तेल की बढ़ती कीमतों का असर, लोग खाने और स्वास्थ्य ख़र्च में कर रहे कटौती: रिपोर्ट

लोगों पर बढ़ते वित्तीय तनाव की वजह से देश के आर्थिक सुधार में देरी हो सकती है। बढ़ती महंगाई के साथ यह संकट और गहरा रहा है। हाल ही में जारी एसबीआई की एक रिपोर्ट में ईंधन के दामों में कटौती किए जाने का आह्वान किया गया है, जिसमें यह तर्क दिया गया है कि बढ़ती ईंधन की कीमतें न सिर्फ महंगाई को बढ़ावा दे रही है बल्कि लोगों को अन्य चीज़ों पर कम ख़र्च करने के लिए भी मज़बूर कर रही है।
अगर देखा जाए तो महंगाई दर मई में 6.3 फीसदी के मुक़ाबले जून में 6.26 फीसदी दर्ज की गई, यानि महंगाई दर में मामूली कमी देखी गई। ग़ौर करने वाली बात यह है कि एसबीआई कि रिपोर्ट के मुताबिक़ यह कमी पान, तंबाकू और नशीले पदार्थों के दाम में गिरावट की वजह से हुई, जो मई में 10 फीसदी के मुक़ाबले जून में 4 फीसदी रही।
लेकिन खाद्य कीमतें, विशेष रूप से प्रोटीन के स्रोत जैसे अंडा, दूध, दालें, तेल वगैरह की कीमतें लगातार बढ़ रही है। "तेल और फैट्स की महंगाई दर जून में बढ़कर 34.8 फीसदी हो गई है, जो मई में 30.9 फीसदी दर्ज की गई थी। हालांकि केन्द्र ने कच्चे पाम ऑयल और रिफाइंड पाम ऑयल के आयात शुल्क में कटौती भी की है। एसबीआई समूह की मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने बताया कि, 'सरकार ने कच्चे पाम तेल पर 15 फीसदी से 10 फीसदी और रिफाइंड पाम तेल पर 45 फीसदी से 37.5 फीसदी की बुनियादी आयात शुल्क में कटौती की है, जिसका कुछ ख़ास प्रभाव नहीं पड़ रहा है।' ईंधन की कीमतें बढ़ने से ट्रांसपोर्टेशन पर लागत बढ़ जाता है। ऐसे में इसका सीधा असर महंगाई पर पड़ता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रांसपोर्टेशन पर बढ़ती लागत महंगाई को और रफ्तार देगी। उच्च गौसोलीन की कीमतें और क्षेत्रीय ट्रक चालकों की कमी का हवाला देते हुए सड़क परिवहन महंगा हो रहा है, यहां तक कि समुद्री माल की दरें भी कोरोना की शुरुआतके बाद कई बार बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पेट्रोल-डीजल की महंगाई ने ऐसे वक्त में ज़ोर पकड़ा है, जब कोविड संक्रमण की वजह से लोगों की मेडिकल पर खर्च बढ़ी। कोरोना की पहली लहर के दौरान की मार्च-जून-2020 की तिमाही में कोरोना की दूसरी लहर मार्च-जून-2021 के दौरान कई जिलों में लोगों का जमा पैसा ज्यादा तेजी से खर्च हुआ। एसबीआई की इकोनॉमिक विंग ने कार्ड से किए जाने वाले खर्चों का विश्लेषण कर बताया कि पेट्रोल-डीजल के दाम में जबरदस्त बढ़ोतरी की वजह से बड़े खर्चों को एडजस्ट करने के लिए लोग हेल्थ खर्च तक घटा रहे हैं। एसबीआई की चीफ इकोनॉमिक ए़डवाइजर सौम्य कांति घोष ने कहा कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों की वजह से ग्रॉसरी और यूटिलिटी सर्विसेज पर खर्च कम होने लगा है। इन चीजों की मांग में कमी से साबित होता है कि इन खर्चों में गिरावट आई है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'मार्च 2021 से लेकर जून 2021 तक अनिवार्य खर्च 62 फीसदी से बढ़ कर 75 फीसदी हो गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, 'टैक्स रैशनलाइजेशन के माध्यम से तेल की कीमतों में तत्काल कटौती की जानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया गया तो लोगों का अनिवार्य ख़र्च और कम होता रहेगा। ऐसे में विवेकाधीन ख़र्च बढ़ेगा जिससे महंगाई निरंतर बढ़ती जाएगी।' रिपोर्ट में बताया गया है कि हाउसहोल्ड डेब्ट्स यानि घरेलू क़र्ज़ का स्तर भी बढ़ गया है। एसबीआई की चीफ इकोनॉमिस्ट का कहना है कि ऐसे में रिकवरी में देरी होगी क्योंकि यह डेब्ट फाइनेंस कंजंप्शन के संकेत हैं। मसलन वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान जीडीपी के प्रतिशत का हाउसहोल्ड डेब्ट 37.3 फीसदी यानि 73.6 लाख करोड़ पर पहुंच गया है जो कि वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान 32.5 फीसदी यानि 66.1 लाख करोड़ रूपये था। रिपोर्ट के मुताबिक़, 'यह देश में हाउसहोल्ड क्राइसिस की ओर इशारा करता है। इस बात की पुष्टि वित्तीय बचत में गिरावट से भी होती है। रिज़र्व बैंक के शुरुआती अनुमानों के मुताबिक़ वित्त वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में जीडीपी का घेरेलू वित्ती बचत दर कम होकर 8.2 फीसदी पर आ गई है जो पिछली दो तिमाहियों में 21 फीसदी और 10.4 फीसदी रही थी। दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका में बचत दर दिसंबर 2019 में 8 फीसदी से अप्रैल में जीडीपी का 34 फीसदी हो गया है। यह इस बात का सबूत कहा जा सकता है कि भारत में रिकवरी में और देरी हो सकती है और संकट गहरा सकता है।
