जोधपुर: पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी परिवार के 11 सदस्यों की 'ज़हरीले इंजेक्शन' से मौत

2015 में पाकिस्तान से आए एक हिन्दू शरणार्थी परिवार के 11 सदस्यों की राजस्थान के जोधपुर में मौत हो गई है. जोधपुर पुलिस इसे खुदकुशी का मामला मानकर आगे की तफ्तीश कर रही है. पुलिस ने मौके से एक सुसाइड नोट भी बरामद किया है.
पुलिस के मुताबिक बोदूराम की 38 साल की बेटी लक्ष्मी पेशे से नर्स है. माना जा रहा है कि शनिवार की रात खाने में नींद की गोलियां मिलाने से सभी बेहोश हो गए. इसके बाद सभी को ज़हर का इंजेक्शन लगाया गया. परिवार के सभी 11 सदस्य जिनमें तीन महिलाएँ, दो पुरुष और पाँच बच्चे हैं, उनके हाथों पर इंजेक्शन के निशान मिले हैं जबकि लक्ष्मी के शरीर में निशान हाथ की बजाय पैर में मिले हैं. पुलिस को आशंका है कि घरेलू झगड़े के बाद यह क़दम उठाया गया है लेकिन सभी एंगल से जांच की जा रही है.
बोदूराम भील जनजाति से ताल्लुक रखते थे. उन्होंने लोदता गांव में खेती के लिए ज़मीन का कुछ हिस्सा किराए पर लिया था और परिवार समेत उसी खेत में झोपड़ी डालकर रह रहे थे. इस परिवार का 12वां सदस्य केवल राम ज़िंदा है जो शनिवार रात खेत पर मवेशियों को चराने के लिए गया और सो गया. अगली सुबह झोपड़ी में लौटने पर, उसने पाया कि उनका पूरा परिवार मर गया था. पुलिस के मुताबिक बोदूराम के परिवार का अपने रिश्तेदारों से लगातार झगड़ा होता था. यही वजह रही कि उसका बेटा 2015 में पाकिस्तान से भारत आया था लेकिन झगड़ों के चलते वापस लौट गया. केंद्र सरकार पड़ोसी देशों के हिन्दू शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए पिछले साल ज़ोर-शोर से नागरिकता संशोधन कानून लेकर आयी थी लेकिन इस परिवार को क़ानून का फायदा नहीं मिलना था क्योंकि नागरिकता देने की समयसीमा 2014 है जबकि यह परिवार 2015 में भारत आया था. केंद्र सरकार के मुताबिक इस क़ानून से 31,313 लोग फौरन लाभार्थी बनेंगे जो 31 दिसंबर 2014 से पहले अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत में आ चुके है. गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में तीनों देशों के लोगों को बेहद कम संख्या में नागरिकता दी गई है. आंकड़ों के मुताबिक साल 2015 से 2019 के बीच बांग्लादेश के 148, अफ़ग़ानिस्तान के 665 और पाकिस्तान के 2,668 लोगों को भारत की नागरिकता दी गई है. इनके अलावा 2015 में भारत-बांग्लादेश भूमि समझौता के तहत 14,864 बांग्लादेशी मूल के लोगों को एक मुश्त नागरिकता दी गई थी.
बोदूराम भील जनजाति से ताल्लुक रखते थे. उन्होंने लोदता गांव में खेती के लिए ज़मीन का कुछ हिस्सा किराए पर लिया था और परिवार समेत उसी खेत में झोपड़ी डालकर रह रहे थे. इस परिवार का 12वां सदस्य केवल राम ज़िंदा है जो शनिवार रात खेत पर मवेशियों को चराने के लिए गया और सो गया. अगली सुबह झोपड़ी में लौटने पर, उसने पाया कि उनका पूरा परिवार मर गया था. पुलिस के मुताबिक बोदूराम के परिवार का अपने रिश्तेदारों से लगातार झगड़ा होता था. यही वजह रही कि उसका बेटा 2015 में पाकिस्तान से भारत आया था लेकिन झगड़ों के चलते वापस लौट गया. केंद्र सरकार पड़ोसी देशों के हिन्दू शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए पिछले साल ज़ोर-शोर से नागरिकता संशोधन कानून लेकर आयी थी लेकिन इस परिवार को क़ानून का फायदा नहीं मिलना था क्योंकि नागरिकता देने की समयसीमा 2014 है जबकि यह परिवार 2015 में भारत आया था. केंद्र सरकार के मुताबिक इस क़ानून से 31,313 लोग फौरन लाभार्थी बनेंगे जो 31 दिसंबर 2014 से पहले अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत में आ चुके है. गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में तीनों देशों के लोगों को बेहद कम संख्या में नागरिकता दी गई है. आंकड़ों के मुताबिक साल 2015 से 2019 के बीच बांग्लादेश के 148, अफ़ग़ानिस्तान के 665 और पाकिस्तान के 2,668 लोगों को भारत की नागरिकता दी गई है. इनके अलावा 2015 में भारत-बांग्लादेश भूमि समझौता के तहत 14,864 बांग्लादेशी मूल के लोगों को एक मुश्त नागरिकता दी गई थी.
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