दम्पतियों को पुलिस सुरक्षा देने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के 3 दिन में 26 आदेश
'अगर जोड़े 18 साल से ज़्यादा उम्र के हैं तो अपनी इच्छा के मुताबिक़ वे अपना जीवन जीने के लिए स्वतंत्र हैं...'

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तीन दिनों के भीतर ऐसे 26 आदेश पारित किए हैं जिसमें पुलिस को उन जोड़ों को सुरक्षा देने के आदेश दिए गए, जिन्होंने परिवार के सदस्यों की धमकियों की वजह से अपनी सुरक्षा की मांग की थी। ये आदेश हाई कोर्ट के जज जस्टिस सिद्धार्थ ने 21 जून से 23 जून के बीच पारित किए।
सुरक्षा की मांग करने वालों में ज़्यादातर वे लोग शामिल थे जो एडल्ट्स थे और अपने परिवार वाले की मर्ज़ी के ख़िलाफ शादी कर ली थी। इनमें ज़्यादातर याचिकाओं का निपटारा करते हुए, कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को याचिकाकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिये।
कोर्ट मामलों पर रिपोर्ट करने वाली मीडिया ऑर्गेनाइजेशन बार एंड बेंच के मुताबिक़ इसी तरह के एक आदेश राशी (रविया बानो) और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में आगरा के एसएसपी को यह आदेश दिया गया कि वे आदेश की एक कॉपी कोर्ट की आधिकारिक साइट से डाउनलोड कर याचिकाकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करे। 22 जून को कोर्ट ने एक जोड़े को सुरक्षा प्रदान की जिनका तलाक हो गया और बाद में उन्होंने दूसरी शादी करने का फैसला किया। कोर्ट ने कहा, “उन्होंने 24.02.2021 को आर्य समाज मंदिर में दूसरी शादी की है और ऑनलाइन शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए भी आवेदन किया है, लेकिन एक याचिकाकर्ता की स्वतंत्रता को उनके परिवार से ख़तरा है। इसके लिए कोर्ट ने उन जोड़े को प्रयागराज एसएसपी के पास भेजते हुए यह निर्देश दिया कि वे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करें। इसी तरह, अदालत ने उस महिला को भी संरक्षण दिया, जिसने आरोप लगाया था कि परिवार के सदस्यों ने उसे उसके ससुराल से बेदखल कर दिया था और उसके माता-पिता उसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। इस मामले में संबंधित लोगों को कोर्ट ने नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। पिछले साल, कोर्ट ने माना था कि अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के लिए अंतर्निहित है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। जस्टिस विवेक अग्रवाल और पंकज नकवी की बेंच ने फैसला सुनाया था। कोर्ट का मानना है कि अगर किसी पर कथित धर्मांतरण का दबाव भी डाला जाता है तो उसकी जांच संवैधानिक कोर्ट के हाथों में हैं। अगर जोड़े 18 साल से ज़्यादा उम्र के हैं तो अपनी इच्छा के मुताबिक़ वे अपना जीवन जीने के लिए स्वतंत्र हैं।
कोर्ट मामलों पर रिपोर्ट करने वाली मीडिया ऑर्गेनाइजेशन बार एंड बेंच के मुताबिक़ इसी तरह के एक आदेश राशी (रविया बानो) और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में आगरा के एसएसपी को यह आदेश दिया गया कि वे आदेश की एक कॉपी कोर्ट की आधिकारिक साइट से डाउनलोड कर याचिकाकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करे। 22 जून को कोर्ट ने एक जोड़े को सुरक्षा प्रदान की जिनका तलाक हो गया और बाद में उन्होंने दूसरी शादी करने का फैसला किया। कोर्ट ने कहा, “उन्होंने 24.02.2021 को आर्य समाज मंदिर में दूसरी शादी की है और ऑनलाइन शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए भी आवेदन किया है, लेकिन एक याचिकाकर्ता की स्वतंत्रता को उनके परिवार से ख़तरा है। इसके लिए कोर्ट ने उन जोड़े को प्रयागराज एसएसपी के पास भेजते हुए यह निर्देश दिया कि वे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करें। इसी तरह, अदालत ने उस महिला को भी संरक्षण दिया, जिसने आरोप लगाया था कि परिवार के सदस्यों ने उसे उसके ससुराल से बेदखल कर दिया था और उसके माता-पिता उसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। इस मामले में संबंधित लोगों को कोर्ट ने नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। पिछले साल, कोर्ट ने माना था कि अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के लिए अंतर्निहित है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। जस्टिस विवेक अग्रवाल और पंकज नकवी की बेंच ने फैसला सुनाया था। कोर्ट का मानना है कि अगर किसी पर कथित धर्मांतरण का दबाव भी डाला जाता है तो उसकी जांच संवैधानिक कोर्ट के हाथों में हैं। अगर जोड़े 18 साल से ज़्यादा उम्र के हैं तो अपनी इच्छा के मुताबिक़ वे अपना जीवन जीने के लिए स्वतंत्र हैं।
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