अग्निकांड का शिकार हुए बाग़ज़ान ऑयल फ़ील्ड के पास नहीं थी पर्यावरण मंज़ूरी- जाँच रिपोर्ट
कटेकी कमेटी ने की क़ानूनी कार्रवाई और पीड़ित परिवारों को मुआवज़े की सिफ़ारिश
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हादसे का शिकार हुआ असम का बाग़जान ऑयल फील्ड्स ज़रूरी पर्यावरण मंज़ूरी के बग़ैर ही चलाया जा रहा था। 26 तेल के कुओं को ऑपरेट करने के लिए भी कोई पर्यावरण मंज़ूरी नहीं ली गई थी। यह निष्कर्ष नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की बनायी कटेकी कमेटी का है जिसने 3 नवंबर को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। असम का यह वही ऑयल फील्ड है जहां इसी साल 27 मई को आग लग गई थी। इस हादसे में तीन लोग मारे गए थे और इसकी मरम्मत के दौरान एक इंजीनियर की भी मौत हो गई थी।
इस मामले में की जांच के लिए 26 जून को जस्टिस ए.के गोयल की अध्यक्षता वाली एनजीटी की प्रमुख बेंच ने पूर्व न्यायाधीश बी.पी कटेकी की अध्यक्षता में एक जाँच कमेटी का गठन किया था। एनजीटी को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कटेकी कमेटी ने ऑयल फील्ड में लगी आग के पीड़ितों के लिए मुआवज़े की सिफारिश की है। कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में 173 परिवारों को 25 लाख रूपये और 439 परिवारों को 20 लाख रूपये मुआवज़ा देने की सिफारिश की।
जस्टिस कटेकी कमेटी ने पाया कि 9 जून को हुए विस्फोट के दौरान 57 घर पूरी तरह से जलकर ख़ाक हो गए थे। जांच के दौरान यह भी पता चला कि पास में रहने वाली एक गर्भवति महिला को भी समस्या का सामना करना पड़ा। मवेशियों का भी नुकसान हुआ। कमेटी की स्टेटस रिपोर्ट में बाग़जान ऑयल फील्ड के ख़िलाफ लीगल एक्शन लेने की सिफारिश की गयी है। कमेटी ने हवा, पानी और पर्यावरण संरक्षण अधिनियमों के उल्लंघन के लिए कानूनी कार्रवाई को कहा है। हालांकि ऑयल इंडिया लिमिटेड ने दावा किया है कि उनके पास ऑयल फील्ड को संचालित करने के लिए सभी ज़रूरी पर्यावरण और औद्योगिक मंज़ूरी थी। एनजीटी ने यह कमेटी कोलकाता के एक एक्टिविस्ट बोनी कक्कड़ और असम की एक नॉन प्रोफिट संस्था 'वाइल्ड लाइफ एनवायरोमेंट कंज़र्वेशन ऑर्गेनाइजेशन' की अपील पर बनाई थी। असम का यह ऑयल फील्ड तिनसुकिया ज़िले के डिब्रू सिकोवा नेशनल पार्क के पास स्थित है। ऑयल फील्ड के कूएं नंबर पांच में लगी आग, विस्फोट के बाद और ज़्यादा फैल गई थी। लगभग 160 दिनों तक जलती रही इस आग से आसपास दस किलोमीटर का क्षेत्र प्रभावित हुआ था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ ऑयल फील्ड में आग लगने से तीन मज़दूरों की मौत हो गई थी और कई घायल हुए थे। इसकी मरम्मत कर रहे एक 25 साल के इंजीनियर की करंट लगने से मौत हो गई थी।
जस्टिस कटेकी कमेटी ने पाया कि 9 जून को हुए विस्फोट के दौरान 57 घर पूरी तरह से जलकर ख़ाक हो गए थे। जांच के दौरान यह भी पता चला कि पास में रहने वाली एक गर्भवति महिला को भी समस्या का सामना करना पड़ा। मवेशियों का भी नुकसान हुआ। कमेटी की स्टेटस रिपोर्ट में बाग़जान ऑयल फील्ड के ख़िलाफ लीगल एक्शन लेने की सिफारिश की गयी है। कमेटी ने हवा, पानी और पर्यावरण संरक्षण अधिनियमों के उल्लंघन के लिए कानूनी कार्रवाई को कहा है। हालांकि ऑयल इंडिया लिमिटेड ने दावा किया है कि उनके पास ऑयल फील्ड को संचालित करने के लिए सभी ज़रूरी पर्यावरण और औद्योगिक मंज़ूरी थी। एनजीटी ने यह कमेटी कोलकाता के एक एक्टिविस्ट बोनी कक्कड़ और असम की एक नॉन प्रोफिट संस्था 'वाइल्ड लाइफ एनवायरोमेंट कंज़र्वेशन ऑर्गेनाइजेशन' की अपील पर बनाई थी। असम का यह ऑयल फील्ड तिनसुकिया ज़िले के डिब्रू सिकोवा नेशनल पार्क के पास स्थित है। ऑयल फील्ड के कूएं नंबर पांच में लगी आग, विस्फोट के बाद और ज़्यादा फैल गई थी। लगभग 160 दिनों तक जलती रही इस आग से आसपास दस किलोमीटर का क्षेत्र प्रभावित हुआ था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ ऑयल फील्ड में आग लगने से तीन मज़दूरों की मौत हो गई थी और कई घायल हुए थे। इसकी मरम्मत कर रहे एक 25 साल के इंजीनियर की करंट लगने से मौत हो गई थी।
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