प्रमुख मुद्दे ग़ायब; पंजाब और हरियाणा में चंडीगढ़ पर खींचतान !
पंजाब राज्य में कृषि की ज़मीन जो बंजर हो रही हैं और कम उपजाऊ हो रही है - इसे ध्यान में रखते हुए नीतियां बनाने की ज़रूरत है...

केन्द्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ को लेकर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। पंजाब में भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार ने राज्य के विधानसभा में इस मामले पर एक प्रस्ताव भी पारित किया था जिसमें चंडीगढ़, पंजाब को स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।
अब हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने मंगलवार को चंडीगढ़ मुद्दे पर राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया और केन्द्र से पंजाब पुनर्गठन अधिनियम से संबंधित सभी चिंताओं को दूर किए जाने तक कोई कदम नहीं उठाने का आग्रह किया। साथ ही एमएल खट्टर ने सतलुज-यमुना लिंक नहर के निर्माण का मुद्दा एक बार फिर उठाया है।
चूंकि चंडीगढ़ एक केन्द्रशासित प्रदेश है और इसके साथ ही यह पंजाब और हरियाणा की साझा राजधानी भी है। हरियाणा सरकार की तरफ से राज्य विधासभा में पेश प्रस्ताव पर चिंता जताई गई है जो 1 अप्रैल 2022 को पंजाब विधानसभा से पारित हुआ था। विघानसभा में सीएम भगवंत मान ने केन्द्र सरकार पर प्रशासन और अन्य सामान्य संपत्ति में संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश का भी आरोप लगाया था। हरियाणा सरकार ने केन्द्र सरकार द्वारा बीबीएमबी या भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड के नियमों में किए गए संशोधन पर भी चिंता जताई और कहा कि केन्द्र सरकार का यह फैसला पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 की भावना के खिलाफ है जो नदी परियोजनाओं को पंजाब और हरियाणा के सामान्य संपत्ति के रूप में मानता है। पंजाब और हरियाणा राज्यों के बीच यह विवाद पंजाब के हरियाणा से अलग होने के समय से ही रहा है। चूंकि लंबे समय तक दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार रही। हालात देखें तो - पंजाब में कांग्रेस और हरियाणा में भाजपा की सरकर होने के बावजूद इस मसले का हल नहीं निकल सका। माना जाता रहा है कि दोनों ही दलों के अपने हित की वजह से मामले को हल करने की दिशा में क़दम नहीं बढ़ाए गए। कांग्रेस की दुविधा ! मसलन, अगर देखा जाए तो पंजाब में बीजेपी के पास कुछ खोने के लिए नहीं है और उसके दोनों ही विधायक प्रस्ताव के ख़िलाफ़ विधानसभा से वॉकआउट कर गए, लेकिन हरियाणा में पार्टी की सरकार है और ऐसे में इस मामले के हल को लेकर आम आदमी पार्टी के साथ खींचतान देखने को मिल सकता है। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के लिए दोनों ही राज्यों में दुविधा पैदा हो गई है - कांग्रेस विधायकों ने अपने-अपने राज्यों के हितों का समर्थन किया है। वहीं अकाली दल ने भी - जिसकी हरियाणा में कोई मौजूदगी नहीं है - चंडीगढ़, पंजाब को स्थानांतरित करने वाले प्रस्ताव का समर्थन किया। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई - जिसका दोनों ही राज्यों में कोई राजनीतिक इतिहास नहीं रही है - सीएम भगवंत मान इस मुद्दे का हल ढूंढने की दिशा में क़दम बढ़ा रहे हैं। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि दोनों ही राज्यों में कई ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ करते हुए सरकारें आपसी टकराव की दिशा में बढ़ रही है। प्रमुख मुद्दों को किया नज़रअंदाज़ ! चंडीगढ़ के विवादित मुद्दे को दशकों बाद सीएम भगवंत मान ने उठाया ज़रूर है लेकिन राज्य में कृषि सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। हाल ही में किसानों ने मोहाली में बड़े स्तर पर विरोध-प्रदर्शन किया जिसमें उन्होंने अपनी एमएसपी की क़ानूनी गारंटी की मांग को एक बार फिर दोहराया। भगवंत मान सरकार ने इस मामले पर विधानसभा में ना कोई प्रस्ताव पेश किया है और ना ही सीएम बनने के बाद इस मुद्दे पर केन्द्र से बात की है (रिपोर्ट लिखे जाने तक)। इनके अलावा मान सरकार ने अबतक कृषि के मुद्दे पर कोई ठोस क़दम नहीं उठाए हैं - जैसे कृषि के लिए प्रकृतिक संसाधनों के कम होने की वजह से खेती पर लागत को कम करने, कृषि उत्पादों पर अपेक्षा से कम कीमतें, जलवायु परिवर्तन के अलावा उन्होंने किसानों की प्रमुख समस्याओं को लेकर विधानसभा में कोई प्रस्ताव पेश/पारित नहीं किया है। किसानों को संकट से बाहर निकालने के लिए राज्य को एक व्यावहारिक और साध्य कृषि नीति (Practical and doable agricultural policy) की सख्त ज़रूरत है। हालांकि मान सरकार ने इस दिशा में कोई क़दम उठाना तो दूर, इसका ज़िक्र तक नहीं किया है। पंजाब राज्य में कृषि की ज़मीन जो बंजर हो रही हैं और कम उपजाऊ हो रही है - इसे ध्यान में रखते हुए नीतियां बनाने की ज़रूरत है। किसानों को क्लाइमेट संकट से कैसे बचाया जाए, ग्रामीण युवाओं को कृषि से कैसे जोड़ा जाए और साथ ही ऑर्गेनिक खेती को कैसै बढ़ावा दिया जाए - मान सरकार को इस दिशा में क़दम उठाने की सख़्त ज़रूरत है जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था, राज्य के नागरिकों और किसानों की ज़िंदगी बेहतर की जा सकती है।
