स्वामी विवेकानंद: एक योद्धा संन्यासी!

स्वामी विवेकानंद बीसवीं सदी के भोर के साथ भारतीय आकाश पर छाये एक ऐसे संन्यासी थे जिनके विचारों की चमक आज तक फ़ीकी नहीं पड़ी। 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में जन्मे स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था जो आगे चलकर स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बने और 11 सितंबर 1893 अमेरिका क शिकागो में हुई धर्मसंसद में अपने भाषण से दुनिया का मन मोह लिया।
यूँ तो स्वामी विवेकानंद धर्म के क्षेत्र में सक्रिय थे लेकिन सांसारिकता से विरक्ति के विरुद्ध थे। वे युवाओं को पूजा पाठ की जगह फुटबाल खेलने की सलाह देते थे। आइये बताते हैं स्वामी विवेकानंद के कुछ विचार जिन्हें सुनकर आप कह उठेंगे कि योद्धा संन्यासी थे, स्वामी विवेकानंद।
1.“मैं उस ईश्वर का उपासक हूँ, जिसे अज्ञानी लोग मनुष्य कहते हैं। इस देश के तैंतीस करोड़ भूखे, दरिद्र और कुपोषण के शिकार लोगों को देवी देवताओं की तरह मंदिरों में स्थापित किया जाए और मंदिरों से देवी देवताओं की मूर्तियों को हटा दिया जाये।” 2. “हम मनुष्य जाति को उस स्थान पर पहुँचाना चाहते हैं जहाँ न वेद है, न बाइबिल है, न क़ुरान है, परंतु ऐसा वेद, बाइबिल और कुरान के समन्वय से ही हो सकता है।… हमारी मातृभूमि के लिए हिंदू और मुसलमान, इन दोनों विशाल संप्रदायों का सामंजस्य एकमात्र आशा है जो वेदांती बुद्धि और इस्लामी शरीर से ही संभव है।” 3.“मानव समाज का शासन क्रमशः एक दूसरे के बाद चार जातियों द्वारा हुआ करता है, ये जातियां है; पुरोहित, योद्धा, व्यापारी और श्रमिक। सबसे अंत में श्रमिक या शूद्र का राज्य आयेगा। प्रथम तीन तो अपने दिन भोग चुके हैं, अब चौथी अर्थात् शूद्र जाति का समय आया है। उनको वह सत्ता मिलनी ही चाहिए, उसे कोई रोक नहीं सकता” 4.‘‘धर्मांध लोग दुनिया में हिंसक उपद्रव मचाते हैं, बार-बार खून की नदियाँ बहाते हैं, मानवीय सभ्यता को नष्ट करते हैं और देश को निराशा में भर देते हैं। धर्मांधता का यह भयानक दानव अगर नहीं होता तो मानव समाज आज जो है उससे कहीं अधिक उन्नत होता। 5. मैं समाजवादी हूं, इसलिए नहीं कि मैं इसे पूर्ण रूप से निर्दोष व्यवस्था मानता हूँ, बल्कि इसलिए कि एक पूरी रोटी न मिलने से तो अच्छा है, आधी रोटी ही सही।”
1.“मैं उस ईश्वर का उपासक हूँ, जिसे अज्ञानी लोग मनुष्य कहते हैं। इस देश के तैंतीस करोड़ भूखे, दरिद्र और कुपोषण के शिकार लोगों को देवी देवताओं की तरह मंदिरों में स्थापित किया जाए और मंदिरों से देवी देवताओं की मूर्तियों को हटा दिया जाये।” 2. “हम मनुष्य जाति को उस स्थान पर पहुँचाना चाहते हैं जहाँ न वेद है, न बाइबिल है, न क़ुरान है, परंतु ऐसा वेद, बाइबिल और कुरान के समन्वय से ही हो सकता है।… हमारी मातृभूमि के लिए हिंदू और मुसलमान, इन दोनों विशाल संप्रदायों का सामंजस्य एकमात्र आशा है जो वेदांती बुद्धि और इस्लामी शरीर से ही संभव है।” 3.“मानव समाज का शासन क्रमशः एक दूसरे के बाद चार जातियों द्वारा हुआ करता है, ये जातियां है; पुरोहित, योद्धा, व्यापारी और श्रमिक। सबसे अंत में श्रमिक या शूद्र का राज्य आयेगा। प्रथम तीन तो अपने दिन भोग चुके हैं, अब चौथी अर्थात् शूद्र जाति का समय आया है। उनको वह सत्ता मिलनी ही चाहिए, उसे कोई रोक नहीं सकता” 4.‘‘धर्मांध लोग दुनिया में हिंसक उपद्रव मचाते हैं, बार-बार खून की नदियाँ बहाते हैं, मानवीय सभ्यता को नष्ट करते हैं और देश को निराशा में भर देते हैं। धर्मांधता का यह भयानक दानव अगर नहीं होता तो मानव समाज आज जो है उससे कहीं अधिक उन्नत होता। 5. मैं समाजवादी हूं, इसलिए नहीं कि मैं इसे पूर्ण रूप से निर्दोष व्यवस्था मानता हूँ, बल्कि इसलिए कि एक पूरी रोटी न मिलने से तो अच्छा है, आधी रोटी ही सही।”
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