'विदेशी' ठप्पे के साथ दुनिया छोड़ गये 104 साल के मोदी-भक्त चंद्रधर दास
चंद्रधर दास पर विदेशी होने का ठप्पा कैसे लगा? इस पर उनकी बेटी बताती हैं कि, ‘बहुसंख्यक समुदाय की धमकियों के कारण मेरे पिता ने 1950 के बाद बांग्लादेश छोड़ दिया था।

असम में नागरिकता कानून लागू होने से संदिग्ध क़रार दिये गये कछार ज़िले 104 साल के चंद्रधर दास अपने ऊपर लगे 'विदेशी' ठप्पे के साथ ही दुनिया से कूच कर गये। रविवार को दिल की बीमारी से उनका निधन हो गया।
चंद्रधरदास को दो साल पहले विदेशियों के लिए बनाये गये डिटेंशन कैंप में रखा गया था, जहां उन्होंने तीन महीने बिताये। बाद में उन्हें बेल मिल गयी थी। डिमेंशिया और दिल की बीमारी से जूझते दास अपने ऊपर लगे 'विदेशी' के ठप्पा हटवाने के लिए बेचैन थे।
अमराघाट क्षेत्र के निवासी चंद्रधर दास को जनवरी 2018 में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित किया था। यह एकपक्षीय फैसला था, क्योंकि वो ट्रिब्यूनल के सामने पेश नहीं पाये थे। उनके वकील सुमेन चौधरी ने कहा, ‘अगर सरकार अनिच्छुक नहीं होती, तो शायद उन्हें अपनी नागरिकता मिल सकती थी। CAA पिछले साल पास किया गया था। आमतौर पर तौर-तरीकों को तैयार करने में लगभग तीन महीने लगते हैं, लेकिन CAA के मामले में ऐसा नहीं है। इस एक घटना ने साबित कर दिया कि हमारी सामाजिक व्यवस्था में कितनी ख़ामियाँ हैं। वो शख्स इतना जिंदादिल था, लेकिन अपनी मृत्यु से पहले अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सका।’
दास की बेटी न्युति उस दिन याद करती है जब उनेके भाई के फोन पर चंद्रधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुन रहे थे।बताती हैं कि पीएम को सुनकर उनके पिता मुस्कुराकर बोले, 'मोदी हमारा भगवान है। वह यहां नागरिकता कानून से सबका समाधान निकालेगा। हम सब भारतीय हो जाएंगे।' न्युति ने बताया कि उनके पिता को हमेशा यही उम्मीद रही कि एक दिन उन्हें भारतीय नागरिकता मिल जाएगी। वह जहां भी मोदी के पोस्टर देखते, हाथ जोड़कर नमस्कार करते और सिर झुकाते।
उन्होंने आगे बताया, 'प्रधानमंत्री मोदी से उन्हें बड़ी उम्मीद थी। कानून को बने एक साल हो गये लेकिन उनके 'भगवान' ने क्या किया?' उन्होंने कहा कि वह सिर्फ भारतीय होकर मरना चाहते थे। हमने बहुत कोशिश की। कोर्ट-कोर्ट में भटके। वकीलों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तक से मिले, सभी काग़ज़ात जमा किये। और फिर वह (चंद्रधर) चले गए। हम अभी भी कानून की नजर में विदेशी हैं। नागरिकता कानून ने हमारे लिए कुछ नहीं किया।’
चंद्रधर दास पर विदेशी होने का ठप्पा कैसे लगा? इस पर उनकी बेटी बताती हैं कि, ‘बहुसंख्यक समुदाय की धमकियों के कारण मेरे पिता ने 1950 के बाद बांग्लादेश छोड़ दिया था। वो त्रिपुरा के ज़रिए भारत में दाखिल हुए और तेलियामुरा में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करना शुरू किया। उन्होंने शादी की और वहीं उनके बच्चे भी हुए। लेकिन फिर स्थानीय समूहों ने समस्याएँ पैदा करना शुरू कर दिया, इसलिए वो बंगाली बहुल बराक घाटी में चले गए। लेकिन ट्रिब्यूनल कोर्ट ने उन्हें अवैध विदेशी घोषित कर दिया। यहां तक कि हमारे नाम भी NRC में नहीं हैं।”
वहीं दूसरे ओर चंद्रधर की मौत पर सियासत भी हो रही है। कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने दास के परिवार से मुलाकात की और नागरिकता कानून को सिर्फ वोटों के ध्रुवीकरण का एक टूल बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि डिटेंशन कैंप में भेजे गये हिंदू बंगालियों की बीजेपी मदद नहीं कर रही है। वहीं बीजेपी सांसद राजदीप राय ने दास के निधन पर सांत्वना देते हुए कहा कि जो भी हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने सफाई दी कि कोरोना महामारी के कारण नागरिकता कानून के लागू होने की प्रक्रिया में देरी हो रही है।
चंद्रधर दास की इकलौती इच्छा यही थी कि वो इस दुनिया से एक भारतीय के तौर पर विदा हों, लेकिन उनकी ये इच्छा पूरी नहीं हो सकी।
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अमराघाट क्षेत्र के निवासी चंद्रधर दास को जनवरी 2018 में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित किया था। यह एकपक्षीय फैसला था, क्योंकि वो ट्रिब्यूनल के सामने पेश नहीं पाये थे। उनके वकील सुमेन चौधरी ने कहा, ‘अगर सरकार अनिच्छुक नहीं होती, तो शायद उन्हें अपनी नागरिकता मिल सकती थी। CAA पिछले साल पास किया गया था। आमतौर पर तौर-तरीकों को तैयार करने में लगभग तीन महीने लगते हैं, लेकिन CAA के मामले में ऐसा नहीं है। इस एक घटना ने साबित कर दिया कि हमारी सामाजिक व्यवस्था में कितनी ख़ामियाँ हैं। वो शख्स इतना जिंदादिल था, लेकिन अपनी मृत्यु से पहले अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सका।’

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