बजट के झंझट: वित्त मंत्री कैसे बनाएंगी 2021 का बजट?
यह मतलब क़तई नहीं है कि महामारी में सरकार ने जमकर ख़र्च किया है और लोगों को राहत पहुंचाई है। बल्कि महामारी के दौरान पहले के मुक़ाबले सरकार ने ख़र्च भी कम ही किया है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वित्त वर्ष 2021 का आम बजट 1 फरवरी को पेश करेंगी। पहले से ही बुरे दौर से गुज़र रही अर्थव्यवस्था महामारी के बाद से और भी ज़्यादा ख़स्ता हो गई है। गोन्यूज़ के एडिटर इन चीफ पंकज पचौरी ने विस्तार से बताया है कि वित्त मंत्री के सामने बजट पेश करने तक क्या क्या चुनौतियां है।
दरअसल वित्त मंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वो बजट घाटे से कैसे पार पाएंगी? महामारी के दौरान पहली छमाही में सरकार का बजट घाटा 14.5 फीसदी पर पहुंच गया था। वहीं दूसरी छमाही में इसमें गिरावट होकर 10.5 फीसदी रहने का अनुमान है। अगर इसमें कुल जमा को जोड़ दिया जाए तो बजट घाटा 12.5 फीसदी तक पहुंच जाता है जो अनुमान से कहीं ज़्यादा है। यानि सरकार की आमदनी और ख़र्च में तकरीबन 12.5 फीसदी का अंतर।
अब सवाल है कि बजट घाटा इतना ज़्यादा कैसे हो गया ? इसका यह मतलब क़तई नहीं है कि महामारी में सरकार ने जमकर ख़र्च किया है और लोगों को राहत पहुंचाई है। बल्कि महामारी के दौरान पहले के मुक़ाबले सरकार ने ख़र्च भी कम ही किया है। इस दौरान पहली तिमाही में केन्द्र ने 7 लाख 26 हज़ार 278 करोड़ रूपये ख़र्च किया था। जबकि दूसरी तिमाही में लॉकडाउन में ढिलाई के बाद सरकार ने अपना ख़र्च कम कर दिया। इस दौरान सरकार ने 5 लाख 61 हज़ार 812 करोड़ रूपये ख़र्च किया। बता दें कि यही वो रक़म है जो सरकार ने अपने कथित 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज में से दिया है। वित्त मंत्री के सामने चुनौती यह है कि आने वाले दिनों में देश की जीडीपी को कैसे संभालेंगी ? क्योंकि यह तो इसी पर निर्भर करता है कि सरकार ख़र्च कितना कर रही है। आरबीआई ने खुद माना है कि देश की अर्थव्यवस्था इस साल 9.6 फीसदी तक सिकुड़ने वाली है। कुल मिलाकर अगर कहा जाए तो केन्द्र की मोदी सरकार इस मोर्चे पर चौतरफा घिर गई है। अब यह तभी साफ होगा जब वित्त मंत्री का 'बहीखाता' खुलेगा।
अब सवाल है कि बजट घाटा इतना ज़्यादा कैसे हो गया ? इसका यह मतलब क़तई नहीं है कि महामारी में सरकार ने जमकर ख़र्च किया है और लोगों को राहत पहुंचाई है। बल्कि महामारी के दौरान पहले के मुक़ाबले सरकार ने ख़र्च भी कम ही किया है। इस दौरान पहली तिमाही में केन्द्र ने 7 लाख 26 हज़ार 278 करोड़ रूपये ख़र्च किया था। जबकि दूसरी तिमाही में लॉकडाउन में ढिलाई के बाद सरकार ने अपना ख़र्च कम कर दिया। इस दौरान सरकार ने 5 लाख 61 हज़ार 812 करोड़ रूपये ख़र्च किया। बता दें कि यही वो रक़म है जो सरकार ने अपने कथित 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज में से दिया है। वित्त मंत्री के सामने चुनौती यह है कि आने वाले दिनों में देश की जीडीपी को कैसे संभालेंगी ? क्योंकि यह तो इसी पर निर्भर करता है कि सरकार ख़र्च कितना कर रही है। आरबीआई ने खुद माना है कि देश की अर्थव्यवस्था इस साल 9.6 फीसदी तक सिकुड़ने वाली है। कुल मिलाकर अगर कहा जाए तो केन्द्र की मोदी सरकार इस मोर्चे पर चौतरफा घिर गई है। अब यह तभी साफ होगा जब वित्त मंत्री का 'बहीखाता' खुलेगा।
ताज़ा वीडियो