ग्रामीणों की पहुंच से दूर होता दोपहिया वाहन !

by GoNews Desk Edited by M. Nuruddin 1 year ago Views 3317

Two wheeler was out of reach of villagers!
दोपहिया वाहनों की बिक्री भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बेहतर स्वास्थ्य का संकेत देता है। इस सदी की शुरुआत से ही दोपहिया वाहनों की खरीद से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन का पता लगाने में आसानी होती है। दोपहिया वाहनों की बिक्री बढ़ने से यह समझा जाता है कि ग्रामीणों की इन्कम बढ़ रही है और यह ग्रमीणों के लाइफस्टाइल में बदलाव का भी संकेत देता है।

2001 से 2011 के बीच दोपहिया वाहनों का रजिस्ट्रेशन 40 मिलियन से बढ़कर 100 मिलियन हो गया था। उसके बाद के सालों में हर साल औसतन 10 मिलियन वाहनों की बिक्री होती थी जिसमें आख़िरी बार 2018 में 16.5 मिलियन दोपहिया वाहनों की बिक्री हुई थी।


इसके बाद से दोपहिया वाहनों की बिक्री में धीरे-धीरे गिरावट आई और साल 2021 में वाहनों की जितनी यूनिट बिकी वो 2012 के स्तर से भी नीचे पहुंच गए। यह गिरावट महामारी की वजह से देखी गई जब लॉकडाउन में उद्योग-धंधे चौपट हो गए। कंस्ट्रक्शन से लेकर हर क्षेत्र में मंदी देखी गई और शहर में रह रहे देहाड़ी मज़दूर गांव को चल बसे। इन सबके बीच ग्रामीणों के इन्कम में भी गिरावट आ गई।

2021 के आख़िरी तिमाही में दोपहिया वाहनों की बिक्री गिरकर 3.59 मिलियन पर आ गई जो इस सदी का सबसे ख़राब तिमाही रहा। हालांकि यह वो तिमाही रहा जब देश में त्योहारों का मौसम होता है और वाहनों की बिक्री में उछाल देखी जाती है।

सवारी गाड़ी की बिक्री में भी गिरावट आई है लेकिन इसकी हालत दोपहिया वाहनों की बिक्री जितनी गंभीर नहीं है जो लोअर मिडिल क्लास वालों की प्रमुख सवारी है। इससे साफतौर पर यह समझा जा सकता है कि 50 हज़ार की कीमत से एक लाख रूपये की कीमत वाले दोपहिया वाहन देश की एक बड़ी आबादी की पहुंच से दूर हो गया है।

ये आंकड़े भारत में घटती प्रति व्यक्ति आय के अनुरूप हैं जो चार साल में पहली बार घटकर 1 लाख रुपये से कम हो गई है। महामारी के बाद की अवधि के दौरान 1 लाख रुपये से ज़्यादा की आय वाले उपभोक्ताओं के बीच भावना मज़बूत हुई है, लेकिन 1 लाख रुपये से कम आय वाले इस समय के दौरान कमजोर रहे हैं।

सेंटर ऑफ मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी द्वारा जारी डेटा इस प्रवृत्ति और दो प्रवृत्तियों के बीच के संबंध को दर्शाता है।

1 फरवरी को पेश होने वाले केन्द्रीय बजट के साथ, सरकार को सुधारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए। सरकार का 20 लाख करोड़ रुपये का बड़ा प्रोत्साहन पैकेज या तो फाइलों में पड़ा हुआ है, या इसका लाभ भारतीय भीतरी इलाकों के सबसे गरीब तबकों तक नहीं पहुंचा है।

हालांकि दावा किया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे किसानों और भूमिहीन श्रमिकों को अरबों रुपये हस्तांतरित किए गए हैं, उनके हाथ में पैसा दोपहिया वाहन खरीदने के लिए पर्याप्त नहीं है जो अब ग्रामीण उर्ध्व गतिशीलता के सबसे स्पष्ट संकेत हैं।

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