हर 1,000 लोगों पर 300 कैमरों की नज़र; पूरी तरह निगरानी वाला शहर बनने की कगार पर हैदराबाद

पिछले कुछ समय से अंतराष्ट्रीय संस्थाएं भारत में नागरिकों की निजता से समझौता करने वाले कुछ नियमों को लेकर चिंता जता रही हैं। भारत सरकार पर आरोप लगते रहे हैं कि वह आधार कार्ड को दूसरे दस्तावेजों को जोड़ कर लोगों की डिजिटल प्राइवेसी में हस्तक्षेप कर रही है।
अब अंतराष्ट्रीय संगठन एमनेस्टी ने चिंता जताई है कि भारतीय शहरों में फेशियल रिकगनीशन तकनीक के माध्यम से लोगों के निजता के अधिकार का उल्लंघन होंने की आशंका है। AMNESTY इंटरनेशनल घुसपैठीय चेहरों की पहचान के लिए लाई गई पहचान तकनीक यानि face recognition technology पर प्रतिबंध लगाने के लिए बैन द स्कैन कैंपेन चला रही है।
संस्था ने मंगलवार को कैंपेन के तहत एक रिपोर्ट जारी है जिसमें कहा गया है कि देश के तेलंगाना राज्य में कमांड एंड कंट्रोल सेंटर बनाया जा रहा है। यह सेंटर हैदराबाद की बंजारा हिल में बनाया जा रहा है।
इस सीसीसी के माध्यम से 6 लाख कैमरों से एक साथ डाटा इकट्ठा किया जा सकेगा। जबकि आने वाले वक़्त में इस केंद्र की रीच और बढ़ाई जा सकती है। इन कैमरों का उपयोग आगे हैदराबाद पुलिस भी लोगों की पहचान करने के लिए कर सकती है।
बता दें कि तेलंगाना का हैदराबाद शहर भारत का सबसे ज़्यादा सर्विलेंस वाला शहर है जबकि दुनियाभर में यह 16वां शहर है जहां लोगों पर सबसे ज़्यादा नज़र रखी जा रही है जबकि तेलंगाना में सबसे ज़्यादा Facial Recognition Technology प्रोजेक्ट हैं। अब कमांड एंट कंट्रोल सेंटर के स्थापित होने से राज्य में मौजूद सर्विलंस सिस्टम और बड़े स्तर पर फैलने की संभावना है।
उस पर चिंता की बात है कि इन सर्विलिंस कैमरों में जमा किए गए डाटा के इस्तेमाल या फिर नियमन के लिए कोई सटीक भारतीय कानून नहीं है। एमनेस्टी ने इस पर भी चिंता ज़ाहिर की है।
संस्था में रिसर्चर का काम करने वाले मत महमूदी ने कहा कि हैदराबाद टोटल सर्विलंस सिटी बनने की कगार पर पहुंच गया है।
एमनेस्टी की हैदराबाद के काला पत्थर और किशन बाग जैसे इलाकों में किए गए सर्वे में कहा गया है कि इन इलाकों का 53 और 62 फीसदी हिस्सा सीसीटीवी की निगरानी में है यानि कि नागरिक के लिए ना मुमकिन है कि वह इलाके से निकलें और किसी कैमरे में उनकी तस्वीर न आए और इस तरह लोगों की निजी गतिविधियों पर नज़र रखी जा रही है।
हैदराबाद पुलिस पहले से ही लोगों से जबरन उनकी चेहरे की पहचान करने के चलते विवादों में रह चुकी है। पुलिस के कई वीडियो वायरल हो चुके हैं जिसमें वह ज़बरदस्ती लोगों से फिंगरप्रिंट या फिर FRP के जरिए उनके चेहरे की पहचान करती दिख रही है।
अधिकारी कभी भी ऐसा करने का कोई सटीक कारण नहीं दे पाए। कानून के तहत सिर्फ गिरफ्तार किए गए व्यक्ति या फिर दोषी ठहराए जा चुके लोगों की ही तस्वीर खीचिं जा सकती है।
हैदराबाद मुख्य रूप से मुस्लिम बहुल इलाका है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में मानवाधिकारों को ताक पर रख कर उदाहरणतः कोविड लॉकडाउन के दौरान मास्क डिटेक्शन और मतदान के दौरान वोटरों की पहचान आदि करने के लिए Facial Recognition technology का इस्तेमाल किया जाता रहा है।
सीसीटीवी को किसी रेग्यूलेशन के तहत न लिए जाने के बीच मुस्लिम, दलित, आदिवासी और समाज के हाशिए पर रहने वाले समुदाय के अधिकारों पर सर्विलेंस से खासकर खतरा जताया गया है।
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