दिल्ली हिंसा: भारतीय और भारतीय की लड़ाई में फायदा किसका?
भारतीय और भारतीय की लड़ाई में फायदा किसका?

आजकल भारतीय दंगों में मारे जा रहे हैं। दिल्ली में पिछले दिनों ढेर सारे भारतीय मारे दिए गए। भारतीयों को किसने मारा? भारतीय को भारतीयों ने मारा। भारतीय को भारतीयों ने क्यों मारा? भारत माता के नागरिकों को भारत माता के नागरिकों ने मार डाला।
खजूरी ख़ास इलाक़े में बीएसएफ के जवान मोहम्मद अनीस का घर जला दिया गया। ख़बरों में बताया गया है कि घर जलाने वाली भीड़ ने सिलिंडर फेकने से पहले ये नारा लगाया कि इधर आ पाकिस्तानी तुझे नागरिकता देते हैं। मोहम्मद अनीस जम्मू कश्मीर में रहकर तीन साल तक भारत की सीमा की रक्षा कर चुके हैं।
इससे पहले गोकुलपुरी में तैनात दिल्ली पुलिस के हेड कान्स्टबल रतन लाल को गोली मार दी गई। आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या कर दी गई। बीएसएफ के मोहम्मद अनीस भी भारतीय, दिल्ली पुलिस के रतन लाल भी भारतीय, अंकित शर्मा भी भारतीय। दंगे भड़कने के कई दिन बाद तक सरकार जो चुप बैठी रही वो भी भारतीय। चुनाव जीतने के बाद दिल्ली की जनता को आई लव यू बोलने वाले मुख्यमंत्री केजरीवाल भी भारतीय। दिल्ली पुलिस भारतीय, हाई कोर्ट भारतीय, तुरंत एफआईआर के लिए आदेश देने वाले जज भारतीय, ट्रांसफर होने वाला भी भारतीय, ट्रांसफर करने वाला भी भारतीय और ये कहने वाला कि अभी माहौल ठीक नहीं है वो भी भारतीय। प्रधानमंत्री का वो नारा भी याद कीजिए जब उन्होंने कहा था कि जनता ने चौकीदार चुना है। ज़ाहिर है कि उन्होंने जब ख़ुद को चौकीदार बताया था, तब सभी 130 करोड़ भारतीय के लिए ये बात कही थी। क्या भारतीयों को भारतीय के ख़िलाफ़ किसी ने भड़का दिया? किसने भड़का दिया? जिसने भी भारतीयों को भारतीय के ख़िलाफ़ भड़काया और उकसाया क्या आप उसे भारतीय मानेंगे या भारत का दुश्मन मानेंगे? जब भारतीय को भारतीय के घर जला दिए। दुकानें लूट ली। तब कुछ भारतीय को भारतीय को बचाया। जान पर खेल कर भारतीय को भारतीय का क़त्ल होने से बचाया। उनके घर नहीं जलने दिए। गुरुद्वारे खोल दिए गए। जान बचाने के लिए जो भारतीय भागे उन्हें मंदिरों और मस्जिदों में भी शरण दी गई। जिन भारतीय को भारतीय को बचाया। असली भारतीय तो वही हुए ना? विरोध तो एक क़ानून को लेकर था। ये लड़ाई धर्म की कैसे हो गई? बात तो संविधान की थी। संविधान की रक्षा तो हर भारतीय को करनी चाहिए। संविधान ने देश के नागरिकों को विरोध करने का अधिकार दिया है। विरोध शांतिपूर्ण ना हो तो उसे रोकना पुलिस का काम है। एंटी सीएए के प्रदर्शंकरीयों को रोकना प्रो सीएए का काम नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आपको सीएए के पक्ष में रैली धरना प्रदर्शन करना है तो कीजिए लेकिन एंटी सीएए प्रदर्शन को रोकना या उससे टकराना ठीक नहीं है। दिल्ली में यही हुआ। जब जब इस तरह की घटना होती है पूरा भारत बदनाम होता है। दंगों से इंडिया बदनाम होता है प्रदर्शनों से नहीं। विपक्ष की आवाज़ लोकतंत्र को मज़बूत करती है। अमरीका योरोप सिंगापुर आस्ट्रेलिया न्यू जीलैंड के लोग क्या सोचते होंगे कि भारतीय कैसे हैं कि विदेशों में तो एकता दिखाते हैं। अगर अमरीका में भारतीय के ख़िलाफ़ कोई भेदभाव करता है तो सब एक सुर में सरकार के खीयफ विरोध करते हैं। लेकिन अपने ही देश में एक दूसरे का क़त्ल करते हैं, दंगे करते हैं, एक दूसरे के घर जलाते हैं, दुकानें लूटते हैं। वे ये भी सोचते होंगे कि यहाँ कैसी पुलिस है कि दंगे रोक नहीं पाती। उन्हें ये बात भी याद आती होगी की भारत के पीएम ने कहा था कि वे चौकीदार हैं। आज अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया दिल्ली में हुए दंगों की ख़बरों से भरा हुआ है। कई अख़बारों ने हमारे प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना भी की है। भारत की राजधानी दिल्ली में तीन चार दिन तक दंगे चलते हैं और सरकार तब जागती है जब सड़कों पर लाशें गिर चुकी होती है। नाले लाशों से भर चुके होते हैं। नफ़रत फैलाने वाले तांडव कर चुके होते हैं। प्रधानमंत्री के शब्दों में पूछें कि क्या ये संयोग है या प्रयोग है? अगर ये प्रयोग है तो बहुत ख़तरनाक प्रयोग है।
