आख़िर श्रीलंका में क्यों लागू करनी पड़ा आर्थिक आपातकाल ?

by Sarfaroshi 2 years ago Views 2806

economic emergency

पड़ोसी देश श्रीलंका में किसान सड़कों पर उतर आए हैं। खाने-पीने, फल-सब्ज़ियों के दाम आसमान छू गए हैं। श्रीलंकाई सरकार द्वारा कृषि को लेकर किए गए कथित बदलाव के बाद देश में यह संकट आ गई है। महिंदा राजपक्षे के नेतृत्व वाली सरकार ने 29 अप्रैल को देश में रासायनिक उर्वरक और दूसरे कृषि रसायनों के आयात पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया था। 

श्रीलंकाई सरकार द्वारा ऐसा इसलिए गया था ताकि खेती को जैविक कृषि या ऑर्गेनिक फार्मिंग पर शिफ्ट किया जा सके। हालांकि सरकार का यह फैसला उसी पर भारी पड़ गया है और किसान सरकार के विरोध में आ गए हैं। खाने-पीने और फल-सब्ज़ियों के दाम में अचानक उछाल से श्रीलंकाई सरकार ने देश में आर्थिक आपातकाल लागू कर दी है।

दरअसल, सरकार ने कैमिकल रसायनों के आयात पर प्रतिबंध लगाते हुए आदेश दिया था कि किसानों को खेती के लिए जैविक रसायनों का ही इस्तेमाल करना होगा। हालांकि किसानों का दावा है कि फर्टीलाइजर की कमी से उनकी फसलें प्रभावित हो रही हैं।

रोज़ इस्तेमाल होने वाले उत्पाद जैसे चीनी, प्याज़ के दाम दोगुने तक बढ़ गए हैं। श्रीलंका के जनगणना और सांख्यिकी विभाग के आंकड़े के मुताबिक़ अगस्त महीने में वहां खाने-पीने के सामानों के दाम 11.5 फीसदी तक बढ़ गए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि सरकार ने खाने-पीने के सामान में कमी के चलते ही आपात्काल लागू किया है ताकि जमाखोरी से बचा जा सके। 

सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका के मुताबिक वार्षिक महंगाई दर अगस्त के महीने में बढ़कर 6 फीसदी हो गई है जबकि इससे एक महीने पहले यह 5.7 फीसदी थी। महंगाई दर में हो रही बढ़ोत्तरी की एक वजह यह भी है कि अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले श्रीलंकाई करेंसी 7 फीसदी से ज़्यादा गिर गई है। इनके अलावा श्रीलंका के विदेशी भंडार में 62 फीसदी की गिरावट देखी गई है। यह जुलाई महीने में 2.8 अरब डॉलर पर आ गया है जो साल 2019 में 7.5 अरब डॉलर रहा था। 

देश को पूरी तरह जैविक खेती करने के लिए बड़े स्तर पर जैविक उर्वरकों का घरेलू उत्पादन करने की ज़रूरत होगी लेकिन असलियत इससे काफी अलग है। दि प्रिंट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक श्रीलंका में नगरपालिका जैविक अपशिष्ट से हर साल 30 लाख टन तक खाद बनाई जा सकती है जबकि सिर्फ धान की खेती के लिए ही 50 लाख टन और चाय की खेती के लिए हर साल 30 लाख टन की खाद की ज़ररूत होती है।

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