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लेकिन खाद्य कीमतें, विशेष रूप से प्रोटीन के स्रोत जैसे अंडा, दूध, दालें, तेल वगैरह की कीमतें लगातार बढ़ रही है। "तेल और फैट्स की महंगाई दर जून में बढ़कर 34.8 फीसदी हो गई है, जो मई में 30.9 फीसदी दर्ज की गई थी। हालांकि केन्द्र ने कच्चे पाम ऑयल और रिफाइंड पाम ऑयल के आयात शुल्क में कटौती भी की है। एसबीआई समूह की मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने बताया कि, 'सरकार ने कच्चे पाम तेल पर 15 फीसदी से 10 फीसदी और रिफाइंड पाम तेल पर 45 फीसदी से 37.5 फीसदी की बुनियादी आयात शुल्क में कटौती की है, जिसका कुछ ख़ास प्रभाव नहीं पड़ रहा है।' ईंधन की कीमतें बढ़ने से ट्रांसपोर्टेशन पर लागत बढ़ जाता है। ऐसे में इसका सीधा असर महंगाई पर पड़ता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रांसपोर्टेशन पर बढ़ती लागत महंगाई को और रफ्तार देगी। उच्च गौसोलीन की कीमतें और क्षेत्रीय ट्रक चालकों की कमी का हवाला देते हुए सड़क परिवहन महंगा हो रहा है, यहां तक कि समुद्री माल की दरें भी कोरोना की शुरुआतके बाद कई बार बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पेट्रोल-डीजल की महंगाई ने ऐसे वक्त में ज़ोर पकड़ा है, जब कोविड संक्रमण की वजह से लोगों की मेडिकल पर खर्च बढ़ी। कोरोना की पहली लहर के दौरान की मार्च-जून-2020 की तिमाही में कोरोना की दूसरी लहर मार्च-जून-2021 के दौरान कई जिलों में लोगों का जमा पैसा ज्यादा तेजी से खर्च हुआ। एसबीआई की इकोनॉमिक विंग ने कार्ड से किए जाने वाले खर्चों का विश्लेषण कर बताया कि पेट्रोल-डीजल के दाम में जबरदस्त बढ़ोतरी की वजह से बड़े खर्चों को एडजस्ट करने के लिए लोग हेल्थ खर्च तक घटा रहे हैं। एसबीआई की चीफ इकोनॉमिक ए़डवाइजर सौम्य कांति घोष ने कहा कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों की वजह से ग्रॉसरी और यूटिलिटी सर्विसेज पर खर्च कम होने लगा है। इन चीजों की मांग में कमी से साबित होता है कि इन खर्चों में गिरावट आई है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'मार्च 2021 से लेकर जून 2021 तक अनिवार्य खर्च 62 फीसदी से बढ़ कर 75 फीसदी हो गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, 'टैक्स रैशनलाइजेशन के माध्यम से तेल की कीमतों में तत्काल कटौती की जानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया गया तो लोगों का अनिवार्य ख़र्च और कम होता रहेगा। ऐसे में विवेकाधीन ख़र्च बढ़ेगा जिससे महंगाई निरंतर बढ़ती जाएगी।' रिपोर्ट में बताया गया है कि हाउसहोल्ड डेब्ट्स यानि घरेलू क़र्ज़ का स्तर भी बढ़ गया है। एसबीआई की चीफ इकोनॉमिस्ट का कहना है कि ऐसे में रिकवरी में देरी होगी क्योंकि यह डेब्ट फाइनेंस कंजंप्शन के संकेत हैं। मसलन वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान जीडीपी के प्रतिशत का हाउसहोल्ड डेब्ट 37.3 फीसदी यानि 73.6 लाख करोड़ पर पहुंच गया है जो कि वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान 32.5 फीसदी यानि 66.1 लाख करोड़ रूपये था। रिपोर्ट के मुताबिक़, 'यह देश में हाउसहोल्ड क्राइसिस की ओर इशारा करता है। इस बात की पुष्टि वित्तीय बचत में गिरावट से भी होती है। रिज़र्व बैंक के शुरुआती अनुमानों के मुताबिक़ वित्त वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में जीडीपी का घेरेलू वित्ती बचत दर कम होकर 8.2 फीसदी पर आ गई है जो पिछली दो तिमाहियों में 21 फीसदी और 10.4 फीसदी रही थी। दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका में बचत दर दिसंबर 2019 में 8 फीसदी से अप्रैल में जीडीपी का 34 फीसदी हो गया है। यह इस बात का सबूत कहा जा सकता है कि भारत में रिकवरी में और देरी हो सकती है और संकट गहरा सकता है।
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