Savarkar, कथित वीर का अदालती बयान और माफीनामा
इस रिपोर्ट में पेश है सावरकर के माफीनामे की कहानी, उन्हीं की ज़ुबानी…

ख़ैर यह एक अलग चर्चा का विषय है। इस रिपोर्ट में पेश है सावरकर के माफीनामे की कहानी, उन्हीं की ज़ुबानी…। इस रिपोर्ट में हम उन बातों का बिंदुवार ज़िक्र कर रहे हैं जो वीडी सावरकर ने अंग्रेज़ों को अपनी याचिका में कही थी...
भारत सरकार के गृह सदस्य के लिए वी.डी. सरवरकर (दोषी संख्या 32778) की याचिका, दिनांक 14 नवंबर, 1913 । मैं आपके विचार के लिए निम्नलिखित बिंदुओं को प्रस्तुत करना चाहता हूं:
"(1) जून, 1911 को जब में यहां (जेल) आया तो मैं अपनी पार्टी के बाकी दोषियों के साथ मुख्य आयुक्त के कार्यालय में ले जाया गया। वहां मुझे "डी" के रूप में वर्गीकृत किया गया था जिसका अर्थ है “डैंजरस यानि ख़तरनाक” कैदी; बाकी दोषियों को "डी" के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया था। फिर मुझे पूरे 6 महीने एकांत कारावास में गुज़ारने पड़े और अन्य दोषियों को ऐसी सज़ा नहीं मिली। उस दौरान, मेरे हाथों से खून बह रहे थे, फिर भी मुझे कॉयर पर रखा गया था। फिर"मुझे जेल में सबसे कठिन काम में मज़दूरी के लिए तेल-मिल में डाल दिया गया"
हालाँकि हर समय मेरा आचरण असाधारण रूप से अच्छा था, फिर भी मुझे रिहाई नहीं मिली, जबकि अन्य दोषियों को जेल से बाहर भेज दिया गया। उस समय से लेकर आज तक मैंने अपने व्यवहार को यथासंभव अच्छा रखने की कोशिश की है।” (2) जब मैंने प्रोमोशन यानि पदोन्नति के लिए याचिका दायर की तो मुझे बताया गया कि मैं एक विशेष श्रेणी का क़ैदी हूं और इसलिए प्रोमोट नहीं किया जा सकता। जब हम में से किसी ने बेहतर भोजन या कोई विशेष उपचार मांगा तो हमें बताया गया कि "आप सिर्फ सामान्य अपराधी हैं और बाकियों को जो खाना मिल रहा है, आप भी वो ही खाइये।” इस प्रकार, महोदय, यह देख सकते हैं कि सिर्फ विशेष तक़लीफ के लिए हमें विशेष क़ैदी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। (3) जब अधिकांश क़ैदियों की रिहाई हुई तो मैंने भी अपनी रिहाई का अनुरोध किया लेकिन मुझे रिहाई नहीं मिली।"हम में से अधिकांश पर कई मामलों में मुक़दमे थे और उन्हें 10-12 बार रिहाई मिली लेकिन मेरे ऊपर दो-तीन ही मामले थे और फिर मुझे रिहाई नहीं मिली"
इन सबके बावजूद जब मेरी रिहाई का आदेश दिया गया, और जब बाहर के कुछ राजनीतिक बंदियों को परेशानी में डाला गया तो फिर से मैं उनके साथ जेल में ही बंद कर दिया गया। (4) अगर मैं भारतीय जेलों में होता, तो मुझे इस समय तक बहुत अधिक छूट मिल जाती, मैं और अधिक चिट्ठी घर भेज सकता था और मुलाक़ात कर सकता था। अगर मैं एक शुद्ध और सरल ट्रांसपोर्टर होता तो इस समय तक इस जेल से रिहा हो चुका होता और टिकट-छुट्टी आदि की प्रतीक्षा कर रहा होता। लेकिन जैसा कि, मुझे न तो भारतीय जेल में रखा गया है और न ही मुझे अपराधी कॉलोनी विनिमय यानि कनविक्ट कॉलोनी रेगुलेशन में, मुझे दोनों ही के नुक़सान से गुज़रना पड़ा। (5) इसलिए, योर ऑनर, क्या मैं जिस परेशानी में डाल दिया गया हूं उससे मुक्ति मिलेगी- या तो मुझे भारतीय जेल में डाल दिया जाए या फिर मेरे साथ एक ट्रांसपोर्टर, एक सामान्य क़ैदी की तरह बर्ताव किया जाए। मैं किसी भी तरह के तरजीही व्यवहार की मांग नहीं कर रहा हूं। हालांकि मेरा मानना है कि एक राजनीतिक क़ैदी के रूप में दुनिया के स्वतंत्र राष्ट्रों में किसी भी सभ्य प्रशासन में इसकी उम्मीद की जा सकती थी; क्या मुझे यह रियायतें और मेरे उपर यह एहसान नहीं किया जा सकता, जो एक भ्रष्ट और आदतन अपराधियों के साथ किया जाता है ? मुझे इस जेल में स्थायी रूप से बंद करने की यह वर्तमान योजना मुझे जीवन और आशा को बनाए रखने की किसी भी