कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब बैन पर सुनवाई: अबतक की पूरी जानकारी !
कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब बैन पर सुनवाई 3 बजे तक के लिए टली...

कर्नाटक हाई कोर्ट ने मंगलवार को कुछ जूनियर कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध के मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि वे तर्क से जाएंगे, न कि जुनून या भावनाओं से। HC ने यह भी कहा, “संविधान जो कहता है, हम उसी पर चलेंगे। संविधान मेरे लिए भगवद गीता है।"
एडवोकेट जनरल ने कर्नाटक हाई कोर्ट को बताया कि कॉलेजों को यूनिफॉर्म तय करने की ऑटोनॉमी दी गई है। एडवोकेट जनरल ने यह भी कहा कि जो छात्र छूट चाहते हैं वे कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी से संपर्क कर सकते हैं।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने कहा कि हेडस्कार्फ़ या हिजाब (बुर्का या घूंघट नहीं) पहनना मुस्लिम परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वकील देवदत्त कामत का कहना है कि राज्य का रुख इतना सहज नहीं है। इसलिए वे याचिका का विरोध कर रहे हैं। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि हिजाब लगाने को धारा 19(1)(a) के तहत छूट प्राप्त है और यह सिर्फ धारा 19(6 ) के तहत ही प्रतिबंधित किया जा सकता है। वकील देवदत्त कामत ने तर्क दिया कि हिजाब पहनना निजता के अधिकार का एक पहलू है जिसे सुप्रीम कोर्ट के पुट्टास्वामी फैसले द्वारा अनुच्छेद 21 के हिस्से के रूप में मान्यता दी गई है। Also Read: Hijab Ban के ख़िलाफ़ प्रदर्शन; भगवाधारी छात्र-छात्राओं का परेड, जय श्री राम के नारे ! याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि कॉलेजों में हिजाब बैन के राज्य सरकार के आदेश कर्नाटक शिक्षा नियमों के दायरे से बाहर है और राज्य के पास इसे जारी करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वो यह तय करे कि धर्म की अनिवार्य प्रथा क्या है और क्या नहीं। यह तय करने का सिर्फ संवैधानिक न्यायालयों के पास ही एकमात्र अधिकार है। धर्म का पालन करने का अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता के अधीन एक मौलिक अधिकार है। इस बीच कर्नाटक हाई कोर्ट के न्यायधीश ने कहा कि राज्य बिल्कुल भी निष्कर्ष नहीं निकाल सकता है। याचिकाकर्ता के वकील ने केरल हाई कोर्ट के उस फैसले का भी हवाला दिया है जिसमें कोर्ट ने एसपीसी की महिला कैंडिडेट के लिए हिजाब या हेडस्कार्फ को यूनिफॉर्म के हिस्से के रूप में मान्यता नहीं दी है और उसपर रोक लगा दिया है। वकील देवदत्त कामत का कहना है कि कर्नाटक सरकार के हिजाब बैन के आदेश केरल उच्च न्यायालय के फैसले पर निर्भर करता है कि हिजाब इस्लाम के लिए आवश्यक नहीं है। Also Read: कॉलेज में हिजाब बैन वाली याचिका पर कर्नाटक हाई कोर्ट में आज सुनवाई हालांकि यह फैसला कर्नाटक के स्कूल के मामले पर बिल्कुल भी लागू नहीं होता। ऐसा इसलिए है क्योंकि केरल उच्च न्यायालय का फैसला सरकारी संस्थान में हिजाब पहनने के संदर्भ में नहीं था बल्कि यह एक निजी ईसाई संस्थान में इस तरह के अधिकार से संबंधित था। