भारत में पत्रकारों के हत्यारों को सज़ा नहीं; 80 फीसदी केस अनसुलझे

भारत में बीते कुछ सालों से पत्रकार असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। 2017 में प्रतिष्ठित पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद भारत की अंतराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई थी जबकि बीत महीनों प्रतापगढ़ के पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव की शराब माफिया द्वारा हत्या पर देशभर के पत्रकारों का गुस्स फूटा था। अब हाल ही में आई एक रिपोर्ट में पता चला है कि भारत पत्रकारों की हत्या करने वाले आरोपियों को सज़ा देने में भी काफी पीछे है।
कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट नाम की अंतराष्ट्रीय संस्था की जारी ग्लोबल इंप्युनिटी इंडेक्स 2021 के मुताबिक भारत उन 12 देशों में से एक है जहा पत्रकारों की हत्या के बाद अपराधी खुले आम घूमते हैं जबकि देश में बीते 10 सालों में पत्रकारों की हत्या के 80 फीसदी से ज़्यादा मामलों में किसी को भी आरोपी नहीं ठहराया गया है। सीपीजे एक गैर लाभकरी संगठऩ है जो हर साल ग्लोबल इंप्युनिटी सूचकांक तैयार करता है।
इसके तहत ऐसे देशों में आबादी के प्रतिशत के आधार पर पत्रकारों की हत्या के अनसुलझे मामलों की गणना की जाती है। इस इंडेक्स में सिर्फ उन देशों को शामिल किया जाता हैं जहां 5 से ज़्यादा पत्रकारों की हत्या के मामले अनसुलझे रहे हैं।
81% फीसदी मामलों में कोई सज़ा नहीं
सीपीजे की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बीते 10 सालों में 278 पत्रकारों की हत्या हुई है। इनमें से 226 मामलों या फिर 81 फीसदी मामलों में किसी भी अपराधी को सजा नहीं सुनाई गई है। देश में 20 पत्रकारों की हत्या के मामले फिलहाल अनसुलझे हैं।
सोमालिया के हालात सबसे खराब; भारत 12वें स्थान पर
संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक सालों से युद्ध की चपेट में आया हुआ सोमालिया पत्रकारों की हत्यारों के अनसुलझे मामलों में सबसे खराब देश बना हुआ है। यह नंबर एक पर है जबकि सीरिया, इराक और सूडान इसके पीछे हैं। अफगानिस्तान पत्रकारों की हत्या के मामलों को न सुलझाने वाले इस सूचकांक में पांचवे स्थान पर है।
लेकिन संस्था ने बताया कि अफगानिस्तान में पत्रकारों के सामने बड़ी चुनौतियों को ठीक तरह से दर्शाया नहीं जा सका है क्योंकि इस इंडेक्स में 1 सितंबर 2011 से 31 अगस्त 2021 तक का डाटा लिया गया है और रिपोर्ट में सीरिया का गृहयुद्ध, अरब सरकारों के खिलाफ व्यापक विरोध और चरमपंथी समूहों और संगठित अपराध सिंडिकेट के मीडिया कर्मचारियों के खिलाफ किए गए अपराधों को शामिल किया गया है।
अब चरमपंथी संगठन तालिबान का अफगान पर नियंत्रण होने के बाद वहां जर्नलिस्ट्स की स्थिति और खराब होने की आशंका है। रिपोर्ट के मुताबिक पत्रकारों के हत्यारों को सज़ा न देने के मामले मैक्सिको, फिलिपींस, ब्राजील, पाकिस्तान, रूस, बांग्लादेश, भारत क्रमश: छठे, सातवें, आठवें, नौवें, दसवें, ग्यारहवें और बारहवें स्थान पर है।
भारत में सुरक्षित नहीं पत्रकार!
भारत उन चुनिंदा देशों में से एक हैं जो लगभग हर साल सीपीजे के इस सूचकांक में जगह बनाता है जबकि हर बीतते साल के साथ पत्रकारों की हत्या के आरोपियों को सज़ा दिलाने के मामले में देश की स्थिति खराब हो रही है।
ग्लोबल इंप्यूनिटी इंडेक्स में भारत 14वें स्थान पर था जबकि 2019 में देश एक पायदान उपर आ कर 13वें स्थान पर और फिर 2020 में एक नंबर और ऊपर 12वें स्थान पर आ गया जबकि इस साल भी भारत इस सूचकांक में 12वें स्थान पर ही है। संस्था की 2021 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में 22 पत्रकारों की हत्या उनके किए गए काम के बदले में की गई जो कि 2019 के आंकड़ों के दोगुना से भी अधिक है।
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