केन्द्र की वैक्सीन पॉलिसी पर सुप्रीम कोर्ट की सख़्त टिप्पणी, नीति पर सवाल

by GoNews Desk 2 years ago Views 2664

supreme court

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार की लिबरलाइज़्ड टीकाकरण नीति पर कड़ी चिंता ज़ाहिर की है। कोर्ट ने केन्द्र के उस नीति को मनमाना और तर्कहीन बताया है जिसमें 45 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों को मुफ्त दो चरणों में वैक्सीनेट करने और 18-44 साल की उम्र के लोगों के लिए पेड वैक्सीनेटशन की योजना बनाई है।

कोर्ट ने कहा कि दूसरी लहर के दौरान 18-44 साल के लोग न सिर्फ संक्रमित हुए हैं बल्कि उन्हें गंभीर लक्षणों से भी जूझना पड़ा है। कई मामलों में मरीजों को लंबा समय अस्पताल में बिताना पड़ा, जबकि कई मरीजों की मौत हो गई। 

ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट कोरोना प्रबंधन पर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही है। कोर्ट में इस मामले पर जस्टिस डॉ डीवाई चंद्रचूड़, एल नागेश्वर राव और एस रविंद्र भट्ट की बेंच सुनवाई कर रही है जिसपर कोर्ट ने चिंता ज़ाहिर की है। कोर्ट ने कहा कि सरकार की वैक्सीनेशन पॉलिसी न सिर्फ असुरक्षित आयु वर्ग को नज़रअंदाज़ कर रही है बल्कि डिजिटल डिवाइड की वजह से ग्रामीण इलाकों में रह रहे लोगों को भी इस नीति से कोई फायदा हो रहा है। 

कोर्ट ने देश में एक ही वैक्सीन की अलग-अलग कीमतों को लेकर भी सवाल उठाए हैं। वैक्सीन उत्पादन को लेकर किए गए समझौते के तहत केंद्र सरकार को कोविशील्ड टीके की एक खुराक 150 रूपये में जबकि यही खुराक राज्यों को 4,00 रूपये और निजी अस्पतालों को 600 रूपये में दी जा रही है। कई राज्य सरकारों ने भी केन्द्र की इस नीति की आलोचना की है और सरकार से कंपनियों से कम कीमत पर वैक्सीन खरीद कर राज्यों को देने के लिए कहा है। 

हालांकि केन्द्र अपनी इस नीति का बचाव  भी कर रहा है। केन्द्र सरकार का कहना है कि टीकों की अलग अलग कीमत, निर्माताओं के बीच कंपटीशन को बढ़ाएगी और इससे टीका उत्पादन में वृद्धि होगी। कोर्ट ने इस बात पर सहमति जताई कि क्योंकि टीकों की कीमत पहले से ही निर्धारित है इसलिए अलग-अलग कीमत दरों से टीकों की कीमत में कोई कमी नहीं होगी।

कोर्ट ने यह भी पाया, सरकार ने बताया था कि उसने वैक्सीन के परीक्षण के लिए दोनों वैक्सीन निर्माताओं को फंड जारी किए हैं। 'ऐसे में ये कहना ठीक नहीं होगा कि राज्य या निजी संस्थाओं ने उत्पादन के जोखिम और खर्च को वहन किया।'

अदालत ने आगे ये भी कहा कि 'अगर केन्द्र सरकार की अलग एकाधिकारवादी खरीदार स्थिति के कारण ही उसे कंपनियों से कम कीमत पर वैक्सीन मिल रही है तो ऐसे में ज़रूरी है कि अदालत संविधान के आर्टिकल 14 के खिलाफ मौजूदा लिबरालाइज़्ड टीकाकरण नीति की तर्कसंगतता की जांच करे, क्योंकि इस नीति से वित्तीय संकट से जूझ रहे राज्य और केन्द्रशासित प्रदेशों पर बोझ पड़ सकता है।'

कोर्ट ने केन्द्र से टीकाकरण नीति को लेकर ताज़ा समीक्षा करने और उठ रहे सवालों पर जवाब देने के लिए कहा है। कोर्ट ने केन्द्र सरकार को आदेश दिए हैं कि-
1- 31 दिसंबर 2021 तक टीकों की अनुमानित उपलब्धता का रोडमैप रिकॉर्ड पर रखें। 

2- चिकित्सा ढांचे, टीकाकरण परीक्षणों, रेग्यूलेटरी अप्रूवल और कंपेटिबल ड्रग के मामले में महामारी की तीसरी लहर की स्थिति में बच्चों की विशिष्ट आवश्यकताओं के संबंध में तैयारी।

3- क्या राज्य और केन्द्रशासित प्रदेशों की सरकार या इंडिविजुअल लोकल बॉडीज केन्द्रीय टीकाकरण नीति के तहत विदेशी निर्माता कंपनियों की वैक्सीन आपूर्ति तक पहुंच बना सकती हैं।

4- पहले चरण के तहत टीकाकृत किए गए शमशान श्रमिकों की संख्या कितनी है. A. बचे हुए श्रमिकों के लिए लक्षित टीकाकरण अभियान चलाया जा सकता है।

5- राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश, केन्द्र सरकार की तुलना में अधिक दामों में 18-44 साल के लोगों का टीकाकरण करने के लिए खरीदी गई वैक्सीन का इस्तेमाल 45 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों का टीकाकरण करने के लिए कर रहे हैं, क्योंकि केन्द्र ने उन्हें पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन उपलब्ध नहीं कराई है। किस तरीके से केन्द्र सरकार इस मात्रा और टीकों के मूल्य अंतर को राज्य एवं केन्द्रशासित प्रदेशों को 18-44 साल के लोगों के टीकाकरण के लिए आगे किए जाने वाले टीकों के आवंटन और वितरण में शामिल करेगी।
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6- अगर कोई राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश की सरकार और निजि अस्पताल टीकों के 25:25 के वितरण कोटे को नहीं लेती है तब इसके पुनःवितरण का तरीका क्या होगा ?

अदालत ने केन्द्र को इस मुद्दे पर दो हफ्तों के अंदर हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है जिसके बाद कोर्ट अगली सुनवाई में इन पहलुओं पर चर्चा करेगी। सॉलिसिटर जनरल तुषार महता ने सोमवार को सुनवाई के दौरान अदालत से कहा था कि केन्द्र सरकार ज़रूरत पड़ने पर टीकाकरण नीति में बदलाव के लिए राजी है।

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