आर्थिक रूप से कमज़ोर इन आठ राज्यों में वैक्सीनेशन का ख़र्च स्वास्थ्य बजट का 30 फीसदी
वैक्सीनेशन के दूसरे चरण तक कंपनियों ने अपने वैक्सीन के दाम बढ़ा दिए...

देश के आठ राज्य ऐसे हैं जिन्होंने 18-44 साल के उम्र के लोगों के लिए मुफ़्त वैक्सीनेशन का ऐलान किया है। इनमें बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश शामिल है। डेटा वेबसाइट इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इन राज्यों को इसके लिए अपने स्वास्थ्य बजट का 30 फीसदी हिस्सा ख़र्च करना होगा।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर राज्य सीरम इंस्टीट्यूट की कोवीशील्ड वैक्सीन की आपूर्ति करते हैं तो उनके स्वास्थ्य बजट पर 23 फीसदी का लोड पड़ेगा और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन की आपूर्ति से इन राज्यों को अपने स्वास्थ्य बजट का 30 फीसदी हिस्सा ख़र्च करना पड़ेगा। हालांकि शुरुआती दिनों में केन्द्र सरकार ने कहा था कि देश में वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां अपने वैक्सीन के दाम 150 रूपये रखेगी जो दुनिया में सबसे सस्ता होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वैक्सीनेशन के दूसरे चरण तक इन कंपनियों ने अपने वैक्सीन के दाम बढ़ा दिए।
मसलन सीरम इंस्टीट्यूट कोवीशील्ड वैक्सीन के लिए प्रति डोज़ 300 रूपये वसूल रहा है और भारत बायोटेक की वैक्सीन प्रति डोज़ के हिसाब से 400 रूपये में मिल रही है। ऐसे में इसका पूरा बोझ आर्थिक रूप से कमज़ोर राज्यों के बजट पर पड़ रहा है। डेटा वेबसाइट इंडिया स्पेंड ने पीएरसी लेजिस्लेटिव रिसर्च के हवाले से बताया है कि वैक्सीन आपूर्ति का अतिरिक्त वित्तीय बोझ ओडिशा को छोड़कर सभी आठ राज्यों पर पड़ेगा। हालांकि कोरोना महामारी में राज्यों की कमाई घट गई है और सोशल सेफ्टी पर ख़र्च बढ़ गया है। ऐसे में वैक्सीन आपूर्ति का अतिरिक्त बोझ इन राज्यों को आर्थिक रूप से और भी कमज़ोर कर देगा। रिपोर्ट के मुताबिक़ केन्द्र सरकार ने 2021-22 के बजट में वैक्सीनेशन के लिए 35 हज़ार करोड़ रूपये आवंटित किए थे। केन्द्र ने इसमें से अबतक 8.5 फीसदी यानि करीब तीन हज़ार करोड़ रूपये ही ख़र्च किए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि शेष 32,000 करोड़ रुपये देश की संपूर्ण अडल्ट आबादी को वैक्सीनेट करने के लिए पर्याप्त है। अगर भारत बायोटेक के कोवैक्सीन की करें तो सबसे ज़्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश को अपनी अडल्ट आबादी को वैक्सीनेट करने के लिए स्वास्थ्य बजट का 23 फीसदी हिस्सा ख़र्च करना पड़ेगा। मसलन राज्य के स्वास्थ्य बजट पर 2000-7,620 करोड़ रूपये तक का बोझ पड़ सकता है। इसी तरह बिहार को अपने स्वास्थ्य बजट का करीब 30 फीसदी, झारखंड को 29.34 फीसदी, मध्य प्रदेश को 24.55 फीसदी और उत्तराखंड को करीब 13 फीसदी ख़र्च करना पड़ सकता है। डेटा वेबसाइट ने एक स्वास्थ्य अर्थशास्त्री के हवाले से बताया है कि उत्तर प्रदेश को अपनी पूरी आबादी को वैक्सीनेट करने के लिए 15,000 करोड़ रूपये की ज़रूरत पड़ेगी। अगर स्वास्थ्य बजट की बात करें तो राज्य का हेल्थकेयर इन्फ्रास्ट्रक्चर, मेडिकल कॉलेज, आयुष्मान भारत और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पर ख़र्च लगभग इतना ही है। यानि राज्य को इसके लिए अलग-अलग क्षेत्रों के लिए आवंटित राशी से भी ख़र्च करने की नौबत आ जाएगी। कमोबेश यही हाल अन्य राज्यों का भी है। राज्यों की आबादी के हिसाब से उनका स्वास्थ्य पर ख़र्च कम हैं। राज्यों के अलावा केन्द्र की कोविड वैक्सीन ख़रीद पॉलिसी प्राइवेट अस्पतालों को मैन्युफैक्चरर से सीधे खरीद की इजाज़त देता है। ऐसे में अस्पताल अपने हिसाब से भी वैक्सीन की कीमत तय कर सकते हैं जिसकी मार उन लोगों पर पड़ रही है जो यह अफोर्ड नहीं कर सकते।