Twin Tower को गिराने के आदेश के ख़िलाफ़ सुपरटेक ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

नोएडा के सेक्टर 93 स्थित 40 मंज़िला ट्विन टॉवर को गिराए जाने के आदेश के ख़िलाफ रियल एस्टेट डेवलपर सुपरटेक ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। याचिका में करोड़ों रूपये के बचत का तर्क देते हुए सिर्फ एक ही टॉवर को ध्वस्त किए जाने की मांग की गई है। विशाल निर्माणाधीन टॉवर में 900 से ज़्यादा फ्लैट हैं और निर्माण के नियमों में उल्लंघन की वजह से उन्हें ध्वस्त करने के आदेश दिए गए थे।
रियल एस्टेट दिग्गज ने अपनी याचिका में अदालत को सूचित किया कि उसने परियोजना को संशोधित करने का फैसला किया है जो "पर्यावरण के लिए फायदेमंद" होगी। याचिका में कहा गया है, ‘अगर संशोधन की इजाज़त मिलती है तो इससे करोड़ों के संसाधन बर्बाद होने से बच सकते हैं।
दोनों टॉवरों के निर्माण में करोड़ों रूपये की लागत आई है। याचिका में कहा गया है कि बड़ी मात्रा में अन्य सामग्रियों के अलावा, मानव श्रम सहित कई करोड़ रुपये की राशि लगाई गई है जो स्क्रैप के रूप में पूरी तरह से बेकार हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने एक फैसले में सुपरटेक के ट्विन टॉवर को गिराने के आदेश दिए थे। यह फैसला खरीदारों और बिल्डर के बीच 9 साल लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद आया था। बिल्डरों पर नोएडा ऑथोरिटी के लंबित भुगतान ! गोन्यूज़ ने आपको इससे पहले बताया था कि हज़ारों लोग बिल्डरों से अपना घर मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं लेकिन कई ऐसे बिल्डर हैं जिनपर संबंधित ऑथोरिटी का ज़रूरी भुगताना लंबित है। इसकी एक लिस्ट गौतमबुद्धनगर जिला प्रशासन ने जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय के बाहर लगाई हुई है। इसमें बताया गया है कि सुपरटेक लिमिटेड ने नोएडा ऑथोरिटी को 111 करोड़ से ज़्यादा का भुगतान नहीं किया है, इसके बाद लॉजिक्स सिटी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड ने ₹28 करोड़ रूपये नोएडा ऑथोरिटी को नहीं दिए हैं। परियोजनाओं के क्लियरेंस के लिए संबंधित ऑथोरिटी को यह भुगतान करना होता है। नोएडा ऑथोरिटी को मैस्कॉट होम्स प्राइवेट लिमिटेड ने ₹20 करोड़ रूपये भुगतान नहीं किए हैं, लॉजिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड ने ₹13 करोड़ और रुद्र बिल्डवेल होम्स प्राइवेट लिमिटेड ने ₹11.65 करोड़ रूपये का भुगतान नहीं किया है। ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के साल 2014 के उस फैसले को बरक़रार रखा है जिसमें 40 मंज़िला इमारत को गिराने के आदेश दिए गए थे। अब 9 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाया है जिससे आरडब्ल्यूए में खुशी का माहौल है। कोर्ट ने लोगों की सुरक्षा, सफाई और वेंटिलेशन के अधिकार और जीवन की समग्र गुणवत्ता को बरकरार रखा। 2019 में, एटीएस ने नोएडा में लॉजिक्स ग्रुप के 4,500 विलंबित फ्लैटों को पूरा करने का बीड़ा उठाया था। एटीएस ने लॉजिक्स ब्लॉसम ग्रीन्स, ब्लॉसम काउंटी और ब्लॉसम ज़ेस्ट का काम पूरा किया। एनबीसीसी को जुलाई 2019 में आम्रपाली समूह की परियोजनाओं को पूरा करने का काम सौंपा गया था। हालांकि, इसने पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि फंड की कमी की वजह से परियोजना के पूरा होने में देरी होगी। इस साल अगस्त में, नोएडा ऑथोरिटी ने अपनी 199वीं बोर्ड बैठक में 16 डेवलपर्स के लिए अपनी "शून्य अवधि" नीति के तहत परियोजनाओं को पूरा करने की समय सीमा दिसंबर 2021 तक बढ़ा दी है। बोर्ड के आदेश के मुताबिक़ “जिन डेवलपर्स ने 31 दिसंबर, 2021 तक अपनी लंबित परियोजनाओं को पूरा करने का लिखित आश्वासन दिया है, उन्हें परियोजना पूरा करने के लिए समय दिया गया है। इनके अलावा 16 (भूमि) आवंटियों को 31 दिसंबर, 2021 तक अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने के संबंध में लिखित आश्वासन देने के लिए पत्र जारी किए गए हैं। फंड की समस्या और मंज़ूरी की कमी की वजह से परियोजनाओं का काम रुका हुआ है। प्रमुख मुद्दों में एक फंड डायवर्जन है जिससे परियोजनाओं को पूरा करने में देरी होती है और इसकी सज़ा खरीदारों को भुगतनी पड़ती है।
