भारत के डिजिटल सपनों की दुविधा: कैश सर्कुलेशन बढ़ा, डिजिटल भुगतान सिकुड़ा !

डिमोनेटाइज़ेशन और यूपीआई के लॉन्च के पांच साल बाद भी देश में कैश का इस्तेमाल कम नहीं हुआ है। ब्रिक्स देशों में, भारत का कैश टू जीडीपी रेशियो 2016 में 11 फीसदी से बढ़कर 14.5 फीसदी हो गया है। दूसरी तरफ सभी प्लेटफॉर्मों पर डिजिटल भुगतान में 2018-19 की आर्थिक मंदी के बाद से सुस्ती आई है।
डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद पिछले तीन सालों में डिजिटिल भुगतान में 18 फीसदी से ज़्यादा की गिरावट देखी गई है। ग़ौरतलब है कि कई योजनाओं के भुगतान के लिए सरकार द्वारा अपनाए गए UPI प्लेटफॉर्म से यूज़र के हिसाब से ट्राज़ेक्शन वॉल्यूम कम हो रहे हैं।
दस साल पहले, नकद और जीडीपी अनुपात 11% था और उससे पहले कई सालों तक यह लगभग 10-11% रहा था। 500 और 1000 मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों को विमुद्रीकृत करने की सरकार की रातोंरात नीति ने नकदी सर्कुलेशन का राष्ट्रीय संकट पैदा कर दिया था। बैंकों के बाहर बड़ी-बड़ी लाइनें देखी गई थी और सैकड़ों की जानें भी गई थीं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जो कि एक अर्थशास्त्रीय हैं, ने इसे "संगठित लूट, वैध लूट" करार दिया था। मोदी सरकार ने, अन्य दावों के अलावा, वादा किया था कि इस कदम से नकदी अर्थव्यवस्था को कम करके संगठित अर्थव्यवस्था में बढ़ोत्तरी होगी, जो कि काले धन को समाप्त करने में मदद करेगा। धीरे-धीरे, सरकार ने 500 और 2000 रुपये के नए नोट छापना शुरू कर दिया जिससे नकदी सर्कुलेशन में धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी हुई। फिर तीन साल पहले 2000 रुपये के नए नोटों की छपाई पूरी तरह बंद कर दी गई थी। इस समय तक सकल घरेलू उत्पाद में नकद 11% अंक तक पहुंच गया था। महामारी के दरमियान ऑनलाइन ट्रांज़ेक्शन को बढ़ावा तो मिला लेकिन इसके बाद लोगों ने कैश को ज़्यादा तरजीह दी और इसका सर्कुलेशन 14.5 फीसदी पर पहुंच गया, जो ब्राज़ील, रूस, दक्षिण अफ्रीका और चीन की तुलना में बहुत ज़्यादा है जहां नकदी की ज़रूरत भी बढ़ गई है।
दस साल पहले, नकद और जीडीपी अनुपात 11% था और उससे पहले कई सालों तक यह लगभग 10-11% रहा था। 500 और 1000 मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों को विमुद्रीकृत करने की सरकार की रातोंरात नीति ने नकदी सर्कुलेशन का राष्ट्रीय संकट पैदा कर दिया था। बैंकों के बाहर बड़ी-बड़ी लाइनें देखी गई थी और सैकड़ों की जानें भी गई थीं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जो कि एक अर्थशास्त्रीय हैं, ने इसे "संगठित लूट, वैध लूट" करार दिया था। मोदी सरकार ने, अन्य दावों के अलावा, वादा किया था कि इस कदम से नकदी अर्थव्यवस्था को कम करके संगठित अर्थव्यवस्था में बढ़ोत्तरी होगी, जो कि काले धन को समाप्त करने में मदद करेगा। धीरे-धीरे, सरकार ने 500 और 2000 रुपये के नए नोट छापना शुरू कर दिया जिससे नकदी सर्कुलेशन में धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी हुई। फिर तीन साल पहले 2000 रुपये के नए नोटों की छपाई पूरी तरह बंद कर दी गई थी। इस समय तक सकल घरेलू उत्पाद में नकद 11% अंक तक पहुंच गया था। महामारी के दरमियान ऑनलाइन ट्रांज़ेक्शन को बढ़ावा तो मिला लेकिन इसके बाद लोगों ने कैश को ज़्यादा तरजीह दी और इसका सर्कुलेशन 14.5 फीसदी पर पहुंच गया, जो ब्राज़ील, रूस, दक्षिण अफ्रीका और चीन की तुलना में बहुत ज़्यादा है जहां नकदी की ज़रूरत भी बढ़ गई है।
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