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर राज्य सीरम इंस्टीट्यूट की कोवीशील्ड वैक्सीन की आपूर्ति करते हैं तो उनके स्वास्थ्य बजट पर 23 फीसदी का लोड पड़ेगा और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन की आपूर्ति से इन राज्यों को अपने स्वास्थ्य बजट का 30 फीसदी हिस्सा ख़र्च करना पड़ेगा। हालांकि शुरुआती दिनों में केन्द्र सरकार ने कहा था कि देश में वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां अपने वैक्सीन के दाम 150 रूपये रखेगी जो दुनिया में सबसे सस्ता होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वैक्सीनेशन के दूसरे चरण तक इन कंपनियों ने अपने वैक्सीन के दाम बढ़ा दिए।
मसलन सीरम इंस्टीट्यूट कोवीशील्ड वैक्सीन के लिए प्रति डोज़ 300 रूपये वसूल रहा है और भारत बायोटेक की वैक्सीन प्रति डोज़ के हिसाब से 400 रूपये में मिल रही है। ऐसे में इसका पूरा बोझ आर्थिक रूप से कमज़ोर राज्यों के बजट पर पड़ रहा है। डेटा वेबसाइट इंडिया स्पेंड ने पीएरसी लेजिस्लेटिव रिसर्च के हवाले से बताया है कि वैक्सीन आपूर्ति का अतिरिक्त वित्तीय बोझ ओडिशा को छोड़कर सभी आठ राज्यों पर पड़ेगा। हालांकि कोरोना महामारी में राज्यों की कमाई घट गई है और सोशल सेफ्टी पर ख़र्च बढ़ गया है। ऐसे में वैक्सीन आपूर्ति का अतिरिक्त बोझ इन राज्यों को आर्थिक रूप से और भी कमज़ोर कर देगा। रिपोर्ट के मुताबिक़ केन्द्र सरकार ने 2021-22 के बजट में वैक्सीनेशन के लिए 35 हज़ार करोड़ रूपये आवंटित किए थे। केन्द्र ने इसमें से अबतक 8.5 फीसदी यानि करीब तीन हज़ार करोड़ रूपये ही ख़र्च किए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि शेष 32,000 करोड़ रुपये देश की संपूर्ण अडल्ट आबादी को वैक्सीनेट करने के लिए पर्याप्त है। अगर भारत बायोटेक के कोवैक्सीन की करें तो सबसे ज़्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश को अपनी अडल्ट आबादी को वैक्सीनेट करने के लिए स्वास्थ्य बजट का 23 फीसदी हिस्सा ख़र्च करना पड़ेगा। मसलन राज्य के स्वास्थ्य बजट पर 2000-7,620 करोड़ रूपये तक का बोझ पड़ सकता है। इसी तरह बिहार को अपने स्वास्थ्य बजट का करीब 30 फीसदी, झारखंड को 29.34 फीसदी, मध्य प्रदेश को 24.55 फीसदी और उत्तराखंड को करीब 13 फीसदी ख़र्च करना पड़ सकता है। डेटा वेबसाइट ने एक स्वास्थ्य अर्थशास्त्री के हवाले से बताया है कि उत्तर प्रदेश को अपनी पूरी आबादी को वैक्सीनेट करने के लिए 15,000 करोड़ रूपये की ज़रूरत पड़ेगी। अगर स्वास्थ्य बजट की बात करें तो राज्य का हेल्थकेयर इन्फ्रास्ट्रक्चर, मेडिकल कॉलेज, आयुष्मान भारत और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पर ख़र्च लगभग इतना ही है। यानि राज्य को इसके लिए अलग-अलग क्षेत्रों के लिए आवंटित राशी से भी ख़र्च करने की नौबत आ जाएगी। कमोबेश यही हाल अन्य राज्यों का भी है। राज्यों की आबादी के हिसाब से उनका स्वास्थ्य पर ख़र्च कम हैं। राज्यों के अलावा केन्द्र की कोविड वैक्सीन ख़रीद पॉलिसी प्राइवेट अस्पतालों को मैन्युफैक्चरर से सीधे खरीद की इजाज़त देता है। ऐसे में अस्पताल अपने हिसाब से भी वैक्सीन की कीमत तय कर सकते हैं जिसकी मार उन लोगों पर पड़ रही है जो यह अफोर्ड नहीं कर सकते।
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