बिहारः कोरोना से जूझ रही जनता, कहां हैं सांसद?

कोरोना की दूसरी लहर की मार झेल रहे बिहार और इसके लोगों को कोरोना के इलाज और ज़रूरी उपकरणों के लिए दर दर भटकना पड़ा है. मुश्किलों का सामना कर रही जनता को उसके चुने गए प्रतिनिधियों से कुछ उम्मीदें होती हैं. बिहार की जनता जब वेंटिलेटर और ऑक्सीजन की समस्या से जूझ रही थी तब वहां के सांसदों ने लोगों का कितना साथ दिया ये इस बात से पता चल जाता है कि दूसरी लहर के दौरान राज्य के 12 सांसदों ने अपने संसदीय क्षेत्रों में कदम तक नहीं रखा.
एक मीडिया आउटलेट द्वारा बिहार के 40 सांसदों ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान किए गए कामों का विश्लेषण किया. इसमें पाया गया कि आधे ही ऐसे सांसद हैं जो महामारी के बीच अपने क्षेत्र में सक्रिय रहे. इनमें कुछ ऐसे हैं जो जनता के बीच नहीं आए लेकिन किसी रूप में उसकी मदद करते रहे जबकि 35 फीसदी सांसदों ने अपने क्षेत्र की जनता की कोई मदद नहीं की है.
22 मई तक सांसदों की रिपोर्ट में पाया गया कि कम से कम 7 सांसद हैं जिन्होंने पिछले 100 दिनों में एक भी बार अपने क्षेत्र का मुआयना नहीं किया है. इनमें केंद्रिय मंत्री नित्यानंद राय का नाम भी शामिल है. वह उजियारपुर से सांसद हैं. झंझारपुर से रामप्रीत मंडल, जमुई से चिराग पासवान, हाजीपुर से पशुपति पारस, गया से विजय मांझी और वैशाली से वीणा देवी, भागलपुर से जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले अजय मंडल ने 11 फरवरी के बाद से अपने क्षेत्र में कदम नहीं रखा है. यहां तक कि सांसद अजय मंडल की खुद कोरोना से निधन की अफवाह फैल गई थी.
इसके अलावा 12 ऐसे सांसद हैं जो पिछले 30 दिनों से अपने संसदीय क्षेत्र नहीं गए हैं. इनमें केंद्रिय मंत्रियों का नाम भी शामिल हैं. केंद्रिय स्वास्थ्य राज्य मंत्री और बक्सर से सांसद अश्विनी चौबे 6 अप्रैल के बाद से अपने संसदीय क्षेत्र मंय नज़र नहीं आए हैं वहीं केंद्रिय उर्जा मंत्री राजकुमार सिंह भी आखिरी बार 24 अप्रैल को अपने क्षेत्र में दिखाई दिए थे. इस सूची में कुछ और नाम भी शामिल हैं. सारण से राजीव प्रताप रूडी, शिवहर से रमा देवी, सासाराम से छेदी पासवान, समस्तीपुर से प्रिंस कुमार, मुंगेर से राजीव रंजन सिंह उर्फ़ ललन सिंह और नवादा से सांसद चंदन सिंह भी 30 दिनों से अपने संसदीय क्षेत्र में नज़र नहीं आए हैं.
भारत के दूसरे राज्यों की तुलना में बिहार में अस्पतालों की हालत काफी खराब है. उस पर महामारी दोहरी मार की तरह है. राज्य के कई अस्पताल सिर्फ सरकारी दस्तावेज़ों में चल रहे हैं जबकि कुछ अस्पतालों में पिछले कई सालों से स्टाफ की तैनाती ही नहीं हुई है. बिहार के सुक्की स्वास्थ्य उप केंद्र का इस्तेमाल गायों को रखने के लिए हो रहा है. मधुबनी का सदर अस्पताल भी अब जर्जर हो चुका है. वहां सभी सुविधाओं से लैस एंबुलेंस अब कबाड़ का ढेर मात्र रह गई हैं. ये इस्तेमाल न करने के कारण जंग में तब्दील हो गई है.
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