मौसम बदलने के साथ ही पक्षियों का राजस्थान में आगमन शुरू, राज्य सरकार खिदमत में जुटी

मौसम बदलने के साथ ही पक्षियों का माइग्रेशन भी शुरु हो गया है। आमतौर पर हर साल सितंबर-अक्टूबर महीने से पक्षियों के एक जगह से दूसरी जगह जाने का सिलसिला शुरु हो जाता है। हालांकि पिछले साल 2019 में राजस्थान के सांभर झील क्षेत्र में बड़ी संख्या में हुई पक्षियों की मौत ने प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया था। इसको देखते हुए इस बार पक्षियों के स्वागत की तैयारी पहले से की जा रही है।
राजस्थान सरकार ने इसको लेकर गाइडलाइन जारी कर दी है जिसके मुताबिक इसके इलाज की व्यवस्था, शेल्टर और गाड़ियों की व्यवस्था कराई जाएगी। एक टेम्प्रोरी नर्सरी बनाई जाएगी जिसपर 1.80 करोड़ रूपये खर्च किए जाएंगे। इससे राजस्थान हाई कोर्ट पहले ही एक सात सदस्यीय समिति का गठन कर चुका है जो इस झील में पक्षियों के लिए किसी भी नुकसान के बारे में रिपोर्ट तैयारी करेगी।
राज्य की सांभर झील में नॉर्दर्न श्वेल्लर, ब्रैह्मणी डक, पाइड एवोसेट, केंटिश प्लोवर और टफ डक जैसी पक्षियों विदेशों से यहां आते हैं। इनके अलावा हर साल रूस, साइबेरिया, यूरोप जैसे देशों से भारी संख्या में पक्षी यहां पहुंचते हैं। वेडर्स, डक और रैप्टर्स जैसे पक्षी साइबेरिया और रूस से आते हैं। वहीं यूरोपीय फ्लाईकैचर, ब्राउन-ब्रेस्टेड फ्लाइकैचर और बार्न स्वालो जैसी पक्षि यूरोपीय देशों से खाने की तलाश में भारत प्रवास कर पहुंचते हैं। पिछले साल सांभर झील में तकरीबन 20 हज़ार पक्षियों की मौत हो गई थी। इनमें नॉर्दर्न श्वेल्लर, ब्रैह्मणी डक, पाइड एवोसेट, केंटिश प्लोवर जैसी पक्षि शामिल थीं। राजस्थान सरकार द्वारा एनजीटी या नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल में पेश रिपोर्ट बताती है कि पक्षियों की मौत एक बीमारी एवियन बोटुलिज़्म की वजह से हुई थी। रिपोर्ट में बताया गया कि एवियन बोटुलिज़्म एक गंभीर न्यूरोमस्कुलर बीमारी है जो एक टॉक्सिन की वजह से पक्षियों में होता है। बता दें कि भारत में कुछ चुनिंदा झील हैं जहां हर साल हज़ारों की तादाद में पक्षी अपना सर्दी बिताने के लिए विदेशों से प्रवास कर यहां पहुंचते हैं। इनमें ओडिशा का चिलिका झील, राजस्थान का केवलादेव नेशनल पार्क, गुजरात का नलसरोवर बर्ड सेंचुरी और केरल के कुमारकोम बर्ड सेंचुरी में पक्षियों का तांता लगा होता है।
राज्य की सांभर झील में नॉर्दर्न श्वेल्लर, ब्रैह्मणी डक, पाइड एवोसेट, केंटिश प्लोवर और टफ डक जैसी पक्षियों विदेशों से यहां आते हैं। इनके अलावा हर साल रूस, साइबेरिया, यूरोप जैसे देशों से भारी संख्या में पक्षी यहां पहुंचते हैं। वेडर्स, डक और रैप्टर्स जैसे पक्षी साइबेरिया और रूस से आते हैं। वहीं यूरोपीय फ्लाईकैचर, ब्राउन-ब्रेस्टेड फ्लाइकैचर और बार्न स्वालो जैसी पक्षि यूरोपीय देशों से खाने की तलाश में भारत प्रवास कर पहुंचते हैं। पिछले साल सांभर झील में तकरीबन 20 हज़ार पक्षियों की मौत हो गई थी। इनमें नॉर्दर्न श्वेल्लर, ब्रैह्मणी डक, पाइड एवोसेट, केंटिश प्लोवर जैसी पक्षि शामिल थीं। राजस्थान सरकार द्वारा एनजीटी या नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल में पेश रिपोर्ट बताती है कि पक्षियों की मौत एक बीमारी एवियन बोटुलिज़्म की वजह से हुई थी। रिपोर्ट में बताया गया कि एवियन बोटुलिज़्म एक गंभीर न्यूरोमस्कुलर बीमारी है जो एक टॉक्सिन की वजह से पक्षियों में होता है। बता दें कि भारत में कुछ चुनिंदा झील हैं जहां हर साल हज़ारों की तादाद में पक्षी अपना सर्दी बिताने के लिए विदेशों से प्रवास कर यहां पहुंचते हैं। इनमें ओडिशा का चिलिका झील, राजस्थान का केवलादेव नेशनल पार्क, गुजरात का नलसरोवर बर्ड सेंचुरी और केरल के कुमारकोम बर्ड सेंचुरी में पक्षियों का तांता लगा होता है।
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