अस्पताल में एडमिट होने वाले 3.6% मरीजों को फंगल इन्फेक्शन: आईसीएमआर

एक तरफ़ कोरोनावायरस दिन भर दिन अपने पैर पसारता जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ़ फंगल इन्फेक्शन ने सरकार के साथ-साथ लोगों की चिंता बढ़ा दी है। ब्लैक फंगस, व्हाइट फंगस के बाद अब येलो फंगस के भी मरीज़ सामने आ रहे हैं। इनमें से ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या सबसे अधिक है। इस बीच, आईसीएमआर ने एक स्टडी में दावा किया है कि दूसरी लहर में अस्पतालों में भर्ती हुए मरीजों में कम-से-कम 3.6 फीसदी मरीज सेकंडरी बैक्टिरियल और फंगल इन्फेक्शन से प्रभावित हैं।
स्टडी का डाटा दिखाता है कि कोविड के बाद हुए इन इनफेक्शन्स से रोगियों में मृत्यु दर 10.6 प्रतिशत से बढ़कर 56.7 प्रतिशत तक हो गई। ये डेटा उन 10 हॉस्पिटल का है जहां भर्ती मरीजों का डेटा इकट्ठा किया गया था। आंकड़ों से पता चलता है कि सेकेंड्री इंफेक्शन वाले लोगों में 10 हॉस्पिटल में से एक में मृत्यु दर 78.9 प्रतिशत तक थी। आईसीएमआर में एपिडेमियोलॉडी एवं संचारी रोग विभाग की वैज्ञानिक और पेपर की करिस्पॉन्डिंग ऑथर, डॉ. कामिनी वालिया ने कहा कि, ‘’हमने स्टडी में पाया कि इनमें से ज़्यादातर सेकेंड्री इनफेक्शन में से 78%, अस्पताल में हुए थे। इनफेक्शन के लक्षण हॉस्पिटल में भर्ती होने के 2 दिन बाद शुरु हुए। इनमें से ज़्यादातर नमूनों में ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया थे, जो हॉस्पिटल बेस्ड थे। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि महामारी के बीच अस्पतालों में इनफेक्शन से जुड़ी नीतियां ठीक से लागू नहीं की गईं। डबल ग्लव्स पहनने की वजह से हाथों की हाइजीन उतनी अच्छी नहीं थी। इसके अलावा गर्म मौसम में पीपीई किट पहनना भी इसकी वजह हो सकती है।’’
उन्होंने आगे कहा, ''इनफेक्शन होने की सबसे आम वजह क्लेबसिएला निमोनिया और एसिनेटोबैक्टर बाउमेनिया रोगाणु थे। पिछली आईसीएमआर रिपोर्ट के मुताबिक, आमतौर पर, ई कोली नाम का बैक्टीरिया सबसे आम पाया जाने वाला रोगजनक है। कोविड होने के बाद इनका इलाज और मुश्किल हो जाता है। क्योंकि समय के साथ इन बैक्टीरिया ने बहुत सारे प्रतिरोधी जीन विकसित कर लिए हैं। ज़रूरत है कि अस्पताल अब इनफेक्शन कंट्रोल पर ज़्यादा ध्यान दें।’’ वहीं सर गंगा राम अस्पताल में सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ चंद वट्टल ने कहा, ''यह एक दोहरी मार है। कोविड -19 अन्य संक्रमणों के साथ मृत्यु दर में काफी वृद्धि करता है... दूसरी लहर के बाद रिपोर्ट किए गए म्यूकोर्मिकोसिस के मामले काफी हद तक स्टेरॉयड के अति इस्तेमाल की वजह से हैं। जब दूसरी लहर चरम पर थी, तब स्टेरॉयड बाज़ार से गायब हो गए थे। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है।'' अब देखने वाली बात होगी कि कोरोना के साथ साथ फंगस का कहर कब कम होगा और महामारी से मौत का सिलसिला कब ख़त्म होगा।
उन्होंने आगे कहा, ''इनफेक्शन होने की सबसे आम वजह क्लेबसिएला निमोनिया और एसिनेटोबैक्टर बाउमेनिया रोगाणु थे। पिछली आईसीएमआर रिपोर्ट के मुताबिक, आमतौर पर, ई कोली नाम का बैक्टीरिया सबसे आम पाया जाने वाला रोगजनक है। कोविड होने के बाद इनका इलाज और मुश्किल हो जाता है। क्योंकि समय के साथ इन बैक्टीरिया ने बहुत सारे प्रतिरोधी जीन विकसित कर लिए हैं। ज़रूरत है कि अस्पताल अब इनफेक्शन कंट्रोल पर ज़्यादा ध्यान दें।’’ वहीं सर गंगा राम अस्पताल में सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ चंद वट्टल ने कहा, ''यह एक दोहरी मार है। कोविड -19 अन्य संक्रमणों के साथ मृत्यु दर में काफी वृद्धि करता है... दूसरी लहर के बाद रिपोर्ट किए गए म्यूकोर्मिकोसिस के मामले काफी हद तक स्टेरॉयड के अति इस्तेमाल की वजह से हैं। जब दूसरी लहर चरम पर थी, तब स्टेरॉयड बाज़ार से गायब हो गए थे। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है।'' अब देखने वाली बात होगी कि कोरोना के साथ साथ फंगस का कहर कब कम होगा और महामारी से मौत का सिलसिला कब ख़त्म होगा।
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