महामारी के बाद विदेश पढ़ाई के लिए जाने वाले भारतीय की संख्या दोगुनी हुई !

कोरोना महामारी के बाद से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारतीय छात्रों का विदेश जाना दोगुना हो गया है। महामारी के दौरान देश में असमानता भी बढ़ी है जो भारतीय छात्रों के इन विदेशी उड़ानों में साफ झलकता है।
हाल ही में ऑक्सफैम ने "Inequality Kills" नाम से प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी कि भारत में महामारी के दौरान 84 फीसदी परिवारों की कमाई घटी है। यह वे लोग हैं जो सामान्यत: मिडिल क्लास की श्रेणी में आते हैं।
शैक्षिक बुनियादी ढांचे और सुविधाओं की कमी की वजह से 2021 में 11.33 लाख (11,33,749) से ज़्यादा छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले गए। 2020 में, यह संख्या 261,406 थी, हालांकि इसके बारे में यही माना जा रहा है कि यह आंकड़े कम हो सकते हैं। साल 2020 में महामारी के दौरान बड़ी संख्या में विदेश पढ़ने जाने वाले छात्र वैश्विक लॉकडाउन की वजह से ऑनलाइन क्लास ले रहे थे लेकिन महामारी के लगभग ख़त्म होने और वैश्विक लॉकडाउन में ढिलाई के बाद से विदेश जाने वाले भारतीय की संख्या दोगुने की रफ्तार से बढ़ी, लेकिन 2019 में यह संख्या 588,931 थी और 2018 में 520,342 रही थी। इसका मतलब है कि महामारी के दौरान उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या पिछले साल यानी 2019 की तुलना में दोगुनी हो गई है। ग़ौरलतब है कि संख्या में यह बढ़ोत्तरी कॉलेज में ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, एडमिशन की कम लागत की वजह से हुई है जिससे भारतीय छात्रों को वीज़ा मिलने में आसानी हुई। छात्रों को विदेश में पढ़ाई करने में मदद करने वाले प्लेटफॉर्म योकिट के संस्थापक और सीईओ सुमित जैन ने कहा कि विदेश में पढ़ाई के लिए ऐप पर पूछे जाने वाले प्रश्नों की संख्या 2019 में 5 लाख से दोगुनी होकर 2021 में 10 लाख हो गई। इस चार्ट में दर्शाया गया है कि पिछले पांच सालों में विदेश जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। Gonewsindia ने आपको बताया था कि भारतीय छात्र विदेशों में अपनी शिक्षा पर जितना ख़र्च कर रहे थे उससे कम ही भारत की सरकार उच्च शिक्षा पर प्रति छात्र ख़र्च कर रही थी। कंसल्टिंग फर्म रेड सीर की “Higher Education Abroad” शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2024 तक विदेशों में 18 लाख से ज़्यादा भारतीय छात्र होंगे। इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि इन छात्रों द्वारा विदेशों में कुल खर्च 85 अरब डॉलर होगा, जो प्रति छात्र लगभग 89 लाख रुपये बनता है। इसके उलट भारत सरकार अपने छात्रों पर उच्च शिक्षा के लिए दस हज़ार रूपये से कुछ ज़्यादा ख़र्च करती है। एड-टेक क्षेत्र के तेजी से विकास, निजीकरण और विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों की बढ़ती संख्या के साथ, ऐसा लगता है कि विदेशों में उच्च शिक्षा की मांग उन छात्रों द्वारा की जा रही है जिनके परिवार इसके लिए भुगतान कर सकते हैं।
शैक्षिक बुनियादी ढांचे और सुविधाओं की कमी की वजह से 2021 में 11.33 लाख (11,33,749) से ज़्यादा छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले गए। 2020 में, यह संख्या 261,406 थी, हालांकि इसके बारे में यही माना जा रहा है कि यह आंकड़े कम हो सकते हैं। साल 2020 में महामारी के दौरान बड़ी संख्या में विदेश पढ़ने जाने वाले छात्र वैश्विक लॉकडाउन की वजह से ऑनलाइन क्लास ले रहे थे लेकिन महामारी के लगभग ख़त्म होने और वैश्विक लॉकडाउन में ढिलाई के बाद से विदेश जाने वाले भारतीय की संख्या दोगुने की रफ्तार से बढ़ी, लेकिन 2019 में यह संख्या 588,931 थी और 2018 में 520,342 रही थी। इसका मतलब है कि महामारी के दौरान उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या पिछले साल यानी 2019 की तुलना में दोगुनी हो गई है। ग़ौरलतब है कि संख्या में यह बढ़ोत्तरी कॉलेज में ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, एडमिशन की कम लागत की वजह से हुई है जिससे भारतीय छात्रों को वीज़ा मिलने में आसानी हुई। छात्रों को विदेश में पढ़ाई करने में मदद करने वाले प्लेटफॉर्म योकिट के संस्थापक और सीईओ सुमित जैन ने कहा कि विदेश में पढ़ाई के लिए ऐप पर पूछे जाने वाले प्रश्नों की संख्या 2019 में 5 लाख से दोगुनी होकर 2021 में 10 लाख हो गई। इस चार्ट में दर्शाया गया है कि पिछले पांच सालों में विदेश जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। Gonewsindia ने आपको बताया था कि भारतीय छात्र विदेशों में अपनी शिक्षा पर जितना ख़र्च कर रहे थे उससे कम ही भारत की सरकार उच्च शिक्षा पर प्रति छात्र ख़र्च कर रही थी। कंसल्टिंग फर्म रेड सीर की “Higher Education Abroad” शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2024 तक विदेशों में 18 लाख से ज़्यादा भारतीय छात्र होंगे। इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि इन छात्रों द्वारा विदेशों में कुल खर्च 85 अरब डॉलर होगा, जो प्रति छात्र लगभग 89 लाख रुपये बनता है। इसके उलट भारत सरकार अपने छात्रों पर उच्च शिक्षा के लिए दस हज़ार रूपये से कुछ ज़्यादा ख़र्च करती है। एड-टेक क्षेत्र के तेजी से विकास, निजीकरण और विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों की बढ़ती संख्या के साथ, ऐसा लगता है कि विदेशों में उच्च शिक्षा की मांग उन छात्रों द्वारा की जा रही है जिनके परिवार इसके लिए भुगतान कर सकते हैं।
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