भोपाल में सीवेज सफाई के लिए गए तीन मज़दूरों की मौत, दस साल में मारे गए 631 मज़दूर

मैनुअल स्केवेंजिंग पर प्रतिबंध के बावजूद मध्य प्रदेश के भोपाल में सीवेज की सफाई के लिए उतरे तीन मज़दूरों की मौत हो गई है। सीवेज लाइनों को साफ करने के लिए सुरक्षा प्रक्रियाओं और उपकरणों के इस्तेमाल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद यह हादसा हुआ है।
गुरुवार को अहमदाबाद फायर एंड इमरजेंसी सर्विसेज़ के कर्मियों ने दो मज़दूरों के शव निकाले हैं। जबकि एक मज़दूर के शव का पता नहीं चल पा रहा है और अधिकारियों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया है। अहमदाबाद मिरर की रिपोर्ट के मुताबिक़ राजेश कानू मेड़ा और भरत मनु मेड़ा के शवों को बरामद किया गया है। यह संदेह है कि दोनों की मौत सीवेज लाइन के अंदर ज़हरीली गैस की वजह से हुई है।
रिपोर्ट के मुताबिक़ 30 फीट तक खुदाई किए जाने के बावजूद तीसरे मज़दूर संदीप कानू मेड़ा के शव का पता नहीं चल सका है। इन सभी मृतकों में दो सगे भाई थे जो राज्य के दाहोद ज़िले के रहने वाले थे। देश में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई एक जोखिम भरा काम है और मज़दूर चंद रुपयों के लिए बिना सुरक्षा उपकरण के जान जोखिम में डालकर सेप्टिक और सीवर टैंक की सफाई करने उतर जाते हैं। ग़ौरतलब है कि हाल ही में केन्द्र सरकार के संसद में दिए एक जवाब से विवाद खड़ा हो गया था। केन्द्र ने मैनुअल स्केवेंजिंग की वजह से एक भी मौत से इनकार किया था। 28 जुलाई को राज्यसभा में सामाजिक न्याय मंत्री रामदास आठवले ने मल्लिकार्जुन खड़गे और एल हनुमंतैया की ओर से पूछे गए एक सवाल जवाब में बताया था कि 'बीते पांच वर्षों में मैनुअल स्केवेंजिंग से किसी मौत का मामला सामने नहीं आया है।’ जबकि बजट सत्र के दौरान लोकसभा में एक लिखित जवाब में सामाजिक न्याय मंत्री रामदास आठवले ने ही बताया था कि बीते पांच साल में सेप्टिक टैंक और सीवर साफ़ करने के दौरान 340 लोगों की मौत हुई। यह डेटा 31 दिसंबर, 2020 तक का था। साल 2020 में सरकार की ही संस्था राष्ट्रीय सफ़ाई कर्मचारी आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि साल 2010 से लेकर मार्च 2020 तक यानी 10 साल के भीतर 631 लोगों की मौत सेप्टिक टैंक और सीवर साफ़ करने के दौरान हो गई। और अब हाल ही में हुई तीन मज़दूरों की मौत के बावजूद केन्द्र का मैनुअल स्केवेंजर्स की मौतों से इनकार करना बेमानी होगी।
रिपोर्ट के मुताबिक़ 30 फीट तक खुदाई किए जाने के बावजूद तीसरे मज़दूर संदीप कानू मेड़ा के शव का पता नहीं चल सका है। इन सभी मृतकों में दो सगे भाई थे जो राज्य के दाहोद ज़िले के रहने वाले थे। देश में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई एक जोखिम भरा काम है और मज़दूर चंद रुपयों के लिए बिना सुरक्षा उपकरण के जान जोखिम में डालकर सेप्टिक और सीवर टैंक की सफाई करने उतर जाते हैं। ग़ौरतलब है कि हाल ही में केन्द्र सरकार के संसद में दिए एक जवाब से विवाद खड़ा हो गया था। केन्द्र ने मैनुअल स्केवेंजिंग की वजह से एक भी मौत से इनकार किया था। 28 जुलाई को राज्यसभा में सामाजिक न्याय मंत्री रामदास आठवले ने मल्लिकार्जुन खड़गे और एल हनुमंतैया की ओर से पूछे गए एक सवाल जवाब में बताया था कि 'बीते पांच वर्षों में मैनुअल स्केवेंजिंग से किसी मौत का मामला सामने नहीं आया है।’ जबकि बजट सत्र के दौरान लोकसभा में एक लिखित जवाब में सामाजिक न्याय मंत्री रामदास आठवले ने ही बताया था कि बीते पांच साल में सेप्टिक टैंक और सीवर साफ़ करने के दौरान 340 लोगों की मौत हुई। यह डेटा 31 दिसंबर, 2020 तक का था। साल 2020 में सरकार की ही संस्था राष्ट्रीय सफ़ाई कर्मचारी आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि साल 2010 से लेकर मार्च 2020 तक यानी 10 साल के भीतर 631 लोगों की मौत सेप्टिक टैंक और सीवर साफ़ करने के दौरान हो गई। और अब हाल ही में हुई तीन मज़दूरों की मौत के बावजूद केन्द्र का मैनुअल स्केवेंजर्स की मौतों से इनकार करना बेमानी होगी।
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