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चूंकि चंडीगढ़ एक केन्द्रशासित प्रदेश है और इसके साथ ही यह पंजाब और हरियाणा की साझा राजधानी भी है। हरियाणा सरकार की तरफ से राज्य विधासभा में पेश प्रस्ताव पर चिंता जताई गई है जो 1 अप्रैल 2022 को पंजाब विधानसभा से पारित हुआ था। विघानसभा में सीएम भगवंत मान ने केन्द्र सरकार पर प्रशासन और अन्य सामान्य संपत्ति में संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश का भी आरोप लगाया था। हरियाणा सरकार ने केन्द्र सरकार द्वारा बीबीएमबी या भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड के नियमों में किए गए संशोधन पर भी चिंता जताई और कहा कि केन्द्र सरकार का यह फैसला पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 की भावना के खिलाफ है जो नदी परियोजनाओं को पंजाब और हरियाणा के सामान्य संपत्ति के रूप में मानता है। पंजाब और हरियाणा राज्यों के बीच यह विवाद पंजाब के हरियाणा से अलग होने के समय से ही रहा है। चूंकि लंबे समय तक दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार रही। हालात देखें तो - पंजाब में कांग्रेस और हरियाणा में भाजपा की सरकर होने के बावजूद इस मसले का हल नहीं निकल सका। माना जाता रहा है कि दोनों ही दलों के अपने हित की वजह से मामले को हल करने की दिशा में क़दम नहीं बढ़ाए गए। कांग्रेस की दुविधा ! मसलन, अगर देखा जाए तो पंजाब में बीजेपी के पास कुछ खोने के लिए नहीं है और उसके दोनों ही विधायक प्रस्ताव के ख़िलाफ़ विधानसभा से वॉकआउट कर गए, लेकिन हरियाणा में पार्टी की सरकार है और ऐसे में इस मामले के हल को लेकर आम आदमी पार्टी के साथ खींचतान देखने को मिल सकता है। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के लिए दोनों ही राज्यों में दुविधा पैदा हो गई है - कांग्रेस विधायकों ने अपने-अपने राज्यों के हितों का समर्थन किया है। वहीं अकाली दल ने भी - जिसकी हरियाणा में कोई मौजूदगी नहीं है - चंडीगढ़, पंजाब को स्थानांतरित करने वाले प्रस्ताव का समर्थन किया। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई - जिसका दोनों ही राज्यों में कोई राजनीतिक इतिहास नहीं रही है - सीएम भगवंत मान इस मुद्दे का हल ढूंढने की दिशा में क़दम बढ़ा रहे हैं। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि दोनों ही राज्यों में कई ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ करते हुए सरकारें आपसी टकराव की दिशा में बढ़ रही है। प्रमुख मुद्दों को किया नज़रअंदाज़ ! चंडीगढ़ के विवादित मुद्दे को दशकों बाद सीएम भगवंत मान ने उठाया ज़रूर है लेकिन राज्य में कृषि सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। हाल ही में किसानों ने मोहाली में बड़े स्तर पर विरोध-प्रदर्शन किया जिसमें उन्होंने अपनी एमएसपी की क़ानूनी गारंटी की मांग को एक बार फिर दोहराया। भगवंत मान सरकार ने इस मामले पर विधानसभा में ना कोई प्रस्ताव पेश किया है और ना ही सीएम बनने के बाद इस मुद्दे पर केन्द्र से बात की है (रिपोर्ट लिखे जाने तक)। इनके अलावा मान सरकार ने अबतक कृषि के मुद्दे पर कोई ठोस क़दम नहीं उठाए हैं - जैसे कृषि के लिए प्रकृतिक संसाधनों के कम होने की वजह से खेती पर लागत को कम करने, कृषि उत्पादों पर अपेक्षा से कम कीमतें, जलवायु परिवर्तन के अलावा उन्होंने किसानों की प्रमुख समस्याओं को लेकर विधानसभा में कोई प्रस्ताव पेश/पारित नहीं किया है। किसानों को संकट से बाहर निकालने के लिए राज्य को एक व्यावहारिक और साध्य कृषि नीति (Practical and doable agricultural policy) की सख्त ज़रूरत है। हालांकि मान सरकार ने इस दिशा में कोई क़दम उठाना तो दूर, इसका ज़िक्र तक नहीं किया है। पंजाब राज्य में कृषि की ज़मीन जो बंजर हो रही हैं और कम उपजाऊ हो रही है - इसे ध्यान में रखते हुए नीतियां बनाने की ज़रूरत है। किसानों को क्लाइमेट संकट से कैसे बचाया जाए, ग्रामीण युवाओं को कृषि से कैसे जोड़ा जाए और साथ ही ऑर्गेनिक खेती को कैसै बढ़ावा दिया जाए - मान सरकार को इस दिशा में क़दम उठाने की सख़्त ज़रूरत है जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था, राज्य के नागरिकों और किसानों की ज़िंदगी बेहतर की जा सकती है।
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