Pegasus जासूसी मामले पर बुधवार, 27 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला !
भारत में किसी व्यक्ति- निजी या सरकारी, द्वारा हैकिंग करके किसी सर्विलांस स्पायवेयर का इस्तेमाल करना आईटी एक्ट के तहत एक अपराध है...

पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार को अपना फैसला सुनाएगा। सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने 13 सितंबर को आदेश सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने कहा था कि वो सिर्फ यह जानना चाहता है कि क्या केन्द्र ने कथित तौर पर जासूसी करने के लिए अवैध तरीकों से पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं।
कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा था कि वो इस मामले की जांच करने के लिए एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति का गठन करेगी और कुछ प्रतिष्ठित लोगों की कथित निगरानी की शिकायतों की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर एक अंतरिम आदेश पारित करेगी।
समिति के गठन पर शीर्ष अदालत की टिप्पणी केंद्र के इस बयान के मद्देनजर महत्वपूर्ण हो जाती है कि वह पूरे मामले को देखने के लिए अपने दम पर एक विशेषज्ञ पैनल का गठन करेगी। यहां पढ़ें- क्या है Pegasus? जिसने 'हैक' किया पत्रकारों समेत कई भारतीय हस्तियों के फोन सीजेआई एनवी रमना की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने कहा था कि वो सिर्फ केन्द्र से जानना चाहती है, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए एक विस्तृत हलफनामा दायर करने से इनकार कर दिया था। कोर्ट का सवाल था कि क्या पेगासस का इस्तेमाल लोगों की कथित तौर पर जासूसी करने के लिए किया गया था और क्या यह कानूनी रूप से किया गया था। इस दरमियान केन्द्र सरकार की तरफ से यह भी बयान आए थे कि पेगासस बनाने वाली कंपनी एनएसओ ग्रुप से केन्द्र सरकार की कोई लेनदेन नहीं है। जबकि एनएसओ ग्रुप का कहना है वे सिर्फ किसी देश की सरकार के साथ ही इस स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर की डील करता है। ऐसे में यह मुद्दा और भी ज़्यादा जटिल और हैरान करने वाला है। यह देखते हुए कि पेगासस विवाद में पत्रकारों और अन्य लोगों ने निजता के उल्लंघन पर चिंता जताई, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसे राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित विवरण जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है। केन्द्र ने कहा कि वो इस बारे में विस्तृत हलफनामा दाखिल नहीं करना चाहता है कि किसी विशेष सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया या नहीं। पत्रकारों, नेताओं और बड़ी संख्या में अन्य लोगों की कथित जासूसी के आरोपों के बावजूद केन्द्र ने कोर्ट के सामने इसे सार्वजनिक बहस का मुद्दा मानने से इनकार किया था और कहा था कि ऐसा करना “राष्ट्र हित” में नहीं है। आपको बता दें कि हैकिंग-टैपिंक क़ानूनी तौर पर अपराध है। इसको लेकर अलग-अलग देशों के अपने अलग-अलग कानून हैं, लेकिन भारत में किसी व्यक्ति- निजी या सरकारी, द्वारा हैकिंग करके किसी सर्विलांस स्पायवेयर का इस्तेमाल करना आईटी एक्ट के तहत एक अपराध है।
समिति के गठन पर शीर्ष अदालत की टिप्पणी केंद्र के इस बयान के मद्देनजर महत्वपूर्ण हो जाती है कि वह पूरे मामले को देखने के लिए अपने दम पर एक विशेषज्ञ पैनल का गठन करेगी। यहां पढ़ें- क्या है Pegasus? जिसने 'हैक' किया पत्रकारों समेत कई भारतीय हस्तियों के फोन सीजेआई एनवी रमना की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने कहा था कि वो सिर्फ केन्द्र से जानना चाहती है, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए एक विस्तृत हलफनामा दायर करने से इनकार कर दिया था। कोर्ट का सवाल था कि क्या पेगासस का इस्तेमाल लोगों की कथित तौर पर जासूसी करने के लिए किया गया था और क्या यह कानूनी रूप से किया गया था। इस दरमियान केन्द्र सरकार की तरफ से यह भी बयान आए थे कि पेगासस बनाने वाली कंपनी एनएसओ ग्रुप से केन्द्र सरकार की कोई लेनदेन नहीं है। जबकि एनएसओ ग्रुप का कहना है वे सिर्फ किसी देश की सरकार के साथ ही इस स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर की डील करता है। ऐसे में यह मुद्दा और भी ज़्यादा जटिल और हैरान करने वाला है। यह देखते हुए कि पेगासस विवाद में पत्रकारों और अन्य लोगों ने निजता के उल्लंघन पर चिंता जताई, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसे राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित विवरण जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है। केन्द्र ने कहा कि वो इस बारे में विस्तृत हलफनामा दाखिल नहीं करना चाहता है कि किसी विशेष सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया या नहीं। पत्रकारों, नेताओं और बड़ी संख्या में अन्य लोगों की कथित जासूसी के आरोपों के बावजूद केन्द्र ने कोर्ट के सामने इसे सार्वजनिक बहस का मुद्दा मानने से इनकार किया था और कहा था कि ऐसा करना “राष्ट्र हित” में नहीं है। आपको बता दें कि हैकिंग-टैपिंक क़ानूनी तौर पर अपराध है। इसको लेकर अलग-अलग देशों के अपने अलग-अलग कानून हैं, लेकिन भारत में किसी व्यक्ति- निजी या सरकारी, द्वारा हैकिंग करके किसी सर्विलांस स्पायवेयर का इस्तेमाल करना आईटी एक्ट के तहत एक अपराध है।
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