तालिबान ने सरकार गठन समारोह में रूस-चीन को बुलाया, भारत को क्यों नहीं ?
जबकि पिछले दिनों भारतीय मीडिया में यह ख़बर छाई रही कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तालिबान का समर्थन किया है और उसे एक आतंकी संगठन मानने से इनकार कर दिया है...

तालिबान, अफ़ग़ानिस्तान में सरकार बनाने के अंतिम चरण में पहुंच गया है। तालिबान ने दावा किया है कि उसके लड़ाकों ने पंजशीर वैली को अपने नियंत्रण में ले लिया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ तालिबान के प्रवक्ता ने सोमवार को कहा कि ‘युद्ध समाप्त हो गया है और उन्हें एक स्थिर अफ़ग़ानिस्तान की उम्मीद है।
रूसी न्यूज़ एजेंसी टास के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान में सरकार के गठन समारोह में तालिबान ने पाकिस्तान, तुर्की, क़तर, रूस, चीन और ईरान को आमंत्रित किया है। जबकि अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी देशों जैसे- तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान को सरकार गठन में आमंत्रित नहीं किया है। सरकार के गठन की तारीख़ भी नहीं बताई गई है।
ग़ौरतलब है कि तालिबान ने भारत को भी सरकार गठन समारोह के लिए आमंत्रित नहीं किया है। जबकि पिछले दिनों भारतीय मीडिया में यह ख़बर छाई रही कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तालिबान का समर्थन किया है और उसे एक आतंकी संगठन मानने से इनकार कर दिया है। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी राजदूत रहे सैयद अकबरुद्दीन ने 28 अगस्त के अपने एक ट्वीट में भारत की अध्यक्षता के दौरान यूएनएसी के दो बयानों का स्क्रीनशॉट साझा किया था और लिखा था, "कूटनीति में एक पखवाड़ा काफ़ी लंबा समय होता है। 'टी' शब्द ग़ायब है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 16 और 27 अगस्त के बयान की तुलना कीजिए।” ग़ौरतलब है कि, ‘भारत की अध्यक्षता में यूएनएससी ने 16 और 27 अगस्त को दो बयान जारी किए। इनमें देखा जा सकता है कि 16 अगस्त वाले अपने बयान में यूएनएससी ने कहा था, "अफ़ग़ानिस्तान के किसी भी क्षेत्र को किसी भी देश को धमकाने या उस पर हमले के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए और यहाँ तक कि तालिबान या किसी भी अफ़ग़ान समूह या किसी भी व्यक्ति को किसी अन्य देश में सक्रिय आतंकी का समर्थन नहीं करना चाहिए।” इसके बाद 27 अगस्त को जारी यूएनससी के बयान में ‘तालिबान’ शब्द का ज़िक्र नहीं किया गया। अपने बयान में यूएनएससी ने कहा, "अफ़ग़ानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकी देने या हमला करने के लिए न हो, और किसी भी अफ़ग़ान समूह या व्यक्ति को किसी भी देश के क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों का समर्थन नहीं करना चाहिए।” इसके बाद क़तर की राजधानी दोहा स्थित भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानेकज़ई से 31 अगस्त को मुलाक़ात भी की थी। हालांकि यह कहा जा रहा था कि भारत और तालिबान के बीच पिछले कई महीनों से बातचीत चल रही थी लेकिन आधिकारिक तौर पर 31 अगस्त को बात हुई। भारत ने कहा था कि यह मुलाक़ात तालिबान के अनुरोध पर हुआ है लेकिन जानकार कहते हैं ऐसा होने दर्शाता है कि भारत का रुख़ बदल रहा है। यह भी बता दें कि भारत की अध्यक्षता के दौरान यूएनएसी के एक प्रस्ताव में तालिबान से कहा गया कि वो अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवादी समूहों को रोके। प्रस्ताव में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद का भी नाम लिया गया था। इस प्रवस्ताव से संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्यों में चीन और रूस ने दूरी बना ली थी। अब यह दोनों देश हैं, जिन्हें तालिबान ने सरकार गठन समारोह में आमंत्रित किया है। ऐसे में यह सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए भी चिंता का सबब है।
ग़ौरतलब है कि तालिबान ने भारत को भी सरकार गठन समारोह के लिए आमंत्रित नहीं किया है। जबकि पिछले दिनों भारतीय मीडिया में यह ख़बर छाई रही कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तालिबान का समर्थन किया है और उसे एक आतंकी संगठन मानने से इनकार कर दिया है। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी राजदूत रहे सैयद अकबरुद्दीन ने 28 अगस्त के अपने एक ट्वीट में भारत की अध्यक्षता के दौरान यूएनएसी के दो बयानों का स्क्रीनशॉट साझा किया था और लिखा था, "कूटनीति में एक पखवाड़ा काफ़ी लंबा समय होता है। 'टी' शब्द ग़ायब है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 16 और 27 अगस्त के बयान की तुलना कीजिए।” ग़ौरतलब है कि, ‘भारत की अध्यक्षता में यूएनएससी ने 16 और 27 अगस्त को दो बयान जारी किए। इनमें देखा जा सकता है कि 16 अगस्त वाले अपने बयान में यूएनएससी ने कहा था, "अफ़ग़ानिस्तान के किसी भी क्षेत्र को किसी भी देश को धमकाने या उस पर हमले के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए और यहाँ तक कि तालिबान या किसी भी अफ़ग़ान समूह या किसी भी व्यक्ति को किसी अन्य देश में सक्रिय आतंकी का समर्थन नहीं करना चाहिए।” इसके बाद 27 अगस्त को जारी यूएनससी के बयान में ‘तालिबान’ शब्द का ज़िक्र नहीं किया गया। अपने बयान में यूएनएससी ने कहा, "अफ़ग़ानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकी देने या हमला करने के लिए न हो, और किसी भी अफ़ग़ान समूह या व्यक्ति को किसी भी देश के क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों का समर्थन नहीं करना चाहिए।” इसके बाद क़तर की राजधानी दोहा स्थित भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानेकज़ई से 31 अगस्त को मुलाक़ात भी की थी। हालांकि यह कहा जा रहा था कि भारत और तालिबान के बीच पिछले कई महीनों से बातचीत चल रही थी लेकिन आधिकारिक तौर पर 31 अगस्त को बात हुई। भारत ने कहा था कि यह मुलाक़ात तालिबान के अनुरोध पर हुआ है लेकिन जानकार कहते हैं ऐसा होने दर्शाता है कि भारत का रुख़ बदल रहा है। यह भी बता दें कि भारत की अध्यक्षता के दौरान यूएनएसी के एक प्रस्ताव में तालिबान से कहा गया कि वो अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवादी समूहों को रोके। प्रस्ताव में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद का भी नाम लिया गया था। इस प्रवस्ताव से संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्यों में चीन और रूस ने दूरी बना ली थी। अब यह दोनों देश हैं, जिन्हें तालिबान ने सरकार गठन समारोह में आमंत्रित किया है। ऐसे में यह सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए भी चिंता का सबब है।
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