अभय चौटाला का विधानसभा से इस्तीफ़ा, हरियाणा की खट्टर सरकार पर बढ़ा दबाव

26 जनवरी को दिल्ली में निकली किसान परेड और उसमे हुई हिंसा से हरियाणा की राजनीति और गर्म हो चली है। इंडियन नेशनल लोकदल के कद्दावर नेता अभय सिंह चौटाला ने विधानसभा से इस्तीफ़ा दे दिया है। उन्होंने कहा था कि 26 जनवरी तक अगर कृषि कानून वापस नहीं होतो तो वे इस्तीफ़ा दे देंगे। इस इस्तीफे से उनके भतीजे और और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला पर दबाव बढ़ गया है जिनकी जननायक जनता पार्टी ( जेजेपी ) की बैसाखी पर मनोहर लाल खट्टर की सरकार खड़ी है।
इसमें दो राय नहीं की मौजूदा किसान आंदोलन के डेरो में पंजाब और हरियाणा से सबसे ज्यादा लोग है। पंजाब में तो बीजेपी का फिलहाल ख़ास वजूद नहीं है लेकिन हरियाणा में बीजेपी की खट्टर सरकार चल रही है। पिछले चुनावों में बहुमत से दूर रहने के बाद भी खट्टर सत्ता पाने में कामयाब रहे थे। कारण थे दुष्यंत चौटाला, जिन्होंने बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ा लेकिन उप मुख्यमंत्री पद लेकर अपनी पार्टी का समर्थन दे दिया।
बहरहाल, अब हालात बदल गये हैं। कृषि कानूनों के संसद में पारित होने के बाद से ही मानो हरियाणा के किसानों ने बीजेपी को दुश्मन मान लिया है। गुस्सा इतना ज्यादा है कि नेताओं का घर से निकलना बंद हो गया है। जगह जगह उनका घेराव होने लगा है और कई जगह उन्हें गुस्से का भी शिकार होना पड़ा है। यही वजह है कि गृहमंत्री अमित शाह ने सीएम खट्टर और बीजेपी नेताओं को फ़िलहाल किसी प्रकार का सार्वजानिक कार्यक्रम न करने की हिदायत दी है। दुष्यंत चौटाला बार-बार किसानों को आश्वासन देते रहे की कृषि कानून से किसानों का कोई नुकसान नहीं है और एमएसपी जारी रहेगी लेकिन किसानों ने मानो ताऊ देवीलाल के पड़पोते का ऐतबार करना बंद कर दिया है। कुछ दिनों से जेजेपी के विधायक भी बागी तेवर दिखाने लगे है। बीते साल 20 सितंबर को जेजेपी की 2 विधयाक, बरवाला से जोगी राम सिहाग और शाहाबाद से राम करन काला ने किसानों के धरने में हिस्सा लिया। 7 दिसंबर को पार्टी के तीन और विधायकों ने किसान आंदोलन के समर्थन में बयान दिए। ज़रा हरियाणा विधानसभा के गणित से समझिये। हरियाणा में 90 विधानसभा की सीटे हैं और बहुमत का आँकड़ा है 46 सीट। बीजेपी के पास है 40 सीट हैं यानी बहुमत से 6 कम। लेकिन बीजेपी को 10 सीटों वाली जेजेपी का समर्थन है। इसके अलावा राज्य में 6 निर्दलीय भी हैं जो आमतौर पर बीजेपी के ही साथ माने जाते रहे हैं, लेकिन अब चरखी दादरी से निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान खट्टर सरकार से समर्थन वापिस ले चुके है। बाक़ी निर्दलीय भी इस माहौल में समर्थन करने में कतरायेंगे। यानी अगर आंदोलन के दबाब में जेजेपी समर्थन वापस लेती है तो खट्टर सरकार को अपनी सत्ता बचाना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
बहरहाल, अब हालात बदल गये हैं। कृषि कानूनों के संसद में पारित होने के बाद से ही मानो हरियाणा के किसानों ने बीजेपी को दुश्मन मान लिया है। गुस्सा इतना ज्यादा है कि नेताओं का घर से निकलना बंद हो गया है। जगह जगह उनका घेराव होने लगा है और कई जगह उन्हें गुस्से का भी शिकार होना पड़ा है। यही वजह है कि गृहमंत्री अमित शाह ने सीएम खट्टर और बीजेपी नेताओं को फ़िलहाल किसी प्रकार का सार्वजानिक कार्यक्रम न करने की हिदायत दी है। दुष्यंत चौटाला बार-बार किसानों को आश्वासन देते रहे की कृषि कानून से किसानों का कोई नुकसान नहीं है और एमएसपी जारी रहेगी लेकिन किसानों ने मानो ताऊ देवीलाल के पड़पोते का ऐतबार करना बंद कर दिया है। कुछ दिनों से जेजेपी के विधायक भी बागी तेवर दिखाने लगे है। बीते साल 20 सितंबर को जेजेपी की 2 विधयाक, बरवाला से जोगी राम सिहाग और शाहाबाद से राम करन काला ने किसानों के धरने में हिस्सा लिया। 7 दिसंबर को पार्टी के तीन और विधायकों ने किसान आंदोलन के समर्थन में बयान दिए। ज़रा हरियाणा विधानसभा के गणित से समझिये। हरियाणा में 90 विधानसभा की सीटे हैं और बहुमत का आँकड़ा है 46 सीट। बीजेपी के पास है 40 सीट हैं यानी बहुमत से 6 कम। लेकिन बीजेपी को 10 सीटों वाली जेजेपी का समर्थन है। इसके अलावा राज्य में 6 निर्दलीय भी हैं जो आमतौर पर बीजेपी के ही साथ माने जाते रहे हैं, लेकिन अब चरखी दादरी से निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान खट्टर सरकार से समर्थन वापिस ले चुके है। बाक़ी निर्दलीय भी इस माहौल में समर्थन करने में कतरायेंगे। यानी अगर आंदोलन के दबाब में जेजेपी समर्थन वापस लेती है तो खट्टर सरकार को अपनी सत्ता बचाना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
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