नेपाल में संसद भंग करने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, ओली और प्रचंड के मतभेद से कम्युनिस्ट पार्टी विभाजन की ओर

by Ankush Choubey 2 years ago Views 2361

इस बीच, देशभर में प्रदर्शनों का दौर भी शुरू हो गया है। प्रदर्शनकारियों ने नेपाल की गलियों में प्रधानमंत्री के पुतले भी जलाए।

The case of dissolution of Parliament in Nepal rea
नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी शर्मा ओली का उनकी ही पार्टी के साथ चल रहा विवाद और बढ़ गया है। नेपाल की संसद को भंग करने की ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद विरोधियों ने इस फैसले को सांविधानिक चोट बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता भद्रकाली पोखरेल ने कहा कि संसद भंग करने के खिलाफ तीन याचिकाएं पंजीकृत होने की प्रक्रिया में हैं। याचिकाकर्ताओं में से एक वकील दिनेश त्रिपाठी ने कहा है कि संविधान के तहत प्रधानमंत्री के पास संसद भंग करने के लिए कोई विशेषाधिकार नहीं है। यह सांविधानिक चोट है और वे अदालत से स्थगन आदेश लेना चाहता हैं।


इस बीच, देशभर में प्रदर्शनों का दौर भी शुरू हो गया है। प्रदर्शनकारियों ने नेपाल की गलियों में प्रधानमंत्री के पुतले भी जलाए। पीएम के.पी ओली ने इस संबंध में सोमवार को देश को संबोधित करते हुए कहा कि देश और पार्टी हित में उन्होंंने ये कदम उठाया है। वहीँ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के सह-अध्यक्ष पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' और माधव कुमार नेपाल पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि पार्टी के भीतर अंदरुनी संघर्ष ने संसद को शर्मिंदा किया है। वहीं, प्रचंड ने बयान जारी कर ओली के इस फैसले को असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक, निरंकुश और पीछे ले जाने वाला बताया है।

दरअसल, पार्टी उस अध्यादेश को वापस लेने की मांग कर रही है जो प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष और विपक्षी नेताओं की सहमति के बिना संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्ति का प्रधानमंत्री को अधिकार देता है। इस मसले को लेकर पार्टी के भीतर खूब विवाद भी हुआ जिसे हालिया राजनीतिक घटनाक्रम के पीछे की मुख्या वजह बताया जा रहा है।

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इस पुरे विवाद की जड़ में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी  की बढ़ती अन्तर्कलह है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी) का 2018 में विलय हुआ था। केपी ओली को अध्यक्ष और ससदीय दल का नेता चुना गया और वे देश के प्रधानमंत्री बने।

ओली यूएमएल घटक के थे, वहीं कभी गुरिल्ला युद्ध छेड़ने वाली माओवादी पार्टी के नेता रहे पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' एकीकृत पार्टी के सहअध्यक्ष बने। चर्चा है कि दोनों पार्टियों के विलय के दौरान एक गुप्त समझौता हुआ था।

इसके तहत ओली और प्रचंड को ढाई-ढाई साल तक प्रधानमंत्री बने रहना था। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। पिछले साल नवंबर में पार्टी के बीच सहमति बनी कि केपी ओली पूरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री बने रहेंगे और प्रचंड सारी संगठनात्मक सख्तियों के साथ पार्टी के सह-अध्यक्ष बने रहेंगे। लेकिन इस समझौते के बाद भी दोनों एक दूसरे पर सहयोग ना करने का आरोप मढ़ते रहे।  प्रचंड का आरोप रहा कि उन्हें पार्टी  चलाने के लिए कार्यकारी शक्ति नहीं मिली जबकि ओली शिकायत करते रहे कि उन्हें कभी प्रचंड से कोई मदद नहीं मिली।

फिर इसी साल अगस्त में, पार्टी के भीतर एक और समझौता हुआ कि पार्टी का आम सम्मेलन अप्रैल 2021 में होगा। केंद्र में कैबिनेट के साथ ही राज्य सरकार में फेरबदल किया जाएगा। लेकिन इस बीच केपी ओली ने कर्णाली प्रांत में सरकार को भंग करने की कोशिश की और प्रचंड के साथ समन्वय के बिना तीन नये मंत्रियों को नियुक्त किया। इसके बाद प्रचंड ने ओली के इस्तीफे की मांग की थी।

ओली ने इस्तीफा नहीं दिया बल्कि इस मुद्दे को हल करने के लिए चीन की मदद ली। इसके बाद से ही पार्टी दो धड़ों में बँट गई। पार्टी के आतंरिक मामले में चीनी हस्तक्षेप के बाद, दोनों एक समझौते पर पहुंचे थे कि अब सभी विवादों को पार्टी कांग्रेस (सामान्य सम्मेलन) के माध्यम से हल किया जाएगा। लेकिन दोनों गुटों में दरार काफी बढ़ गई थी। रविवार को प्रधानमंत्री ओली के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की तैयारी चल रही थी और तभी पीएम ने संसद को भाग कर दिया।

फिलहाल पार्टी में प्रचंड गुट की स्थिति काफी मजबूत है। ऐसे में अब कयास लगना शुरू हो गये है कि पार्टी में विभाजन होना वर्तमान परिस्तिथियों को देखते हुए निश्चित है। चूँकि पीएम केपी ओली के खिलाफ विरोध के स्वर बुलंद हो गये हैं।  ऐसे में के.पी ओली के कुछ वफादार भी उनका साथ छोड़कर प्रचंड के खेमे में जा सकते है। नेपाल में चुनावों की घोषणा भी हो चुकी हैं, ऐसे में पीएम केपी ओली की मुश्किलें बढ़ती नज़र आ रही हैं।

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