Farmers Protest: 670 किसानों की मौत, करीब 40 ने की आत्महत्या !
“बिना बात-विचार के एकतरफा फैसला ही लेना था तो उनको पहले ही कर देना चाहिए था जिससे बड़ी संख्या में मारे गए किसानों की ज़िंदगी बच सकती थी।”

संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जवाबी चिट्ठी भेजी है। इस चिट्ठी में मोर्चा ने एमएसपी की मांग के साथ एक स्मारक के लिए ज़मीन देने की मांग की है। किसानों ने चिट्ठी में बताया है कि लगभग 700 किसानों की आंदोलन के दौरान मौत हो गई। मोर्चे की तरफ से प्रधानमंत्री को यह चिट्ठी किसान नेताओं की मीटिंग के बाद भेजी गई है।
किसान अपनी एमएसपी की मांग पर अटल हैं और उनका कहना है कि जबतक सभी मांगें पूरी नहीं की जाती, वे सीमा खाली नहीं करेंगे। किसानों की मांग है कि केन्द्र C2+50 फीसदी फॉर्मूले पर आधारित एमएसपी पर क़ानून बनाए। साथ ही मोर्च ने केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित "विद्युत अधिनियम संशोधन विधेयक, 2020-21" का ड्राफ्ट वापस लिए जाने की मांग की है।
संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री से सिंघू बॉर्डर पर जिस ज़मीन की मांग की है वहां उन किसानों की याद में एक स्मारक का निर्माण कराया जाएगा जो आंदोलन के दौरान मारे गए। किसान एकता मोर्चा की तरफ से एक ब्लॉगपोस्ट की जानकारी दी गई है, जिसमें बताया गया है कि आंदोलन के दौरान 19 नवंबर 2021 तक 670 किसानों की मौत हो गई। डेथ इन फार्मर्स प्रोटेस्ट 2020 ब्लॉगपोस्ट पर जानकारी दी गई है कि इस दरमियान करीब 40 किसानों ने आत्महत्या कर ली। ब्लॉगपोस्ट के मुताबिक़ आत्महत्या करने वाले किसानों में सरकार के ख़िलाफ़ गुस्सा और नाराज़गी थी। पिछले साल जब किसान राज्यों में ही प्रदर्शन कर रहे थे, तभी अक्टूबर महीने तक 12 किसानों की मौत हो गई थी। इसके बाद किसान 26 नवंबर को दिल्ली की सीमा पर सिंघु बॉर्डर पहुंचे थे और बड़ी संख्या में किसान मारे गए। आंदोलन के दौरान हुई मौतें में राजधानी की अलग-अलग सीमाओं पर बड़ी संख्या में मौतें दर्ज की गई। किसान ज़्यादा ठंड, ज़्यादा गर्मी और आग लगने और सड़क दुर्घटनाओं की वजह से भी मारे गए। मृत में अन्य पेशे के लोग भी शामिल हैं जो आंदोलन के समर्थन में सीमाओं पर आए थे। इन्हीं में एक बर्नाला ज़िले के जनक राज शामिल हैं जो पेशे से एक मकेनिट थे और वो टिकरी बॉर्डर पर किसानों का मुफ्त में ट्रैक्टर रिपेयर करने का काम कर रहे थे। बॉर्डर पर 29-30 नवंबर की दरमियानी रात को आग लगने से जनक राज की मौत हो गई थी। एक 27 वर्षीय महिला किसान मलकीत कौर की दिल्ली के प्रदर्शन स्थल से अपने घर मनसा लौटने के दौरान पंजाब-दिल्ली हाइवे पर सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ब्लॉगपोस्ट में बताया गया है कि मलकीत कौर मज़दूर मुक्ति मोर्चा की सदस्य थीं और उनका परिवार भारी क़र्ज में था। कुछ अन्य महिला किसान भी हैं जिनकी प्रदर्शन स्थल पर बीमार पड़ने या अन्य वजहों से मौत हो गई। आत्महत्या करने वाले किसानों में एक 71 वर्षीय कश्मीर सिंह हैं जो उत्तर प्रदेश के रामपुर ज़िले से ग़ाज़िपुर बॉर्डर आए थे। उन्होंने सरकार के प्रति अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए खुद को फांसी लगा लिया था। जबकि एक 22 वर्षीय गुरलाभ सिंह जिन्होंने दिल्ली प्रदर्शन स्थल से लौटने के बाद पंजाब के अपने दयालपुर गांव में आत्महत्या कर ली थी। 22 वर्षीय गुरलाभ के परिवार पर दस लाख रूपये का क़र्ज़ था। आत्महत्या करने वालों में पंजाब के अमरजीत सिंह भी हैं जो पेशे से वकील थे। 24 दिसंबर 2020 को उन्होंने टिकरी बॉर्डर पर ज़हर लेकर आत्महत्या कर ली थी। उनके पॉकेट से कथित तौर पर एक सुसाइड नोट भी मिला था जिसमें कथित तौर पर, “मोदी” को “तानाशाह” बताया गया था। कथित सुसाइड नोट 18 दिसंबर को लिखी गई थी और उसपर वकील अमरजीत सिंह के हस्ताक्षर भी थे। आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को संयुक्त किसान मोर्चे ने शहीद की उपाधि दी है। किसान प्रधानमंत्री के एकतरफा फैसला से नाराज़ हैं। प्रधानमंत्री के एकतरफा फैसला से पहले किसान और उनके ही मंत्रियों के बीच 11 दौर में बातचीत हुई थी जिसका कोई नतीज़ा नहीं निकला। किसानों का कहना है कि 11 दौर की बातचीत का कोई फायदा नहीं हुआ। अगर प्रधानमंत्री को “बिना बात-विचार के एकतरफा फैसला ही लेना था तो उनको पहले ही कर देना चाहिए था जिससे बड़ी संख्या में मारे गए किसानों की ज़िंदगी बच सकती थी।”
संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री से सिंघू बॉर्डर पर जिस ज़मीन की मांग की है वहां उन किसानों की याद में एक स्मारक का निर्माण कराया जाएगा जो आंदोलन के दौरान मारे गए। किसान एकता मोर्चा की तरफ से एक ब्लॉगपोस्ट की जानकारी दी गई है, जिसमें बताया गया है कि आंदोलन के दौरान 19 नवंबर 2021 तक 670 किसानों की मौत हो गई। डेथ इन फार्मर्स प्रोटेस्ट 2020 ब्लॉगपोस्ट पर जानकारी दी गई है कि इस दरमियान करीब 40 किसानों ने आत्महत्या कर ली। ब्लॉगपोस्ट के मुताबिक़ आत्महत्या करने वाले किसानों में सरकार के ख़िलाफ़ गुस्सा और नाराज़गी थी। पिछले साल जब किसान राज्यों में ही प्रदर्शन कर रहे थे, तभी अक्टूबर महीने तक 12 किसानों की मौत हो गई थी। इसके बाद किसान 26 नवंबर को दिल्ली की सीमा पर सिंघु बॉर्डर पहुंचे थे और बड़ी संख्या में किसान मारे गए। आंदोलन के दौरान हुई मौतें में राजधानी की अलग-अलग सीमाओं पर बड़ी संख्या में मौतें दर्ज की गई। किसान ज़्यादा ठंड, ज़्यादा गर्मी और आग लगने और सड़क दुर्घटनाओं की वजह से भी मारे गए। मृत में अन्य पेशे के लोग भी शामिल हैं जो आंदोलन के समर्थन में सीमाओं पर आए थे। इन्हीं में एक बर्नाला ज़िले के जनक राज शामिल हैं जो पेशे से एक मकेनिट थे और वो टिकरी बॉर्डर पर किसानों का मुफ्त में ट्रैक्टर रिपेयर करने का काम कर रहे थे। बॉर्डर पर 29-30 नवंबर की दरमियानी रात को आग लगने से जनक राज की मौत हो गई थी। एक 27 वर्षीय महिला किसान मलकीत कौर की दिल्ली के प्रदर्शन स्थल से अपने घर मनसा लौटने के दौरान पंजाब-दिल्ली हाइवे पर सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ब्लॉगपोस्ट में बताया गया है कि मलकीत कौर मज़दूर मुक्ति मोर्चा की सदस्य थीं और उनका परिवार भारी क़र्ज में था। कुछ अन्य महिला किसान भी हैं जिनकी प्रदर्शन स्थल पर बीमार पड़ने या अन्य वजहों से मौत हो गई। आत्महत्या करने वाले किसानों में एक 71 वर्षीय कश्मीर सिंह हैं जो उत्तर प्रदेश के रामपुर ज़िले से ग़ाज़िपुर बॉर्डर आए थे। उन्होंने सरकार के प्रति अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए खुद को फांसी लगा लिया था। जबकि एक 22 वर्षीय गुरलाभ सिंह जिन्होंने दिल्ली प्रदर्शन स्थल से लौटने के बाद पंजाब के अपने दयालपुर गांव में आत्महत्या कर ली थी। 22 वर्षीय गुरलाभ के परिवार पर दस लाख रूपये का क़र्ज़ था। आत्महत्या करने वालों में पंजाब के अमरजीत सिंह भी हैं जो पेशे से वकील थे। 24 दिसंबर 2020 को उन्होंने टिकरी बॉर्डर पर ज़हर लेकर आत्महत्या कर ली थी। उनके पॉकेट से कथित तौर पर एक सुसाइड नोट भी मिला था जिसमें कथित तौर पर, “मोदी” को “तानाशाह” बताया गया था। कथित सुसाइड नोट 18 दिसंबर को लिखी गई थी और उसपर वकील अमरजीत सिंह के हस्ताक्षर भी थे। आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को संयुक्त किसान मोर्चे ने शहीद की उपाधि दी है। किसान प्रधानमंत्री के एकतरफा फैसला से नाराज़ हैं। प्रधानमंत्री के एकतरफा फैसला से पहले किसान और उनके ही मंत्रियों के बीच 11 दौर में बातचीत हुई थी जिसका कोई नतीज़ा नहीं निकला। किसानों का कहना है कि 11 दौर की बातचीत का कोई फायदा नहीं हुआ। अगर प्रधानमंत्री को “बिना बात-विचार के एकतरफा फैसला ही लेना था तो उनको पहले ही कर देना चाहिए था जिससे बड़ी संख्या में मारे गए किसानों की ज़िंदगी बच सकती थी।”
ताज़ा वीडियो