कृषि निजिकरण से किसानों को फायदा ? चीनी मिलों पर किसानों के हज़ारों करोड़ पहले से बकाया

प्रधानमंत्री मोदी की अपील के बाद केन्द्रीय मंत्री घूम-घूमकर किसानों से मिल रहे हैं और क़ानून के बारे में बता रहे हैं। उधर किसानों का आरोप है कि सरकार कृषि क्षेत्र का निजीकरण कर रही है। जबकि सरकार का कहना है कि इससे किसानों को फायदा होगा। हालांकि निजिकरण से किसानों का फायदा सचमुच होता है, आंकड़े इसकी गवाही नहीं देते।
बता दें कि केन्द्र सरकार खुद ही संसद में बता चुकी है कि किसानों का पैसा निजी कंपनियों के पास पेंडिंग है जिसका भुगतान नहीं किया जा रहा है। मॉनसून सत्र के दौरान सरकार ने बताया है कि 2016 से गन्ना किसानों सरकारी और निजी कंपनियों पर किसानों का 15 हज़ार 683 करोड़ रूपये बकाये भुगतान नहीं किया गया है। इनमें अकेले बजाज हिन्दुस्तान की 14 मिलों पर किसानों का करीब तीन हज़ार करोड़ रूपये बकाया है जिसका कंपनी ने भुगतान नहीं किया है।
सबसे ज़्यादा किसानों का बकाया भाजपा शासित राज्य उत्तर प्रदेश में है। राज्य सरकार ने खुद भी विधानसभा में इसकी जानकारी दी है। चीनी सीज़न 2019-20 की अवधि में चीनी कंपनियों ने किसानों की कुल खरीद का 76 फीसदी ही भुगतान किया है। इनमें सबसे आगे मोदी सुगर मिल्स है जिसने इस दौरान किसानों की कुल गन्ना खरीद का महज़ 37 फीसदी ही भुगतान किया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ निजी कंपनियों पर गन्ना किसानों का 7,702 करोड़ रूपये से भी ज़्यादा पेंडिंग है। वहीं कॉर्पोरेट क्षेत्रों पर 610 करोड़ और खुद सरकार पर किसानों का 130 करोड़ रूपये बकाया है। बता दें कि विवादित कृषि क़ानून के विरोध में किसान संगठनों से लेकर विपक्ष भी सड़क पर है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने क़ानून बनाने से लेकर संसद से पारित करवाने तक में संवैधानिक नियमों का उल्लंघन किया है। जबकि किसान संगठनों की दलील है कि इस क़ानून के बन जाने से निजी कंपनियां मनमाने ढंग से काम करेगी जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।
सबसे ज़्यादा किसानों का बकाया भाजपा शासित राज्य उत्तर प्रदेश में है। राज्य सरकार ने खुद भी विधानसभा में इसकी जानकारी दी है। चीनी सीज़न 2019-20 की अवधि में चीनी कंपनियों ने किसानों की कुल खरीद का 76 फीसदी ही भुगतान किया है। इनमें सबसे आगे मोदी सुगर मिल्स है जिसने इस दौरान किसानों की कुल गन्ना खरीद का महज़ 37 फीसदी ही भुगतान किया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ निजी कंपनियों पर गन्ना किसानों का 7,702 करोड़ रूपये से भी ज़्यादा पेंडिंग है। वहीं कॉर्पोरेट क्षेत्रों पर 610 करोड़ और खुद सरकार पर किसानों का 130 करोड़ रूपये बकाया है। बता दें कि विवादित कृषि क़ानून के विरोध में किसान संगठनों से लेकर विपक्ष भी सड़क पर है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने क़ानून बनाने से लेकर संसद से पारित करवाने तक में संवैधानिक नियमों का उल्लंघन किया है। जबकि किसान संगठनों की दलील है कि इस क़ानून के बन जाने से निजी कंपनियां मनमाने ढंग से काम करेगी जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।
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