3rd Phase Poll: 16 ज़िलों की 59 सीटों पर मतदान, करहल सीट से अखिलेश यादव मैदान में !

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में तीसरे चरण के लिए 20 फरवरी को मतदान होंगे। इससे पहले आज चुनावी प्रचार पर रोक लग गया है। तीसरा चरण सरकार बनाने के लिहाज़ से समाजवादी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है। इस चरण में 16 ज़िलों की 59 सीटों पर मतदान होंगे।
राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी अजय कुमार शुक्ला के मुताबिक़ इस चरण में हाथरस, फिरोजाबाद, एटा, कासगंज, मैनपुरी, कन्नौज, इटावा, औरैया, कानपुर देहात, फर्रुखाबाद, कानपुर नगर, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर महोबा में मतदान होगा।
इनमें पश्चिमी यूपी के पांच जिले- फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, कासगंज और हाथरस शामिल हैं। अवध क्षेत्र के छह जिलों, कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, कन्नौज, इटावा और फर्रुखाबाद में बुंदेलखंड क्षेत्र के पांच जिलों-झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा में मतदान होना हैं। यादव बेल्ट के रूप में जाना जाने वाला यह क्षेत्र कभी समाजवादी पार्टी का गढ़ था, लेकिन 2017 में अधिकांश यादव वोट भाजपा के पास गए। भाजपा ने 59 में से 49 सीटें जीतीं जबकि सपा को केवल 9 सीटों से संतोष करना पड़ा वही कांग्रेस को एक मिली और बसपा को यहां से एक भी सीट नहीं मिली। यहां तक कि यादव गढ़, जिसमें फिरोजाबाद, कासगंज, एटा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, कन्नौज और औरैया शामिल हैं, ने भी सपा को हार मिली थी। राजनीतिक जानकार (observers) मानते हैं कि अखिलेश और शिवपाल के बीच पारिवारिक कलह (feud) इस बदलाव का एक प्रमुख कारण था। 2019 में कन्नौज से अखिलेश की पत्नी और मौजूदा सांसद डिंपल यादव भाजपा से लोकसभा चुनाव हार गईं थी, हालांकि उस समय सपा, बसपा के साथ गठबंधन में थी। इस बार अखिलेश ने शिवपाल के साथ संबंध सुधार लिए हैं और मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। करहल सपा का गढ़ रहा है और 2017 में भी पार्टी ने अपनी जीत यह बरकरार रखी थी। बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह बघेल जो की पार्टी का ओबीसी चेहरा भी हैं उन्हें अखिलेश यादव के सामने चुनावी लड़ाई में उतारा है। तीसरा चरण भाजपा के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो 2017 में जीती 49 सीटों को बरकरार रखने की कोशिश कर रही है। इस चरण में हाथरस निर्वाचन क्षेत्र है जहां सितंबर 2020 में एक सामूहिक बलात्कार ने यूपी में उबाल पैदा कर दिया था। वही दूसरी ओर अखिलेश यादव ने अपने अभियान में हाथरस मुद्दे को जिंदा रखा है, वह हर महीने 'हाथरस की बेटी स्मृति दिवस' मनाते हैं। कासगंज में पिछले साल नवंबर में अल्ताफ की हिरासत में मौत योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी बन गई थी। पुलिस ने दावा किया था की अल्ताफ को एक मामले में पूछताछ के लिए बुलाया गया था और उसने पानी के नल से लटककर सुसाइड कर लिया हैं फिलाल ये मामला अभी कोर्ट में है। इसी चरण में कानपुर में भी मतदान होने जा रहा है और पिछले साल गोरखपुर में पुलिस छापेमारी के दौरान शहर के एक व्यापारी मनीष गुप्ता की हत्या को लेकर विपक्ष की हर बैठक में मुद्दा उठाया जा रहा है। चरण में पांच जिले बुंदेलखंड के भी हैं जो कभी बसपा का गढ़ था, लेकिन 2017 में भाजपा ने वहाँ चुनाव जीत लिया था। हालांकि इस बार, भाजपा वोट मांगते हुए इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विकास का दावा कर रही है, समाजवादी पार्टी पुर्ज़ोर कोशिश में हैं।
इनमें पश्चिमी यूपी के पांच जिले- फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, कासगंज और हाथरस शामिल हैं। अवध क्षेत्र के छह जिलों, कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, कन्नौज, इटावा और फर्रुखाबाद में बुंदेलखंड क्षेत्र के पांच जिलों-झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा में मतदान होना हैं। यादव बेल्ट के रूप में जाना जाने वाला यह क्षेत्र कभी समाजवादी पार्टी का गढ़ था, लेकिन 2017 में अधिकांश यादव वोट भाजपा के पास गए। भाजपा ने 59 में से 49 सीटें जीतीं जबकि सपा को केवल 9 सीटों से संतोष करना पड़ा वही कांग्रेस को एक मिली और बसपा को यहां से एक भी सीट नहीं मिली। यहां तक कि यादव गढ़, जिसमें फिरोजाबाद, कासगंज, एटा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, कन्नौज और औरैया शामिल हैं, ने भी सपा को हार मिली थी। राजनीतिक जानकार (observers) मानते हैं कि अखिलेश और शिवपाल के बीच पारिवारिक कलह (feud) इस बदलाव का एक प्रमुख कारण था। 2019 में कन्नौज से अखिलेश की पत्नी और मौजूदा सांसद डिंपल यादव भाजपा से लोकसभा चुनाव हार गईं थी, हालांकि उस समय सपा, बसपा के साथ गठबंधन में थी। इस बार अखिलेश ने शिवपाल के साथ संबंध सुधार लिए हैं और मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। करहल सपा का गढ़ रहा है और 2017 में भी पार्टी ने अपनी जीत यह बरकरार रखी थी। बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह बघेल जो की पार्टी का ओबीसी चेहरा भी हैं उन्हें अखिलेश यादव के सामने चुनावी लड़ाई में उतारा है। तीसरा चरण भाजपा के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो 2017 में जीती 49 सीटों को बरकरार रखने की कोशिश कर रही है। इस चरण में हाथरस निर्वाचन क्षेत्र है जहां सितंबर 2020 में एक सामूहिक बलात्कार ने यूपी में उबाल पैदा कर दिया था। वही दूसरी ओर अखिलेश यादव ने अपने अभियान में हाथरस मुद्दे को जिंदा रखा है, वह हर महीने 'हाथरस की बेटी स्मृति दिवस' मनाते हैं। कासगंज में पिछले साल नवंबर में अल्ताफ की हिरासत में मौत योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी बन गई थी। पुलिस ने दावा किया था की अल्ताफ को एक मामले में पूछताछ के लिए बुलाया गया था और उसने पानी के नल से लटककर सुसाइड कर लिया हैं फिलाल ये मामला अभी कोर्ट में है। इसी चरण में कानपुर में भी मतदान होने जा रहा है और पिछले साल गोरखपुर में पुलिस छापेमारी के दौरान शहर के एक व्यापारी मनीष गुप्ता की हत्या को लेकर विपक्ष की हर बैठक में मुद्दा उठाया जा रहा है। चरण में पांच जिले बुंदेलखंड के भी हैं जो कभी बसपा का गढ़ था, लेकिन 2017 में भाजपा ने वहाँ चुनाव जीत लिया था। हालांकि इस बार, भाजपा वोट मांगते हुए इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विकास का दावा कर रही है, समाजवादी पार्टी पुर्ज़ोर कोशिश में हैं।
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