कोरोना की पहली लहर में 23 करोड़ लोग गरीब हुए, महिलाओं की स्थिति और भी ख़राब: अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी

भारत में कोरोना वायरस महामारी की पहली लहर ने देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान तो पहुंचाया ही है, साथ में करोड़ों लोगों को गरीबी में जीने पर मजबूर भी कर दिया है। अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने अपनी एक हालिया रिसर्च अनुमान में कहा है कि कोविड-19 संकट के पहले दौर में करीब 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जा चुके हैं। दरसअल, पिछले साल ही आर्थिक रिकवरी के दौरान लेबर मार्केट में कुछ ख़ास उत्साह नहीं देखने को मिला। ऐसे में जीवनयापन के लिए मज़दूरी पर निर्भर रहने वाले लोगों की स्थिति और भी ख़राब होने लगी।
पिछले साल अप्रैल और मई के दौरान सबसे गरीब श्रेणी में आने वाले परिवारों में से 20 फीसदी के इनकम का ज़रिया ख़त्म हो गया। अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने 2021 के लिए वर्किंग इंडिया की हालत पर जारी एक रिपोर्ट में यह बात कही है। ऐसे लोगों की आमदनी तो वैसे ही कम थी और अब उनकी स्थिति और भी ज़्यादा ख़राब हो गई है।
बता दें कि तकरीबन 23 करोड़ लोग हर रोज 375 रुपये की आमदनी से भी कम कमा रहे हैं। अनूप सतपथी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में राष्ट्रीय न्यूनतम मेहनताने के लिए प्रति दिन 375 रुपये की लिमिट करने की सिफारिश की थी। ग्रामीण इलाकों में अब गरीबी दर में 15 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में गरीबी दर में 20 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है। बता दें कि रिपोर्ट में कहा गया है कि औसतन, सबसे निचले 10 फीसदी लोगों के इनकम पर 27 फीसदी तक की गिरावट आई है। जबकि निचले 40 से 50 फीसदी लोगों की कमाई 23 फीसदी तक कम हुई है। इनकम श्रेणी में सबसे ऊपर रहने वाले 10 फीसदी लोगों की कमाई करीब 22 फीसदी तक कम हुई है। यह भी कहा गया कि अप्रैल-मई 2020 लॉकडाउन के दौरान करीब 10 करोड़ लोगों की नौकरी चली गई। यहां तक 2020 के अंत तक करीब 1.5 करोड़ लोग कमाई का नया ज़रिया ढूंढने में असमर्थ रहे। महिलाओं और युवा कामगारों के लिए स्थिति सबसे ज़्यादा ख़राब रही है। साल के अंत तक इन्हें दोबारा रोज़गार तक शुरू करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद के महीनों में 61 फीसदी मर्दों का रोज़गार जारी रहा। केवल 7 फीसदी ही ऐसे मर्द रहे जिन्होंनें इस दौरान रोज़गार खोया और फिर वापस काम पर नहीं लौटे। महिलाओं की बात करें तो केवल 19 फीसदी का रोज़गार ही जारी रह सका। तकरीबन 47 फीसदी ऐसी महिलाएं रहीं जो काम पर दोबारा वापस नहीं लौट सकी हैं।
बता दें कि तकरीबन 23 करोड़ लोग हर रोज 375 रुपये की आमदनी से भी कम कमा रहे हैं। अनूप सतपथी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में राष्ट्रीय न्यूनतम मेहनताने के लिए प्रति दिन 375 रुपये की लिमिट करने की सिफारिश की थी। ग्रामीण इलाकों में अब गरीबी दर में 15 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में गरीबी दर में 20 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है। बता दें कि रिपोर्ट में कहा गया है कि औसतन, सबसे निचले 10 फीसदी लोगों के इनकम पर 27 फीसदी तक की गिरावट आई है। जबकि निचले 40 से 50 फीसदी लोगों की कमाई 23 फीसदी तक कम हुई है। इनकम श्रेणी में सबसे ऊपर रहने वाले 10 फीसदी लोगों की कमाई करीब 22 फीसदी तक कम हुई है। यह भी कहा गया कि अप्रैल-मई 2020 लॉकडाउन के दौरान करीब 10 करोड़ लोगों की नौकरी चली गई। यहां तक 2020 के अंत तक करीब 1.5 करोड़ लोग कमाई का नया ज़रिया ढूंढने में असमर्थ रहे। महिलाओं और युवा कामगारों के लिए स्थिति सबसे ज़्यादा ख़राब रही है। साल के अंत तक इन्हें दोबारा रोज़गार तक शुरू करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद के महीनों में 61 फीसदी मर्दों का रोज़गार जारी रहा। केवल 7 फीसदी ही ऐसे मर्द रहे जिन्होंनें इस दौरान रोज़गार खोया और फिर वापस काम पर नहीं लौटे। महिलाओं की बात करें तो केवल 19 फीसदी का रोज़गार ही जारी रह सका। तकरीबन 47 फीसदी ऐसी महिलाएं रहीं जो काम पर दोबारा वापस नहीं लौट सकी हैं।
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