कृषि क्षेत्र का क़र्ज़ बढ़कर 15.62 लाख करोड़ के पार, मोदी कैसे करेंगे किसानों की आय दोगुनी
संसद में पेश नए आंकड़े बताते हैं कि कृषि क्षेत्र पर क़र्ज़ बढ़ता जा रहा है. आंकड़ों के मुताबिक साल 2016-17 में कृषि क्षेत्र पर 14 लाख 36 हज़ार 799 करोड़ रुपए क़र्ज़ था जो 2017-18 में बढ़कर 14 लाख 67 हज़ार 223 करोड़ और 2018-19 में बढ़कर 15 लाख 62 हज़ार 220 करोड़ रुपए हो गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले की प्राचीर से ऐलान कर चुके हैं कि साल 2022 तक देश के किसानों की आमदनी दोगुनी कर दी जाएगी लेकिन संसद में पेश आंकड़े इसके उलट कहानी बयां कर रहे हैं। नए आंकड़ों के मुताबिक पिछले 3 सालों में कृषि क्षेत्र पर चढ़ा कर्ज़ा 14 लाख 36 हज़ार करोड़ से बढ़कर 15 लाख 62 हज़ार करोड़ हो गया है। ऐसे में 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का सपना दूर की कौड़ी नज़र आता है।
संसद में पेश नए आंकड़े बताते हैं कि कृषि क्षेत्र पर क़र्ज़ बढ़ता जा रहा है. आंकड़ों के मुताबिक साल 2016-17 में कृषि क्षेत्र पर 14 लाख 36 हज़ार 799 करोड़ रुपए क़र्ज़ था जो 2017-18 में बढ़कर 14 लाख 67 हज़ार 223 करोड़ और 2018-19 में बढ़कर 15 लाख 62 हज़ार 220 करोड़ रुपए हो गया।
राज्यों की बात करें तो कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा क़र्ज़ तमिलनाडु पर है जहां कर्ज़ का आंकड़ा 1 लाख 85 हज़ार 444 करोड़ रुपए है। दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है जहां कृषि क्षेत्र पर 1 लाख 56 हज़ार 319 करोड़ रुपए का क़र्ज़ चढ़ा हुआ है। इसी तरह महाराष्ट्र पर 1 लाख 47 हज़ार 749 करोड़, आंध्र प्रदेश पर 1 लाख 45 हज़ार 625 करोड़, कर्नाटक पर 1 लाख 27 हज़ार 505 करोड़, राजस्थान पर 1 लाख 6 हज़ार 181 करोड़, पंजाब पर 82 हज़ार 675 करोड़ और हरियाणा पर 64 हज़ार 684 करोड़ का कृषि क़र्ज़ है। कृषि कर्ज़ एक तरफ हैं और किसानों की बदहाल ज़िंदगी दूसरी तरफ. NSSO की 2013 की रिपोर्ट बताती है कि देश में कृषि से जुड़े 52 फीसदी परिवार क़र्ज़ में डूबे हुए हैं और हर घर पर औसतन 47 हज़ार का क़र्ज़ है। कृषि क्षेत्र के आंकड़े बताते हैं कि साल 2004 से 2014 के बीच कृषि के क्षेत्र में ऐतिहासिक प्रगति हुई और कृषि विकास दर चार फ़ीसदी तक पहुंच गई थी जबकि 1995 से 2004 के बीच यह दर 2.6 फ़ीसदी थी। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक कृषि क्षेत्र में चार फ़ीसदी की विकास दर स्वर्णिम कही जा सकती है लेकिन मोदी सरकार में इसकी दर घटकर 2.9 फ़ीसदी रह गई है। ऐसे में मोदी सरकार का यह दावा कि 2022 तक देश के किसानों की आमदनी दोगुनी कर दी जाएगी, खोखला मालूम पड़ता है। किसानों की बदहाली और कर्ज़ के बढ़ते आंकड़े कृषि क्षेत्र पर बढ़ते संकट की कहानी बयां कर रहे हैं।
राज्यों की बात करें तो कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा क़र्ज़ तमिलनाडु पर है जहां कर्ज़ का आंकड़ा 1 लाख 85 हज़ार 444 करोड़ रुपए है। दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है जहां कृषि क्षेत्र पर 1 लाख 56 हज़ार 319 करोड़ रुपए का क़र्ज़ चढ़ा हुआ है। इसी तरह महाराष्ट्र पर 1 लाख 47 हज़ार 749 करोड़, आंध्र प्रदेश पर 1 लाख 45 हज़ार 625 करोड़, कर्नाटक पर 1 लाख 27 हज़ार 505 करोड़, राजस्थान पर 1 लाख 6 हज़ार 181 करोड़, पंजाब पर 82 हज़ार 675 करोड़ और हरियाणा पर 64 हज़ार 684 करोड़ का कृषि क़र्ज़ है। कृषि कर्ज़ एक तरफ हैं और किसानों की बदहाल ज़िंदगी दूसरी तरफ. NSSO की 2013 की रिपोर्ट बताती है कि देश में कृषि से जुड़े 52 फीसदी परिवार क़र्ज़ में डूबे हुए हैं और हर घर पर औसतन 47 हज़ार का क़र्ज़ है। कृषि क्षेत्र के आंकड़े बताते हैं कि साल 2004 से 2014 के बीच कृषि के क्षेत्र में ऐतिहासिक प्रगति हुई और कृषि विकास दर चार फ़ीसदी तक पहुंच गई थी जबकि 1995 से 2004 के बीच यह दर 2.6 फ़ीसदी थी। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक कृषि क्षेत्र में चार फ़ीसदी की विकास दर स्वर्णिम कही जा सकती है लेकिन मोदी सरकार में इसकी दर घटकर 2.9 फ़ीसदी रह गई है। ऐसे में मोदी सरकार का यह दावा कि 2022 तक देश के किसानों की आमदनी दोगुनी कर दी जाएगी, खोखला मालूम पड़ता है। किसानों की बदहाली और कर्ज़ के बढ़ते आंकड़े कृषि क्षेत्र पर बढ़ते संकट की कहानी बयां कर रहे हैं।
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