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, “सिर्फ यह कहना पर्याप्त नहीं है कि कानून-व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी। हम सिर पर दुपट्टा ओढ़कर और कॉलेज आकर चुपचाप अपनी पढ़ाई करते हैं। इसे सार्वजनिक व्यवस्था का रंग देने के लिए, गाड़ी को घोड़े के आगे रखने की कोशिश है। वकील देवदत्त कामत ने तर्क दिया कि, “मैं एक ब्राह्मण हूं और मेरा बेटा स्कूल में नमम पहनता है। क्या कल स्कूल कह सकता है कि यह सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित करता है?” उन्होंने कहा- याचिकाकर्ता हिजाब पहने हुई हैं और किसी को परेशान नहीं कर रही हैं। अगर पब्लिक ऑर्डर का मसला है तो क्या पब्लिक ऑर्डर तभी प्रभावित होता है जब वे हिजाब पहनकर स्कूल में जाती हैं? क्या यह पब्लिक ऑर्डर स्कूल के बाहर प्रभावित नहीं होता?” वरिष्ठ वकील ने कहा- “राज्य किसी भी धार्मिक प्रथा के संबंध में 'सार्वजनिक व्यवस्था' कहकर रोक सकती है। राज्य सरकार चाहे तो हर धार्मिक प्रथा को सार्वजनिक व्यवस्था का हवाला देकर रोक लगा सकती है। कोर्ट को भूसे से गेहूं अलग करना होगा।” उन्होंने कहा कि, “एक तर्क हो सकता है कि 'शिक्षा एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि है, वे (छात्राएं) घर पर धार्मिक अभ्यास क्यों नहीं कर सकतीं।' लेकिन भारत में धर्मनिरपेक्षता अलग है। हम सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता का पालन करते हैं।” याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि, “राज्य को मौलिक अधिकारों के प्रयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए न कि उनका अपमान करने के लिए। अगर गुंडे अशांति पैदा कर रहे हैं, तो राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि लड़कियां अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकें। राज्य सार्वजनिक व्यवस्था के सुगम आधार पर नागरिकों के मौलिक अधिकारों में कटौती नहीं कर सकता।” कर्नाटक हाई कोर्ट शैक्षणिक संस्थानों की कार्रवाई के ख़िलाफ़ चार याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें महिला मुस्लिम छात्रों को इस आधार पर कक्षाओं में भाग लेने से रोक दिया गया है कि वे हिजाब (हेडस्कार्फ़) पहनती हैं। याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि संस्थाएं याचिकाकर्ताओं और अन्य मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने के एकमात्र आधार पर प्रवेश से वंचित करके उनके साथ भेदभाव कर रही हैं। हाल ही में, केरल सरकार ने एक आदेश जारी किया है जिसमें स्पष्ट किया गया है कि स्टूडेंट पुलिस कैडेट (एसपीसी) के यूनिफॉर्म के रूप में हिजाब या धार्मिक प्रतीकों को उजागर करने वाली किसी भी चीज़ की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने कहा कि हेडस्कार्फ़ या हिजाब (बुर्का या घूंघट नहीं) पहनना मुस्लिम परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वकील देवदत्त कामत का कहना है कि राज्य का रुख इतना सहज नहीं है। इसलिए वे याचिका का विरोध कर रहे हैं। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि हिजाब लगाने को धारा 19(1)(a) के तहत छूट प्राप्त है और यह सिर्फ धारा 19(6 ) के तहत ही प्रतिबंधित किया जा सकता है। वकील देवदत्त कामत ने तर्क दिया कि हिजाब पहनना निजता के अधिकार का एक पहलू है जिसे सुप्रीम कोर्ट के पुट्टास्वामी फैसले द्वारा अनुच्छेद 21 के हिस्से के रूप में मान्यता दी गई है। Also Read: Hijab Ban के ख़िलाफ़ प्रदर्शन; भगवाधारी छात्र-छात्राओं का परेड, जय श्री राम के नारे ! याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि कॉलेजों में हिजाब बैन के राज्य सरकार के आदेश कर्नाटक शिक्षा नियमों के दायरे से बाहर है और राज्य के पास इसे जारी करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वो यह तय करे कि धर्म की अनिवार्य प्रथा क्या है और क्या नहीं। यह तय करने का सिर्फ संवैधानिक न्यायालयों के पास ही एकमात्र अधिकार है। धर्म का पालन करने का अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता के अधीन एक मौलिक अधिकार है। इस बीच कर्नाटक हाई कोर्ट के न्यायधीश ने कहा कि राज्य