"डेटा की निगरानी अवैध, आपत्तिजनक और चिंता का विषय" ; सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियां
"डेटा की निगरानी अवैध, आपत्तिजनक और चिंता का विषय" ; सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियां

सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले में एक स्वतंत्र कमेटी का गठन किया है जो इस मामले की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में मामले की स्वतंत्र रूप से जांच करेगी। इस मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कई टिप्पणियां की है। चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना की अगुवाई वाली बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। पेगासस जासूसी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की काफी सराहना भी हो रही है।
यहां वो मुख्य बातें हैं जो सीजेआई एनवी रमन्ना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कही है…
"यह क़ानून की एक स्थापित स्थिति है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों में, न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य को हर बार एक मुफ्त पास मिलता है"। राष्ट्रीय सुरक्षा वो बग नहीं हो सकती जिससे न्यायपालिका दूर भागती है।" "इस बात पर व्यापक सहमति है कि राष्ट्र की सुरक्षा के अलावा अन्य कारणों से नागरिकों के फोन और अन्य उपकरणों से डेटा की निगरानी / एक्सेस अवैध, आपत्तिजनक और चिंता का विषय है।” "हम यह स्पष्ट करते हैं कि हमारी कोशिश संवैधानिक आकांक्षाओं और क़ानून के शासन को बनाए रखने के लिए है, ना कि खुद को राजनीतिक बयानबाजी में भस्म होने देने के लिए। यह न्यायालय हमेशा राजनीतिक गठजोड़ में प्रवेश न करने के लिए सचेत रहा है। हालांकि, साथ ही, यह मौलिक अधिकारों के हनन से सभी की रक्षा करने से कभी नहीं हिचकिचाती।" "इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि निगरानी और यह जानकारी कि किसी पर जासूसी का ख़तरा है, किसी शख़्स के अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने के निर्णय को प्रभावित कर सकता है। इस तरह के मामलों का परिणाम स्व-सेंसरशिप हो सकता है। यह विशेष रूप से प्रेस की स्वतंत्रता, जो लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, उसके लिए विशेष चिंता का विषय है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इस तरह का चिलिंग इफेक्ट प्रेस की महत्वपूर्ण सार्वजनिक निगरानी भूमिका पर हमला है, जो सटीक और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करने के लिए प्रेस की क्षमता को कमजोर कर सकते हैं।” "पत्रकारिता सोर्सेज़ की सुरक्षा प्रेस की स्वतंत्रता के लिए बुनियादी शर्तों में एक है। इस तरह की सुरक्षा के बिना, सोर्सेज़ को सार्वजनिक हित के मामलों पर जनता को सूचित करने में प्रेस की सहायता करने से रोका जा सकता है।" "नागरिकों के मौलिक अधिकारों को ख़तरा होने पर केन्द्र सरकार को अपना प्रतिकूल स्टैंड नहीं लेनी चाहिए।"
"यह क़ानून की एक स्थापित स्थिति है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों में, न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य को हर बार एक मुफ्त पास मिलता है"। राष्ट्रीय सुरक्षा वो बग नहीं हो सकती जिससे न्यायपालिका दूर भागती है।" "इस बात पर व्यापक सहमति है कि राष्ट्र की सुरक्षा के अलावा अन्य कारणों से नागरिकों के फोन और अन्य उपकरणों से डेटा की निगरानी / एक्सेस अवैध, आपत्तिजनक और चिंता का विषय है।” "हम यह स्पष्ट करते हैं कि हमारी कोशिश संवैधानिक आकांक्षाओं और क़ानून के शासन को बनाए रखने के लिए है, ना कि खुद को राजनीतिक बयानबाजी में भस्म होने देने के लिए। यह न्यायालय हमेशा राजनीतिक गठजोड़ में प्रवेश न करने के लिए सचेत रहा है। हालांकि, साथ ही, यह मौलिक अधिकारों के हनन से सभी की रक्षा करने से कभी नहीं हिचकिचाती।" "इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि निगरानी और यह जानकारी कि किसी पर जासूसी का ख़तरा है, किसी शख़्स के अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने के निर्णय को प्रभावित कर सकता है। इस तरह के मामलों का परिणाम स्व-सेंसरशिप हो सकता है। यह विशेष रूप से प्रेस की स्वतंत्रता, जो लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, उसके लिए विशेष चिंता का विषय है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इस तरह का चिलिंग इफेक्ट प्रेस की महत्वपूर्ण सार्वजनिक निगरानी भूमिका पर हमला है, जो सटीक और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करने के लिए प्रेस की क्षमता को कमजोर कर सकते हैं।” "पत्रकारिता सोर्सेज़ की सुरक्षा प्रेस की स्वतंत्रता के लिए बुनियादी शर्तों में एक है। इस तरह की सुरक्षा के बिना, सोर्सेज़ को सार्वजनिक हित के मामलों पर जनता को सूचित करने में प्रेस की सहायता करने से रोका जा सकता है।" "नागरिकों के मौलिक अधिकारों को ख़तरा होने पर केन्द्र सरकार को अपना प्रतिकूल स्टैंड नहीं लेनी चाहिए।"
ताज़ा वीडियो