खजूरी ख़ास इलाक़े में बीएसएफ के जवान मोहम्मद अनीस का घर जला दिया गया। ख़बरों में बताया गया है कि घर जलाने वाली भीड़ ने सिलिंडर फेकने से पहले ये नारा लगाया कि इधर आ पाकिस्तानी तुझे नागरिकता देते हैं। मोहम्मद अनीस जम्मू कश्मीर में रहकर तीन साल तक भारत की सीमा की रक्षा कर चुके हैं।
इससे पहले गोकुलपुरी में तैनात दिल्ली पुलिस के हेड कान्स्टबल रतन लाल को गोली मार दी गई। आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या कर दी गई। बीएसएफ के मोहम्मद अनीस भी भारतीय, दिल्ली पुलिस के रतन लाल भी भारतीय, अंकित शर्मा भी भारतीय। दंगे भड़कने के कई दिन बाद तक सरकार जो चुप बैठी रही वो भी भारतीय। चुनाव जीतने के बाद दिल्ली की जनता को आई लव यू बोलने वाले मुख्यमंत्री केजरीवाल भी भारतीय। दिल्ली पुलिस भारतीय, हाई कोर्ट भारतीय, तुरंत एफआईआर के लिए आदेश देने वाले जज भारतीय, ट्रांसफर होने वाला भी भारतीय, ट्रांसफर करने वाला भी भारतीय और ये कहने वाला कि अभी माहौल ठीक नहीं है वो भी भारतीय। प्रधानमंत्री का वो नारा भी याद कीजिए जब उन्होंने कहा था कि जनता ने चौकीदार चुना है। ज़ाहिर है कि उन्होंने जब ख़ुद को चौकीदार बताया था, तब सभी 130 करोड़ भारतीय के लिए ये बात कही थी। क्या भारतीयों को भारतीय के ख़िलाफ़ किसी ने भड़का दिया? किसने भड़का दिया? जिसने भी भारतीयों को भारतीय के ख़िलाफ़ भड़काया और उकसाया क्या आप उसे भारतीय मानेंगे या भारत का दुश्मन मानेंगे? जब भारतीय को भारतीय के घर जला दिए। दुकानें लूट ली। तब कुछ भारतीय को भारतीय को बचाया। जान पर खेल कर भारतीय को भारतीय का क़त्ल होने से बचाया। उनके घर नहीं जलने दिए। गुरुद्वारे खोल दिए गए। जान बचाने के लिए जो भारतीय भागे उन्हें मंदिरों और मस्जिदों में भी शरण दी गई। जिन भारतीय को भारतीय को बचाया। असली भारतीय तो वही हुए ना? विरोध तो एक क़ानून को लेकर था। ये लड़ाई धर्म की कैसे हो गई? बात तो संविधान की थी। संविधान की रक्षा तो हर भारतीय को करनी चाहिए। संविधान ने देश के नागरिकों को विरोध करने का अधिकार दिया है। विरोध शांतिपूर्ण ना हो तो उसे रोकना पुलिस का काम है। एंटी सीएए के प्रदर्शंकरीयों को रोकना प्रो सीएए का काम नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आपको सीएए के पक्ष में रैली धरना प्रदर्शन करना है तो कीजिए लेकिन एंटी सीएए प्रदर्शन को रोकना या उससे टकराना ठीक नहीं है। दिल्ली में यही हुआ। जब जब इस तरह की घटना होती है पूरा भारत बदनाम होता है। दंगों से इंडिया बदनाम होता है प्रदर्शनों से नहीं। विपक्ष की आवाज़ लोकतंत्र को मज़बूत करती है। अमरीका योरोप सिंगापुर आस्ट्रेलिया न्यू जीलैंड के लोग क्या सोचते होंगे कि भारतीय कैसे हैं कि विदेशों में तो एकता दिखाते हैं। अगर अमरीका में भारतीय के ख़िलाफ़ कोई भेदभाव करता है तो सब एक सुर में सरकार के खीयफ विरोध करते हैं। लेकिन अपने ही देश में एक दूसरे का क़त्ल करते हैं, दंगे करते हैं, एक दूसरे के घर जलाते हैं, दुकानें लूटते हैं। वे ये भी सोचते होंगे कि यहाँ कैसी पुलिस है कि दंगे रोक नहीं पाती। उन्हें ये बात भी याद आती होगी की भारत के पीएम ने कहा था कि वे चौकीदार हैं। आज अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया दिल्ली में हुए दंगों की ख़बरों से भरा हुआ है। कई अख़बारों ने हमारे प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना भी की है। भारत की राजधानी दिल्ली में तीन चार दिन तक दंगे चलते हैं और सरकार तब जागती है जब सड़कों पर लाशें गिर चुकी होती है। नाले लाशों से भर चुके होते हैं। नफ़रत फैलाने वाले तांडव कर चुके होते हैं। प्रधानमंत्री के शब्दों में पूछें कि क्या ये संयोग है या प्रयोग है? अगर ये प्रयोग है तो बहुत ख़तरनाक प्रयोग है।
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