनी रैलियों में अमित शाह को हरीश रावत पर मुस्लिम विश्वविद्यालय का वादा करने और नमाज़ के लिए राजमार्गों को बंद करने का आरोप लगाते देखा गया। जैसा कि उत्तराखंड को “देवभूमि” के रूप में पहचाना जाता है, ऐसा प्रतीत होता है कि बीजेपी को इस तरह के आरोपों ने जीत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई है। उत्तराखंड धार्मिक पर्यटन पर निर्भर है और और राज्य के लोगों की सेना में भी अच्छी भूमिका है। भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर सेना कल्याण, एक मज़बूत केन्द्रीय नेतृत्व और हिंदुत्व पार्टी की छवि है जिसने पार्टी को “देवभूमि” में जीत दिलाने में मदद की।
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2017 के विधानसभा चुनाव में, बीजेपी ने 57 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस को 11 और निर्दलीय को दो सीटें मिली थीं। प्रतिशत के हिसाब से बीजेपी को 46.5 फीसदी, कांग्रेस को 33.5 फीसदी, निर्दलीय को दस फीसदी, बीएसपी को सात फीसदी और अन्य के पक्ष में तीन फीसदी वोट थे। हालांकि बाद में भगवा पार्टी ने चार बार अपने मुख्यमंत्री बदले। इससे समझा जा सकता है कि पार्टी को इस जीत का विश्वास कम ही था। अब सवाल है कि आख़िरी बीजेपी की जीत के पीछे वजह क्या है? कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में एलपीजी सिलिंडर की कीमतों को 500 रूपये से कम रखने का वादा किया था। इनके अलावा कांग्रेस ने रोजगार, पांच लाख परिवारों को आर्थिक भत्ता, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 40 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया था। लेकिन ऐसा लगता है कि मतदाताओं ने राष्ट्रीय सुरक्षा, सेना कल्याण और धार्मिक पर्यटन के मुद्दे पर मतदान किया है। माना जा रहा है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की राष्ट्रीय स्तर पर छवि से भी पार्टी को नुक़सान का सामना करना पड़ा है। मसलन देशभर में कांग्रेस पार्टी की साख़ ख़त्म होती जा रही है। पार्टी को पंजाब में भी बुरी हार का सामना करना पड़ा। साथ ही गोवा, मणिपुर और उत्तर प्रदेश में भी पार्टी निचले स्तर पर पहुंच गई है। कांग्रेस पार्टी के पास कोई ऐसा नेता भी नहीं है जो मंच पर जाकर मतदाताओं को अपने विश्वास में ले सके। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की छवि भी ख़राब है। उनके नेतृत्व में पार्टी ने अबतक के विधानसभा चुनावों में कोई भी बड़ी जीत हासिल नहीं की। इनके अलावा लंबे समय से पार्टी के भीतर कलह चल रही है, जो ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसा लगता है कि इन सभी मसलों से मतादाता प्रभावित हुए और कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने से ख़ुदको परहेज़ किया। कमोबेश यही हाल अन्य राज्यों में भी देखने को मिला है। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह, राजनाथ सिंह और यहां तक कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल थे जो उत्तराखंड से ही आते हैं। भगवा पार्टी के इन कार्यकर्ताओं ने राज्य में कई रैलियां की जिसकी तुलना में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने कम रैलियों को संबोधित किया। भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कांग्रेस और उसके उम्मीदवारों पर तुष्टिकरण के आरोप भी लगाए गए और इन आरोपों को भगवा नेताओं ने खूब भुनाया। अपनी रैलियों में अमित शाह को हरीश रावत पर मुस्लिम विश्वविद्यालय का वादा करने और नमाज़ के लिए राजमार्गों को बंद करने का आरोप लगाते देखा गया। जैसा कि उत्तराखंड को “देवभूमि” के रूप में पहचाना जाता है, ऐसा प्रतीत होता है कि बीजेपी को इस तरह के आरोपों ने जीत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई है। उत्तराखंड धार्मिक पर्यटन पर निर्भर है और और राज्य के लोगों की सेना में भी अच्छी भूमिका है। भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर सेना कल्याण, एक मज़बूत केन्द्रीय नेतृत्व और हिंदुत्व पार्टी की छवि है जिसने पार्टी को “देवभूमि” में जीत दिलाने में मदद की।
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