14 साल पहले ख़त्म हुई मंडी, खेती का क्षेत्रफल पंजाब से ज़्यादा, पर सबसे ग़रीब बिहार का किसान

देश में नए लागू नये कृषि कानूनों के खिलाफ किसान सड़कों पर है। आरोप है की सरकार अनाज मंडियों को ख़त्म कर खेती को कॉरपोरेट हाथों में सौंपना चाहती है। बिहार में साल 2006 में कृषि मंडियाँ ख़त्म की गयी थीं। आखिर बिहार के किसान को ऐसे कानूनों से पिछले 14 सालों में फ़ायदा पहुँचा है या नहीं, इसके लिए आंकड़ों पर गौर करना होगा।
लोकसभा में दिये गये आँकड़े बताते हैं कि देश में सब से कम आमदनी अगर किसी की है तो वो है बिहारी किसान, जो साल में केवल 45 हज़ार 317 रुपए ही कमाता है।जबकि सबसे ज़्यादा कमाई पंजाब और हरियाणा के किसानों की है जो इस आंदोलन में सबसे आगे हैं।
शायद उन्हें डर है कि कहीं उनकी हालत भी बिहार के किसानों जैसी न हो जाये। पंजाब का एक किसान सालाना औसतन 2 लाख 30 हज़ार 905 रुपए कमाता है। बिहार के किसान पर अपनी आमदमी की तुलना में क़र्ज़ भी बहुत है। कृषि मंत्रालय के 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक हर बिहारी किसान पर 19 हज़ार 672 रुपए क़र्ज़ है। हालांकि, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की ताज़ा तस्वीर से जुड़े आँकड़े केंद्र सरकार के पास नहीं हैं लेकिन पुराने आँकड़े भी बेहद निराशाजनक हैं। नेशनल सैंपल सर्वे के मुताबिक देश के गांवों में आज भी एक व्यक्ति पूरे महीने में सिर्फ 1430 रुपए ही खर्च करता है। कई राज्यों में हालत तो बेहद ख़राब हैं। मसलन बिहार के गांवों में एक व्यक्ति प्रति महीने 1127 में अपना गुज़र बसर करता है। बिहार में 45.67 लाख हेक्टर ज़मीन पर खेती होती है, और पंजाब में इससे थोड़ा ही कम लगभग 42 लाख हेक्टर ज़मीन पर, पैदावार के मामले में बिहार का किसान पंजाब के किसान के सामने कही नहीं ठहरता। मसलन, पंजाब में देश का लगभग 18% गेहूँ उगता है, जबकि बिहार में केवल 5.76%। इसी तरह अन्य फसलों का हाल भी है। बिहार में खेती घाटे का सौदा बन चुकी है। शायद इन्हीं सब आशंकाओं के चलते पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संपन्न किसान आंदोलन में भाग ले रहे है।उनकी आशंकाओं का आधार बिहार है जो कृषि मंडियों के ख़ात्मे के बाद स्थिति बेहतर करने में नाकाम रहा है।
शायद उन्हें डर है कि कहीं उनकी हालत भी बिहार के किसानों जैसी न हो जाये। पंजाब का एक किसान सालाना औसतन 2 लाख 30 हज़ार 905 रुपए कमाता है। बिहार के किसान पर अपनी आमदमी की तुलना में क़र्ज़ भी बहुत है। कृषि मंत्रालय के 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक हर बिहारी किसान पर 19 हज़ार 672 रुपए क़र्ज़ है। हालांकि, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की ताज़ा तस्वीर से जुड़े आँकड़े केंद्र सरकार के पास नहीं हैं लेकिन पुराने आँकड़े भी बेहद निराशाजनक हैं। नेशनल सैंपल सर्वे के मुताबिक देश के गांवों में आज भी एक व्यक्ति पूरे महीने में सिर्फ 1430 रुपए ही खर्च करता है। कई राज्यों में हालत तो बेहद ख़राब हैं। मसलन बिहार के गांवों में एक व्यक्ति प्रति महीने 1127 में अपना गुज़र बसर करता है। बिहार में 45.67 लाख हेक्टर ज़मीन पर खेती होती है, और पंजाब में इससे थोड़ा ही कम लगभग 42 लाख हेक्टर ज़मीन पर, पैदावार के मामले में बिहार का किसान पंजाब के किसान के सामने कही नहीं ठहरता। मसलन, पंजाब में देश का लगभग 18% गेहूँ उगता है, जबकि बिहार में केवल 5.76%। इसी तरह अन्य फसलों का हाल भी है। बिहार में खेती घाटे का सौदा बन चुकी है। शायद इन्हीं सब आशंकाओं के चलते पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संपन्न किसान आंदोलन में भाग ले रहे है।उनकी आशंकाओं का आधार बिहार है जो कृषि मंडियों के ख़ात्मे के बाद स्थिति बेहतर करने में नाकाम रहा है।
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