संभावना से काफी निराश करती है। सज़ा काटने वालों के लिए बात अलग है, लेकिन सर, मुझे आइना घूरते हुए 50 साल गुज़र गए हैं! मैं नैतिक ऊर्जा को इतना कैसे खींच सकता हूं कि उन्हें एक बंद कारावास में पारित कर दिया जाए, यहां तक कि उन रियायतों से भी इनकार कर दिया जाता है। कम अपराध वाले अपराधियों को भी अपना जीवन सुगम बनाने के लिए रियायतें मिल जाती है, क्या मैं इसका भी हक़दार नहीं हूं ? आप मुझे भारतीय जेल भेज दें जहां मैं... मेरे लोगों से हर चार महीने में मुलाक़ात कर पाउंगा जो दुर्भाग्य से जेलों में बंद कर दिए गए थे, जानते हैं कि अपने सबसे क़रीबी और सबसे प्यारे को देखकर कितनी खुशी मिलती है ? और सबसे उपर मुझे एक नैतिक़ लेकिन क़ानूनी तौर पर नहीं- 14 साल में रिहाई के हक़दार होने का अधिकार मिल जाएगा। विनायक सावरकर आगे कहते हैं... "अगर मुझे भारतीय जेल में शिफ्ट नहीं किया जाता है तो कम से कम जेल से रिहा कर दिया जाए, अन्य दोषियों की तरह पांच साल बाद मिलने, मेरी टिकट छुट्टी और मेरे परिवार को यहां बुला दिया जाए। इसके बाद सिर्फ एक ही शिकायत रह जाएगी, वो ये कि मुझे सिर्फ मेरी ग़लतियों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, न की दूसरों की ग़लतियों के लिए।इसी दौरान विनायक सावरकर ने अदालत में जज के सामने कहा था कि उन्होंने 1911 में क्षमादान के लिए भारत सरकार (तब अंग्रेज़ी हुकूमत) को याचिका भेजी थी, ताकि उन्हें माफ कर दिया जाए। इस दौरान सावरकर ने अंग्रेज़ों द्वारा भारतीय पर ज़ुल्म करने के लिए उठाए गए क़दमों की सराहना भी की थी।
उन्होंने कहा था, “भारतीय राजनीति के नए डेवलपमेंट और सरकार की सुलह नीति ने संवैधानिक रेखा को एक बार फिर खोल दिया है। अब कोई भी व्यक्ति जिसके दिल में भारत और मानवता की भलाई है, वह काँटेदार रास्तों पर आँख बंद करके कदम नहीं रखेगा, जिसने 1906 -1907 में भारत की उत्साहित और निराशाजनक स्थिति में हमें शांति और प्रगति के पथ से भटका दिया। इसलिए"अगर सरकार अपनी अनेक उपकार और दया से मुझे मुक्त करती है तो मैं एक बार नहीं बल्कि संवैधानिक प्रगति और अंग्रेजी सरकार के प्रति वफादारी का कट्टर समर्थक रहुंगा जो उस प्रगति की सबसे महत्वपूर्ण शर्त है"
जबतक हम जेल में बंद हैं, भारत में महामहिम की वफादार प्रजा के सैकड़ों और हज़ारों घरों में वास्तविक खुशी नहीं हो सकती, क्योंकि खून पानी से भी गाढ़ा होता है; लेकिन अगर हमें रिहा किया जाता है तो लोग सहज रूप से सरकार के प्रति खुशी और कृतज्ञता का नारा लगाएंगे, जो कि क्षमा करना और “अपनी ग़लतियों को” सुधारना जानती है, बदला लेना नहीं।इसके अलावा, संविधान के प्रति मेरा बदलाव भारत और विदेशों में उन सभी गुमराह युवकों को वापस लाने में मदद करेगा जो कभी मुझे अपने मार्गदर्शक के रूप में मानते थे। मैं किसी भी क्षमता में सरकार की सेवा करने के लिए तैयार हूं, क्योंकि मेरे अंदर आया यह बदलाव कर्तव्यनिष्ठ है।
मुझे जेल में रखने से और क्या होगा, इसके मुक़ाबले कुछ भी नहीं मिल सकता। केवल पराक्रमी ही दयालु हो सकता है और इसलिए विलक्षण पुत्र सरकार के माता-पिता के दरवाजे के अलावा और कहां लौट सकता है?आशा है कि माननीय महोदय इन बिन्दुओं पर कृपया संज्ञान लेंगे।
"Petition of convict VD Savarkar(Convict No 32778), 14 Nov, 1913.
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) October 13, 2021
"Therefore if the government in their manifold beneficence and mercy release me I for one cannot but be the staunchest advocate of constitutional progress & loyalty to the English government ......... ." pic.twitter.com/TrOsVXJnAS
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