Also Read:
दोनों टॉवरों के निर्माण में करोड़ों रूपये की लागत आई है। याचिका में कहा गया है कि बड़ी मात्रा में अन्य सामग्रियों के अलावा, मानव श्रम सहित कई करोड़ रुपये की राशि लगाई गई है जो स्क्रैप के रूप में पूरी तरह से बेकार हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने एक फैसले में सुपरटेक के ट्विन टॉवर को गिराने के आदेश दिए थे। यह फैसला खरीदारों और बिल्डर के बीच 9 साल लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद आया था। बिल्डरों पर नोएडा ऑथोरिटी के लंबित भुगतान ! गोन्यूज़ ने आपको इससे पहले बताया था कि हज़ारों लोग बिल्डरों से अपना घर मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं लेकिन कई ऐसे बिल्डर हैं जिनपर संबंधित ऑथोरिटी का ज़रूरी भुगताना लंबित है। इसकी एक लिस्ट गौतमबुद्धनगर जिला प्रशासन ने जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय के बाहर लगाई हुई है। इसमें बताया गया है कि सुपरटेक लिमिटेड ने नोएडा ऑथोरिटी को 111 करोड़ से ज़्यादा का भुगतान नहीं किया है, इसके बाद लॉजिक्स सिटी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड ने ₹28 करोड़ रूपये नोएडा ऑथोरिटी को नहीं दिए हैं। परियोजनाओं के क्लियरेंस के लिए संबंधित ऑथोरिटी को यह भुगतान करना होता है। नोएडा ऑथोरिटी को मैस्कॉट होम्स प्राइवेट लिमिटेड ने ₹20 करोड़ रूपये भुगतान नहीं किए हैं, लॉजिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड ने ₹13 करोड़ और रुद्र बिल्डवेल होम्स प्राइवेट लिमिटेड ने ₹11.65 करोड़ रूपये का भुगतान नहीं किया है। ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के साल 2014 के उस फैसले को बरक़रार रखा है जिसमें 40 मंज़िला इमारत को गिराने के आदेश दिए गए थे। अब 9 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाया है जिससे आरडब्ल्यूए में खुशी का माहौल है। कोर्ट ने लोगों की सुरक्षा, सफाई और वेंटिलेशन के अधिकार और जीवन की समग्र गुणवत्ता को बरकरार रखा। 2019 में, एटीएस ने नोएडा में लॉजिक्स ग्रुप के 4,500 विलंबित फ्लैटों को पूरा करने का बीड़ा उठाया था। एटीएस ने लॉजिक्स ब्लॉसम ग्रीन्स, ब्लॉसम काउंटी और ब्लॉसम ज़ेस्ट का काम पूरा किया। एनबीसीसी को जुलाई 2019 में आम्रपाली समूह की परियोजनाओं को पूरा करने का काम सौंपा गया था। हालांकि, इसने पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि फंड की कमी की वजह से परियोजना के पूरा होने में देरी होगी। इस साल अगस्त में, नोएडा ऑथोरिटी ने अपनी 199वीं बोर्ड बैठक में 16 डेवलपर्स के लिए अपनी "शून्य अवधि" नीति के तहत परियोजनाओं को पूरा करने की समय सीमा दिसंबर 2021 तक बढ़ा दी है। बोर्ड के आदेश के मुताबिक़ “जिन डेवलपर्स ने 31 दिसंबर, 2021 तक अपनी लंबित परियोजनाओं को पूरा करने का लिखित आश्वासन दिया है, उन्हें परियोजना पूरा करने के लिए समय दिया गया है। इनके अलावा 16 (भूमि) आवंटियों को 31 दिसंबर, 2021 तक अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने के संबंध में लिखित आश्वासन देने के लिए पत्र जारी किए गए हैं। फंड की समस्या और मंज़ूरी की कमी की वजह से परियोजनाओं का काम रुका हुआ है। प्रमुख मुद्दों में एक फंड डायवर्जन है जिससे परियोजनाओं को पूरा करने में देरी होती है और इसकी सज़ा खरीदारों को भुगतनी पड़ती है।
ताज़ा वीडियो