हिमाचल प्रदेश: जंगलों में प्रदूषण का खेल

कालका-शिमला हाइवे से तीन किलोमीटर दूर धर्मपुर नाहन रोड पर हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गांव में खुले तौर पर वायु प्रदूषण,ञ मिट्टी प्रदूषण और जल प्रदूषण का काम चल रहा है। देवदार के जंगलों से घिरा एक मायने में यह रोड घना वनस्पति क्षेत्र में है।
इस इलाके में दो या तीन बस्ती इकाइयों सहित कुछ छोटे गाँव हैं, सड़क पर रहने वाले लगभग 15 परिवार और ढलान के नीचे गाँव के समूहों में कुछ सौ ग्रामीण, जो मुख्यतः किसान हैं।
गाँव वालों का कहना है कि दो कबाड़ डीलरों ने कुछ साल पहले ऑटोमोबाइल निराकरण का काम शुरू किया था - वे पहले मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग पर यह काम किया करते थे लेकिन अब नाहन रोड के चौड़ा हो जाने से वे यहां शिफ्ट हो गए हैं। राज्य सरकार द्वारा अनिवार्य रूप से औद्योगिक क्षेत्रों में उनके संचालन को कानूनी रूप से प्रेरित करने के लिए भारी मुआवजा भी दिया था। गाँव वालों का कहना है कि उन लोगों ने निराकरण के काम के लिए औद्योगिक क्षेत्र में जाने के बजाय वन क्षेत्रों को चुना और अपने काम का तेजी से विस्तार भी किया। गाँव वालों के मुताबिक जंगलों में पुराने, खराब हो चुके और दुर्घटनाग्रस्त वाहनों और कारों, छोटे ट्रकों, स्कूटरों, मोटरसाइकिलों आदि को "औद्योगिक पैमाने" पर तोड़ा जाता है और जलाया जाता है। औद्योगिक गैस कटर और मशीनीकरण कर इन वाहनों को मूल रूप से कांच, प्लास्टिक, रबड़ भागों में तोड़ कर अधिकांश भाग को जला दिया जाता है। इससे बिक्री की चीजें अलग की जाती है। लेकिन इसका बुरा प्रभाव यहां की मिट्टी, पानी पर पड़ता है जो प्रदूषित हो जाता है। इसके जलने से हवा भी प्रदूषित होती है। इसके लिए गांव वालों ने आसपास के ग्रामीणों के साथ मिलकर दो साल पहले जिला कलेक्टर को इन गंभीर स्वास्थ्य खतरों की शिकायत करते हुए एक आवेदन भी दिया था, कि उनके जल स्रोत दूषित हो रहे हैं, भूमिगत जल दूषित हो रहा है और अब पानी भी बंद हो गया है। यह शिकायत उचित माध्यमों, एडीएम, डीएम, डीसी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के माध्यम से सरकार की तीन शाखाओं- पीडब्ल्यूडी, वन विभाग और पुलिस विभाग को की गई थी लेकिन गाँव वालों का कहना है कि कोई कार्रवाई नहीं हुई। पुलिस ने जांच पड़ताल तो की और जमीनी स्थिति की पुष्टि करते हुए रिपोर्ट सौंप दी लेकिन ये कार्रवाई सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। आरोप है कि जमीनी स्तर के स्थानीय प्रशासन को धन के बल पर 'खरीद' लिया गया है और इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
गाँव वालों का कहना है कि दो कबाड़ डीलरों ने कुछ साल पहले ऑटोमोबाइल निराकरण का काम शुरू किया था - वे पहले मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग पर यह काम किया करते थे लेकिन अब नाहन रोड के चौड़ा हो जाने से वे यहां शिफ्ट हो गए हैं। राज्य सरकार द्वारा अनिवार्य रूप से औद्योगिक क्षेत्रों में उनके संचालन को कानूनी रूप से प्रेरित करने के लिए भारी मुआवजा भी दिया था। गाँव वालों का कहना है कि उन लोगों ने निराकरण के काम के लिए औद्योगिक क्षेत्र में जाने के बजाय वन क्षेत्रों को चुना और अपने काम का तेजी से विस्तार भी किया। गाँव वालों के मुताबिक जंगलों में पुराने, खराब हो चुके और दुर्घटनाग्रस्त वाहनों और कारों, छोटे ट्रकों, स्कूटरों, मोटरसाइकिलों आदि को "औद्योगिक पैमाने" पर तोड़ा जाता है और जलाया जाता है। औद्योगिक गैस कटर और मशीनीकरण कर इन वाहनों को मूल रूप से कांच, प्लास्टिक, रबड़ भागों में तोड़ कर अधिकांश भाग को जला दिया जाता है। इससे बिक्री की चीजें अलग की जाती है। लेकिन इसका बुरा प्रभाव यहां की मिट्टी, पानी पर पड़ता है जो प्रदूषित हो जाता है। इसके जलने से हवा भी प्रदूषित होती है। इसके लिए गांव वालों ने आसपास के ग्रामीणों के साथ मिलकर दो साल पहले जिला कलेक्टर को इन गंभीर स्वास्थ्य खतरों की शिकायत करते हुए एक आवेदन भी दिया था, कि उनके जल स्रोत दूषित हो रहे हैं, भूमिगत जल दूषित हो रहा है और अब पानी भी बंद हो गया है। यह शिकायत उचित माध्यमों, एडीएम, डीएम, डीसी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के माध्यम से सरकार की तीन शाखाओं- पीडब्ल्यूडी, वन विभाग और पुलिस विभाग को की गई थी लेकिन गाँव वालों का कहना है कि कोई कार्रवाई नहीं हुई। पुलिस ने जांच पड़ताल तो की और जमीनी स्थिति की पुष्टि करते हुए रिपोर्ट सौंप दी लेकिन ये कार्रवाई सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। आरोप है कि जमीनी स्तर के स्थानीय प्रशासन को धन के बल पर 'खरीद' लिया गया है और इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
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