त्रिपुरा हिंसाः ख़बरदार! बोले तो लगेगा UAPA

भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य बीजेपी शासित त्रिपुरा में लोगों को वहां कुछ दिनों से चल रहे कथित सांप्रदायिक तनाव पर बोलना भारी पड़ गया है। त्रिपुरा पुलिस ने कम से कम 102 सोशल मीडिया यूजर्स के खिलाफ UAPA कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है। इनमें 68 ट्विटर मीडिया यूजर्स, 32 फेसबुक यूजर्स और 2 यूट्यूब यूजर्स हैं। सभी के खिलाफ मामले त्रिपुरा के अगरतला में दर्ज किए गए।
कानूनी मुकदमे का सामना कर रहे कुछ लोगों का कहना है कि उन्हें सिर्फ ‘Tripura Is Burning’ जैसी पोस्ट के लिए बुक किया गया है। पुलिस के ट्विटर को भेजे नोटिस के मुताबिक इन यूजर्स ने अलग अलग मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कथित हिंसा से जुड़े जो पोस्ट साझा किए हैं, वह दो समुदायों के बीच तनाव बढ़ा सकती हैं और जिसका अंज़ाम सांप्रदायिक दंगे हो सकता है। इन यूजर्स पर मामले से जुड़े झूठे तथ्य का आरोप भी लगाया गया है।
बता दें कि यूएपीए का सामना कर रहे लोगों में प्रतिष्ठित पत्रकार, प्रोफेसर और मीडिया हाऊस से जुड़े लोग शमिल हैं। प्रशासन द्वारा UAPA लगाने का यह सिलसिला दिल्ली के दो वकीलों के साथ शुरू हुआ।
क्या है मामला?
त्रिपुरा के पानीसागर की अलग अलग जगहों से 26 अक्टूबर से ही सांप्रदायिक तनाव की खबरें आ रही थीं। एक-आद दिन इस घटना के कुछ वीडियो जैसे कि मस्जिद और घर जलाए जाने जैसे वीडियो वायरल हुए, फिर यह मामला लोगों की नज़रों में आया और पत्रकारों एवं समाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे पर जानकारी देना शुरू किया। देश के कई हिस्सों से कथित हिंसा से जुड़े पोस्ट सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए।
वायर की 27 अक्टूबर की रिपोर्ट के मुताबिक पानीसागर में विश्व हिंदु परिषद की एक रैली के दौरान जिले की एक मस्जिद को जला दिया गया और घरों पर भी हमले किए गए। ऑल इंडिया मुस्लिम संगठन जमीयत-उलामा-ए-हिंद से जुड़े मुफ्ती अब्दुल मोमिन ने कहा कि कम से कम 16 मस्जिदों को निशाना बनाया गया। अगरतला के AIG सुब्रता मुखर्जी ने भी मीडिया हाऊस से घटना की पुष्टि की और कहा कि चमटीला और रोवा बाजार में मस्जिद और कुछ दुकानें भी जलाई गई हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद त्रिपुरा में अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों और घरों पर हमले का घटनाक्रम शुरू हुआ। वहां दुर्गा पूजा के दौरान भड़की हिंसा के बाद अल्पसंख्यकों के घरों, धार्मिक स्थलों और दुकानों पर हमले जैसी खबरें सामने आई थी।
प्रशासन का कदम: दो वकीलों के खिलाफ UAPA
राज्य में हिंसा या सांप्रदायिक तनाव को रोकने के लिए प्रशासन का समय पर कदम उठाना ज़रूरी हो जाता है हालांकि इसके ठीक उलट पुलिस ने त्रिपुरा में किसी भी तरह की हिंसा को नकार दिया। इस हिंसा से जुड़े पोस्ट को प्रशासन ने ‘फेक’ का टैग दिया। पानीसागर में मस्जिद जलाए जाने की एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थी लेकिन त्रिपुरा पुलिस ने दावा किया कि राज्य में मस्जिद जलने जैसी कोई घटना नहीं हुई है और इस घटना से जुड़े वायरल हो रहे सभी फोटो , स्टिकर्स और वीडियो फर्जी हैं और यह राज्य में कानून व्यवस्था खराब करने और त्रिपुरा की छवि बिगाड़ने की साज़िश है।
