कोरोना से पहले धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद जैसी महामारी का शिकार हुआ देश- हामिद अंसारी

देश के पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी अपने एक बयान को लेकर सुर्ख़ियों है। हामिद अंसारी ने कहा है कि देश कोरोना से पहले ‘धार्मिक कट्टरता’ और ‘आक्रामक राष्ट्रवाद’ की महामारी का शिकार हुआ।
दरअसल, कांग्रेस सांसद शशि थरूर की नई किताब द बैटल ऑफ बिलॉन्गिंग के डिजिटल विमोचन के अवसर पर हामिद अंसारी ने शुक्रवार देर शाम कहा कि कोविड एक बहुत ही बुरी महामारी है, लेकिन इससे पहले ही हमारा समाज दो महामारियों- ‘धार्मिक कट्टरता’ और ‘आक्रामक राष्ट्रवाद ‘का शिकार हो चुका था।
उन्होंने यह भी कहा कि धार्मिक कट्टरता और उग्र राष्ट्रवाद के मुकाबले देशप्रेम ज्यादा सकारात्मक अवधारणा है। पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने यह भी कहा कि आज देश ऐसे प्रकट और अप्रकट विचारों और विचारधाराओं से खतरे में दिख रहा है जो उसको हम और वे की काल्पनिक श्रेणी के आधार पर बांटने की कोशिश करती हैं। उनके मुताबिक, चार वर्षों की अल्प अवधि में भारत ने एक उदार राष्ट्रवाद के बुनियादी नज़रिए से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की एक ऐसी नयी राजनीतिक परिकल्पना तक का सफर तय कर लिया जो सार्वजनिक क्षेत्र में मजबूती से घर कर गई है। किताब के विमोचन के दौरान चर्चा में भाग लेते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने कहा, कि 1947 में उनके पास मौका था कि वो पाकिस्तान के साथ चले जाते, लेकिन उनके पिता और अन्य लोगों ने यही सोचा था कि दो राष्ट्र का सिद्धांत हमारे लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार देश को जिस तरह से देखना चाहती है उसे वह कभी स्वीकार नहीं करने वाले हैं। शशि थरूर की क़िताब के डिजिटल विमोचन में इनके अलावा पूर्व आईएएस और पूर्व राज्यसभा सांसद पवन कुमार वर्मा, जेएनयू के प्रोफेसर और आईआईएएस के डायरेक्टर मकरंद आर.परांजपे, जयपुर की सोशल एंटरप्रिन्योर अपरा कुच्छल, लेख़क और पत्रकार कारन थापर और नॉवेलिस्ट और पब्लिशर डेविड देविंदर शामिल थे।
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उन्होंने यह भी कहा कि धार्मिक कट्टरता और उग्र राष्ट्रवाद के मुकाबले देशप्रेम ज्यादा सकारात्मक अवधारणा है। पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने यह भी कहा कि आज देश ऐसे प्रकट और अप्रकट विचारों और विचारधाराओं से खतरे में दिख रहा है जो उसको हम और वे की काल्पनिक श्रेणी के आधार पर बांटने की कोशिश करती हैं। उनके मुताबिक, चार वर्षों की अल्प अवधि में भारत ने एक उदार राष्ट्रवाद के बुनियादी नज़रिए से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की एक ऐसी नयी राजनीतिक परिकल्पना तक का सफर तय कर लिया जो सार्वजनिक क्षेत्र में मजबूती से घर कर गई है। किताब के विमोचन के दौरान चर्चा में भाग लेते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने कहा, कि 1947 में उनके पास मौका था कि वो पाकिस्तान के साथ चले जाते, लेकिन उनके पिता और अन्य लोगों ने यही सोचा था कि दो राष्ट्र का सिद्धांत हमारे लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार देश को जिस तरह से देखना चाहती है उसे वह कभी स्वीकार नहीं करने वाले हैं। शशि थरूर की क़िताब के डिजिटल विमोचन में इनके अलावा पूर्व आईएएस और पूर्व राज्यसभा सांसद पवन कुमार वर्मा, जेएनयू के प्रोफेसर और आईआईएएस के डायरेक्टर मकरंद आर.परांजपे, जयपुर की सोशल एंटरप्रिन्योर अपरा कुच्छल, लेख़क और पत्रकार कारन थापर और नॉवेलिस्ट और पब्लिशर डेविड देविंदर शामिल थे।
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