बिल्कुल भी निष्कर्ष नहीं निकाल सकता है। याचिकाकर्ता के वकील ने केरल हाई कोर्ट के उस फैसले का भी हवाला दिया है जिसमें कोर्ट ने एसपीसी की महिला कैंडिडेट के लिए हिजाब या हेडस्कार्फ को यूनिफॉर्म के हिस्से के रूप में मान्यता नहीं दी है और उसपर रोक लगा दिया है। वकील देवदत्त कामत का कहना है कि कर्नाटक सरकार के हिजाब बैन के आदेश केरल उच्च न्यायालय के फैसले पर निर्भर करता है कि हिजाब इस्लाम के लिए आवश्यक नहीं है। Also Read: कॉलेज में हिजाब बैन वाली याचिका पर कर्नाटक हाई कोर्ट में आज सुनवाई हालांकि यह फैसला कर्नाटक के स्कूल के मामले पर बिल्कुल भी लागू नहीं होता। ऐसा इसलिए है क्योंकि केरल उच्च न्यायालय का फैसला सरकारी संस्थान में हिजाब पहनने के संदर्भ में नहीं था बल्कि यह एक निजी ईसाई संस्थान में इस तरह के अधिकार से संबंधित था। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, “सिर्फ यह कहना पर्याप्त नहीं है कि कानून-व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी। हम सिर पर दुपट्टा ओढ़कर और कॉलेज आकर चुपचाप अपनी पढ़ाई करते हैं। इसे सार्वजनिक व्यवस्था का रंग देने के लिए, गाड़ी को घोड़े के आगे रखने की कोशिश है। वकील देवदत्त कामत ने तर्क दिया कि, “मैं एक ब्राह्मण हूं और मेरा बेटा स्कूल में नमम पहनता है। क्या कल स्कूल कह सकता है कि यह सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित करता है?” उन्होंने कहा- याचिकाकर्ता हिजाब पहने हुई हैं और किसी को परेशान नहीं कर रही हैं। अगर पब्लिक ऑर्डर का मसला है तो क्या पब्लिक ऑर्डर तभी प्रभावित होता है जब वे हिजाब पहनकर स्कूल में जाती हैं? क्या यह पब्लिक ऑर्डर स्कूल के बाहर प्रभावित नहीं होता?” वरिष्ठ वकील ने कहा- “राज्य किसी भी धार्मिक प्रथा के संबंध में 'सार्वजनिक व्यवस्था' कहकर रोक सकती है। राज्य सरकार चाहे तो हर धार्मिक प्रथा को सार्वजनिक व्यवस्था का हवाला देकर रोक लगा सकती है। कोर्ट को भूसे से गेहूं अलग करना होगा।” उन्होंने कहा कि, “एक तर्क हो सकता है कि 'शिक्षा एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि है, वे (छात्राएं) घर पर धार्मिक अभ्यास क्यों नहीं कर सकतीं।' लेकिन भारत में धर्मनिरपेक्षता अलग है। हम सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता का पालन करते हैं।” याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि, “राज्य को मौलिक अधिकारों के प्रयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए न कि उनका अपमान करने के लिए। अगर गुंडे अशांति पैदा कर रहे हैं, तो राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि लड़कियां अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकें। राज्य सार्वजनिक व्यवस्था के सुगम आधार पर नागरिकों के मौलिक अधिकारों में कटौती नहीं कर सकता।” कर्नाटक हाई कोर्ट शैक्षणिक संस्थानों की कार्रवाई के ख़िलाफ़ चार याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें महिला मुस्लिम छात्रों को इस आधार पर कक्षाओं में भाग लेने से रोक दिया गया है कि वे हिजाब (हेडस्कार्फ़) पहनती हैं। याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि संस्थाएं याचिकाकर्ताओं और अन्य मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने के एकमात्र आधार पर प्रवेश से वंचित करके उनके साथ भेदभाव कर रही हैं। हाल ही में, केरल सरकार ने एक आदेश जारी किया है जिसमें स्पष्ट किया गया है कि स्टूडेंट पुलिस कैडेट (एसपीसी) के यूनिफॉर्म के रूप में हिजाब या धार्मिक प्रतीकों को उजागर करने वाली किसी भी चीज़ की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
ताज़ा वीडियो