हालांकि साथ ही साथ पुलिस ने पानीसागर और इससे सटे धर्मनगर में धारा 144 का ऐलान कर दिया और घटना के काफी दिन बीत जाने के बाद पुलिस ने हिंसा से संबंध रखने वाले 70 लोगों और सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट करने वाले 5 लोगों के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज किए।
इस बीच पुलिस का कार्रवाई से अंसतुष्ट People’s Union for Civil Libertiesकी तरफ से दिल्ली के दो वकील हिंसा की जांच करने और मामले में लीगल असिस्सटेंस मिशन के तहत 30 अक्टूबर को त्रिपुरा पहुंचे। यह दो वकील दिल्ली हाईकोर्ट में प्रेक्टिस कर रहे मुकेश और सुप्रीम कोर्ट के वकील अंसार इंदौरी थे।
इन वकीलों ने अपनी रिपोर्ट में पुलिस पर ‘लापरवाही’ का आरोप लगाया। बीते मंगलवार को दिल्ली में प्रेस क्लब में जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया कि राज्य सरकार और पुलिस ने समय पर हिंसा को रोकने के लिए कदम नहीं उठाए जो कि ‘हिंसा को बढ़ावा’ देने जैसा है। इस रिपोर्ट के कुछ वक्त के बाद ही दोनों वकीलों को त्रिपुरा पुलिस की ओर से UAPA के तहत नोटिस भेज दिया गया। इन पर बयानों और सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए शांति भंग करने का आरोप लगाया गया है। दोनों वकीलों को अब 10 नवंबर को अगरतला जाना होगा।
UAPA के तहत 102 लोगों पर मुकदमा
त्रिपुरा पुलिस ने भड़काऊ और भ्रामक पोस्ट डालने के आरोप में 102 लोगों पर राजद्रोह कानून के तहत मुकदमा किया है। यह साफ नहीं है कि किन फेसबुक और यूट्यूब अकाऊंट को UAPA में शामिल किया गया है लेकिन इस कानून के तहत बुक किए गए 68 ट्विटर यूजर्स में भारतीय पत्रकार श्याम मीरा सिंह, NIT जयपुर के प्रोफेसर सलीम इंजिनियर, ब्रिटिश समाचार पत्र बायलाइन टाइम्स के रिपोर्टर C.J. Werleman, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष ज़फारुल इस्लाम खान और Indian American Muslim Council संस्थाएं शामिल हैं।
बीजेपी सरकार और प्रशासन की आलोचना
सोशल मीडिया यूजर्स UAPA लगाने के बाद से बीजेपी और त्रिपुरा के प्रशासन की आलोचना हो रही है। आलोचकों का कहना है कि इस तरह के कदम से सरकार विरोध को अपराध की श्रेणी में डालना चाहती है। पुलिस की इस कार्रवाई का विरोध कांग्रेस समेत दूसरे राजनीतिक दलों ने किया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को अपन ट्विटर पर लिखा कि सच को चुप नहीं कराया जा सकता।
Pointing out that #Tripura_Is_Burning is a call for corrective action. But BJP’s favourite cover-up tactic is shooting the messenger.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 8, 2021
Truth can’t be silenced by #UAPA.
उन्होंने इस ट्वीट में ‘Tripura Is Burning’ जैसे हैशटैग इस्तेमाल किए। पत्रकारिता को बचाने और इसका स्तर ऊंचा करने के लिए काम कर रही एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी पत्रकारों पर UAPA लगाए जाने के खिलाफ बयान जारी किया और कहा कि देश में बेहद परेशान करने वाला ट्रेंड चल रहा हैं जहां सांप्रदायिक तनाव पर रिपोर्टिगं करने के लिए ऐसे ‘कठोर’ कानून का इस्तेमाल किया जा रहा है।
The Editors Guild of India is deeply shocked by the Tripura Police’s action of booking 102 people, including journalists, under the coercive Unlawful Activities (Prevention) Act, for reporting and writing on the recent communal violence in the state. pic.twitter.com/bkDssiqOXK
— Editors Guild of India (@IndEditorsGuild) November 7, 2021
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